प्रह्लाद सबनानी
भारत में पिछले 97 वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के नागरिकों में देशप्रेम की भावना का संचार करने का लगातार प्रयास कर रहा है। वर्ष 1925 (27 सितम्बर) में विजयादशमी के दिन संघ के कार्य की शुरुआत ही इस कल्पना के साथ हुई थी कि देश के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत और व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होने चाहिए। आज संघ, एक विराट रूप धारण करते हुए, विश्व में सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन बन गया है। संघ के शून्य से इस स्तर तक पहुंचने के पीछे इसके द्वारा अपनाई गई विशेषताएं यथा परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग, सभी के कल्याण विकास की कामना व सामूहिक पहचान आदि विशेष रूप से जिम्मेदार हैं।
संघ के स्वयंसेवकों के स्वभाव में परिवार के हित में अपने हित का सहज त्याग तथा परिवार के लिये अधिकाधिक देने का स्वभाव व परस्पर आत्मीयता और आपस में विश्वास की भावना आदि मुख्य आधार रहता है। “वसुधैव कुटुंबकम” की मूल भावना के साथ ही संघ के स्वयंसेवक अपने काम में आगे बढ़ते हैं। वैश्विक स्तर पर कई देशों में तो संघ की कार्य पद्धति पर कई शोध कार्य किए जा रहे हैं कि किस प्रकार यह संगठन अपने 97 वर्षों के लम्बे कार्यकाल में फलता फूलता रहा है एवं किस प्रकार यह समाज के समस्त वर्गों को अपने साथ लेते हुए अपने कई कार्यकर्मों को लागू करने में सफलता अर्जित करता आया है। आज जब कई देशों में अलगाववाद के बीज बोकर भाई को भाई से लड़ाया जा रहा है ऐसे माहौल में संघ भारत के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित कर उनमें सामाजिक समरसता के भाव को जगाने में सफल रहा है।
मुट्ठीभर विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर कई सैंकड़ों वर्षों तक राज किया क्योंकि हम सब एक नहीं थे। इसलिए संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ही देश के लिए समाज को एकजुट करना था, है और रहेगा, जिसे पूर्ण करने हेतु ही परम पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी और आपने एकशः संपत का मंत्र दिया था कि उच्च जाति के हों या निम्न जाति के, पहले अपना अहंकार छोड़कर और दूसरे अपनी लाचारी या हीनता छोड़कर तथा अमीर हों या गरीब, विद्वान हों या अज्ञानी सब एक पंक्ति में खड़े हों, यही संघ का मुख्य उद्देश्य भी है।
समाज और राष्ट्र को प्रथम मानने वाले संघ में व्यक्ति गौण होता है। संघ ने कभी अपना प्रचार नहीं किया और संघ के प्रचारकों या स्वयंसेवकों ने जो दायित्व प्राप्त किए वे भी प्रचार से दूर रहे, संघ का और स्वयंसेवकों का कार्य उनकी लग्न और त्याग देश के सामने है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस लम्बी यात्रा में वैश्विक स्वीकार्यता प्राप्त कर चुका है। व्यक्ति निर्माण, त्याग और राष्ट्र्भक्ति के संस्कार से ओतप्रोत संघ कार्य आज दुनिया के सम्मुख है। आपदा में अद्वितीय सेवाकार्य और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता के संघ के गुणों को विरोधी भी स्वीकारते हैं।
संघ की योजना प्रत्येक गांव में, प्रत्येक गली में अच्छे स्वयंसेवक खड़े करने की है। अच्छे स्वयंसेवक का मतलब है जिसका अपना चरित्र विश्वासप्रद है, शुद्ध है। जो सम्पूर्ण समाज को, देश को अपना मान कर काम करता है। किसी को भेदभाव से शत्रुता के भाव से नहीं देखता और इसके कारण जिसने समाज का स्नेह और विश्वास अर्जित किया है। संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा है। संघ की कार्यपद्धति में पंथ – उप पंथ, जातीय मतभेद आदि बातें उपस्थित हो ही नहीं सकतीं क्योंकि संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज में एकता लाने की दृष्टि से कार्य करता है। संघ में छुआ छूत की भावना तो कभी की समाप्त हो चुकी है क्योंकि संघ में सभी जातियों के लोग एक झंडे के नीचे काम करते हैं।
हाल ही के समय में देश भर में संघ का कार्य बहुत तेजी से फैला है। दैनिक शाखाओं में 61 प्रतिशत शाखाएं छात्रों की हैं और 39 प्रतिशत व्यवसायी शाखाएं हैं। संघ की दृष्टि से देशभर में 6506 खंड हैं, इनमें से 84 प्रतिशत से अधिक खंडों में शाखाएं हैं। 59,000 मंडलों में से लगभग 41 प्रतिशत से अधिक मंडलों में संघ का प्रत्यक्ष शाखा के रूप में कार्य है। 2303 नगरीय क्षेत्रों में से 94 प्रतिशत नगरों में शाखा का कार्य चल रहा है एवं आने वाले दो वर्षों में सभी मंडलों में संघ की शाखा हो, ऐसा प्रयास किया जा रहा है। संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ कार्य एक लाख स्थानों तक ले जाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। 2017 से 2022 तक संघ की वेबसाइट में ‘ज्वॉइन आरएसएस’ के माध्यम से 20 से 35 आयु वर्ग के लगभग 1 लाख से 1.25 लाख युवाओं ने प्रतिवर्ष संघ से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की है।
