भज ‘कोविन्दम्’ हरे-हरे
बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राजग ने अपना राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय ने हर बार की भांति इस बार भी सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। जिन दर्जनों लोगों के नाम राजग की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में उछाले जा रहे थे-उनमें श्री कोविन्द का नाम दूर-दूर तक भी नहीं था। सारे राजनीतिक पंडित मोदी-अमित के गुणा-भाग के सामने फेल हो गये हैं। राजनीति इसी का नाम है।
वास्तव में श्री कोविन्द को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर प्रधानमंत्री ने कई निशाने साध लिये हैं। उनके निर्णय ने विपक्ष में बिखराव उत्पन्न कर दिया है। यदि प्रधानमंत्री मोदी इस पद के लिए भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी या सुषमा स्वराज जैसे किसी अनुभवी चेहरे को लाते तो विपक्ष के मतों का धु्रवीकरण होना संभव था। तब राष्ट्रपति के लिए अपेक्षित मतों से थोड़ी दूर खड़ी भाजपा को अपना राष्ट्रपति बनाने में कठिनाई आती। देश के इस शीर्ष संवैधानिक पद पर अपना व्यक्ति बैठाना इस बार भाजपा के लिए आवश्यक था। उसे यह अवसर पहली बार मिला था और उसे खोना उसके लिए उचित नहीं था-ऐसा दबाव प्रधानमंत्री पर भाजपा के करोड़ों सदस्यों की ओर से था। जिसे साधना प्रधानमंत्री के लिए आवश्यक था। यदि इस अपेक्षा पर आडवाणी जैसा चेहरा खरा नहीं उतर रहा था तो मोदी ने उन्हें छोडऩा ही उचित माना। वैसे भी यह सिद्घांत की बात है कि जब बात और व्यक्ति में से किसी एक को छोडऩे का अवसर आये तो हमें यही देखना चाहिए कि यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को अपना लो और बात को छोड़ दो, इसी प्रकार यदि कहीं बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को छोड़ दो, बात को अपना लो। इस समय भाजपा का राष्ट्रपति बने-यह बात व्यक्ति से बड़ी हो गयी थी, इसलिए प्रधानमंत्री ने व्यक्ति को छोड़ा और बात को अपना लिया। वह बात कोई बात नहीं होती जो हमारी किरकिरी करा दे, या हमें व्यर्थ के जोखिम में डाल दे।
यह पहली बार होगा कि उत्तर प्रदेश का कोई दलित व्यक्ति राष्ट्रपति बन रहा है और वह भी तब जबकि प्रधानमंत्री इसी प्रांत से हों। इससे पूर्व इसी प्रदेश से मौ. हिदायतुल्ला कुछ काल के लिए देश के राष्ट्रपति बने थे उनकी यह नियुक्ति तात्कालिक थी। पूर्ण कालीन राष्ट्रपति उत्तर प्रदेश से पहली बार जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी के लिए उपरोक्त दबाव के अतिरिक्त और भी कई दबाव थे, वह यह भली प्रकार जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए सहारनपुर दंगों के पीछे कौन लोग हैं और उनका सपना क्या है? ‘भीम और मीम’ की एकता स्थापित कर कुछ राजनीतिक शक्तियां हिन्दू समाज की एकता और देश की अखण्डता तक का सौदा करने पर उतारू हैं। यदि उनके सपने साकार होते हैं तो यह देश के लिए अति घातक होगा। अत: उनके सपनों के पंखों को समय रहते कैच करना मोदी के राजधर्म की अनिवार्यता बन गयी थी। फलस्वरूप श्री कोविन्द जैसे व्यक्ति को आगे करना समय की आवश्यकता हो गयी थी। उनको आगे करके देश की एकता और अखण्डता को खतरा उत्पन्न करने वाली शक्तियों के फन को कुचलने में भी सहायता मिलेगी। राजनीति का यह धर्म है कि जब आवश्यक हो तब आग से पानी को सुखा लिया जाये और जब आग सीमा से बाहर जाकर ‘उपद्रव’ मचाने लगे तब उसे पानी से बुझवा लिया जाए। अत: राजनीति के एक कुशल खिलाड़ी को अपने पिटारे में आग और पानी नाम के दोनों ‘नागों’ को रखना चाहिए। आग और पानी से खेलना केवल राजनीति ही सिखाती है। इसके कुशल खिलाड़ी ही इसका अर्थ समझते हैं, शेष लोगों के लिए तो यह केवल एक मुहावरा मात्र है। श्री रामनाथ कोविन्द के विषय में प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि वे एक बेहतर राष्ट्रपति सिद्घ होंगे। प्रधानमंत्री की इस बात का अर्थ यही है कि देश में बढ़ती जातिवादी और साम्प्रदायिक शक्तियों के फन को कुचलने और देश को सावधानी पूर्वक आगे लेकर चलने में वह अपनी शानदार भूमिका का निर्वाह करेंगे।
उधर संघ के लाखों कार्यकर्ता या स्वयंसेवक भी इस बार एक अपेक्षा लगाये बैठे थे कि जैसे भी हो इस बार देश का राष्ट्रपति संघ की पृष्ठभूमि का राजनीतिज्ञ बने। श्री कोविन्द संघ की पृष्ठभूमि के राजनीतिज्ञ हैं, जिनके नाम के आने से आरएसएस को भी राहत मिली है और उसके वे स्वयंसेवक भी प्रसन्न है- जिनसे कुछ समयोपरांत प्रधानमंत्री को लोकसभा चुनाव 2019 के लिए काम लेना है। मोहन भागवत नहीं तो कोविन्द ही सही, अर्थात मोहन=’गोविन्द’ के स्थान पर कोविन्द भी चलेगा, बात तो कुल मिलाकर एक ही हुई। अब संघ भी कहने लगा है-‘भज कोविन्दम् हरे हरे।’
प्रधानमंत्री मोदी अपनी विदेश यात्रा पर जा रहे हैं। इस बार वह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलने वाले हैं। वह नहीं चाहते थे कि ट्रम्प से भेंट के समय उनके मस्तिष्क में देश के राष्ट्रपति के चुनाव की चिंताएं कहीं लेशमात्र भी हों। वह निश्चिंत होकर अपनी अंतर्राष्ट्रीय भूमिका का निर्वाह करना चाहते थे, और रामनाथ कोविन्द का नाम राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तावित कराकर उन्होंने यह कार्य भी पूर्ण कर लिया है।
श्री कोविन्द पेशे से अधिवक्ता रहे हैं, और विधि के अच्छे ज्ञात हैं। उन्हें संविधान का अच्छा ज्ञान है। शरद यादव ने अगले राष्ट्रपति के लिए यह शर्त रखी थी कि भारत का अगला राष्ट्रपति राजनीतिक व्यक्ति हो, कट्टर हिंदूवादी ना हो और संविधान का विशेषज्ञ हो। कोविन्द इन सारी अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं-इस प्रकार शरद यादव की बोलती बंद हो गयी है। प्रधानमंत्री मोदी ने लगता है-श्री कोविन्द का नाम श्री यादव से पूछकर ही रखा है? अब देखते हैं कि श्री यादव अपनी पसंद के भाजपा राजग प्रत्याशी से कैसे दूरी बनाते हैं?
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की कूटनीति ने इस समय भारतीय राजनीति के धुरंधरों की नींद उड़ा दी है। सचमुच श्री कोविन्द का विरोध करना और उनकेे सामने अपना प्रत्याशी लाना सारे विपक्ष के लिए इस समय टेढ़ी खीर हो गया है।