कोरोना महामारी के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के साथ मिलकर सक्रियता के साथ सेवा कार्य किया था। लगभग 5.50 लाख स्वयंसेवकों ने महामारी के पहले दिन से ही सेवा कार्य प्रारम्भ कर दिया था तथा पूरे समय समाज के साथ सक्रिय सहयोग किया।। विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां बहुत बड़ी संख्या में मठ, मंदिर, गुरुद्वारों से बहुत बड़ा वर्ग सेवा कार्य के लिए निकला। यह एक जागरूक राष्ट्र के लक्षण हैं। साथ ही संघ द्वारा धर्म जागरण, कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, गौसंवर्धन एवं ग्रामीण विकास का कार्य बहुत अच्छी मात्रा में एवं अच्छी गति के साथ चलाया जा रहा है।
संघ द्वारा हाल ही के समय में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सेवा कार्य करने वाले संगठनों को साथ लेकर देश के हित में कुछ नवोन्मेष कार्य करने का प्रयास भी किया गया है। देश में बेरोजगारी कम करने एवं देश के नागरिकों को स्वावलंबी बनाए जाने के पवित्र उद्देश्य से स्वावलम्बन कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए प्रेरणा प्रदान करने के साथ ही इस सम्बंध में आवश्यक जानकारी भी उपलब्ध कराई जाती है। कुछ राज्यों के स्थानीय इलाकों में तो एक वृहद सर्वे के माध्यम से यह पता लगाने का प्रयास भी किया गया कि इन स्थानीय इलाकों में किस प्रकार के रोजगार की आवश्यकता है एवं किस प्रकार के कुटीर एवं लघु उद्योग इन इलाकों में प्रारम्भ किये जा सकते हैं ताकि इन इलाकों में इन बेरोजगार युवाओं द्वारा इन उद्योगों को प्रारम्भ कर अन्य युवाओं के लिए भी रोजगार के नए अवसर निर्मित किए जा सकें। साथ ही, स्थानीय उद्योगों से भी आग्रह किया गया कि वे स्थानीय लोगों को ही रोजगार प्रदान करने के प्रयास करें ताकि इन इलाकों से युवाओं के पलायन को रोका जा सके। स्वावलम्बन योजना के अंतर्गत स्थानीय स्तर पर ही युवाओं में कौशल विकसित करने हेतु भी प्रयास किए जा रहा हैं।
इसी प्रकार ग्राम विकास और कृषि क्षेत्र में विशेष दृष्टि रखते हुए संघ ने भूमि सुपोषण अभियान की शुरूआत भी की है। इस अभियान के अंतर्गत कृषि योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति में आई कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि संघ ने इस अभियान को आगे बढ़ाने हेतु, इस क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठनों एवं संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करने का निर्णय लिया है। परंतु, पूरे देश में फैले संघ के स्वयंसेवकों के नेटवर्क का संगठित उपयोग कर इस अभियान को बहुत सफल बनाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। इस अभियान को एक सामाजिक अभियान के रूप में भारत के सभी ग्रामों में चलाया जा रहा है। साथ ही, भारत के पर्यावरण में सुधार लाने की दृष्टि से संघ ने बाकायदा एक नई पर्यावरण गतिविधि को ही प्रारम्भ कर दिया है, जिसके अंतर्गत देश में प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करने का अभियान प्रारम्भ किया गया है और देश में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की मुहिम प्रारम्भ की गई है।
संघ पूर्व में भी लगातार यह प्रयास करता रहा है कि देश को विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु देश में ही निर्मित वस्तुओं के उपभोग को बढ़ावा मिले एवं स्वदेशी को प्रोत्साहन मिले। साथ ही, देश में आर्थिक विकेंद्रीकरण होना चाहिए ताकि ग्रामीण स्तर पर कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना को बल मिले एवं स्थानीय स्तर पर उत्पादों का न केवल निर्माण हो बल्कि इन उत्पादों की खपत भी स्थानीय स्तर पर होती रहे। उद्यमिता को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से भी प्रयास किए जा रहे हैं ताकि देश का युवा नौकरी करने वाला नहीं बल्कि रोजगार उत्पन्न करने वाला बने।
यूं तो संघ में अलग अलग प्रकार की कई बैठकें होती हैं परंतु इनमें सबसे बड़ी एवं निर्णय की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण बैठक प्रतिनिधि सभा के रूप में होती है। इस वर्ष यह बैठक 12 मार्च से 14 मार्च के बीच हरियाणा के समालखा (जिला पानीपत) में संपन्न हुई। इस बैठक में संघ कार्य की समीक्षा एवं आगामी वर्ष 2023-24 के लिए संघ की कार्य योजना तैयार की गयी। इसके साथ ही कार्यकर्ता निर्माण व प्रशिक्षण, संघ शिक्षा वर्गों की योजना, शताब्दी विस्तार योजना एवं कार्य के दृढ़ीकरण और देश की वर्तमान स्थिति पर विचार एवं महत्वपूर्ण विषयों पर प्रस्ताव भी पारित हुए। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक में परम पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, सभी सह सरकार्यवाह, अखिल भारतीय कार्यकारिणी, क्षेत्र व प्रांत कार्यकारिणी, संघ के निर्वाचित अखिल भारतीय प्रतिनिधि, सभी विभाग प्रचारक तथा विविध संगठनों के निमंत्रित कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।