चीन के अंतर्गत अरूणाचल ही नहीं पूर्व के सभी सात प्रांत तथा आज के चीन का भी बहुत बड़ा भाग सम्मिलित था। यहां तक कि कम्बोडिया तक यह प्रांत था। परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि हम अरूणाचल आदि अपने प्रांतों पर चीन की दावेदारी स्वीकार कर लें। इसका अभिप्राय स्पष्ट है कि चीन ही उस समय के आर्यव्रत अर्थात आज के भारतवर्ष का एक प्रांत था। जिससे स्पष्ट है कि भारत और चीन के बीच अंग्रेजों ने जो मैकमहोन रेखा खींची है वह भी काल्पनिक है और इतिहास के तथ्यों से मेल नहीं खाती। यदि चीन भारत के किसी भू-भाग को अपना कहता है तो उसे यह भी पता होना चाहिए कि वह स्वयं ही कभी के भारत का एक अंग है। इसी प्रकार वर्तमान नेपाल भारत के विदेह नामक प्रांत से जाना जाता रहा है। इसकी राजधानी मिथिला थी। जिसे आजकल जनकपुर कहा जाता है, जो नेपाल में स्थित है। वैदेह जनक इसी नगरी के राजा थे, जो कि सीताजी के पिता थे।
कभी मगध के अधीन तिब्बत और नेपाल भी रहे थे। त्रिविष्टप तो तिब्बत का प्राचीन नाम है जहां से उतरकर आर्य लोग शेष भारत में फैले थे। यह प्रदेश ही प्राचीनकाल में मानव सृष्टि का उद्गम स्थल माना गया है। ईरान कभी आर्यन प्रदेश था तो अफगानिस्तान उप-गण-स्थान के नाम से जाना जाता था। ईरान के राजा तो अपने नाम के साथ सदा ‘आर्य मेहर’ (सूर्यवंशी आर्य) शब्द का प्रयोग करते रहे हैं। वहां की हवाई उड़ानों का नाम ‘आर्यन’ ही है।
ईरान में आज तक बच्चों को विद्यालयों में यही पढ़ाया जाता है कि आर्य लोग भारत से यहां आये। जबकि भारत में इसका विपरीत पढ़ाया जाता है। इस उल्टे को यहां सीधा नहीं किया जा सकता। क्योंकि कुछ लोगों को आपत्ति होती है कि ऐसा करने से भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
यह प्राचीन भारत अपने स्वरूप में सन् 1876 तक लगभग ज्यों का त्यों बना रहा। उस समय तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, नेपाल, तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश इत्यादि देशों का कोई अस्तित्व नहीं था। ये सारा भूभाग भारतवर्ष कहा जाता था। कहने का अभिप्राय है कि इस समय तक भी भारतवर्ष अपने विशाल स्वरूप में बना हुआ था।
अंग्रेजों ने 26 मई सन् 1876 को रूस की साम्राज्यवादी नीति से बचने के लिए भारत को प्रथम बार विभाजित किया और अफगानिस्तान नाम के एक ‘बफर स्टेट’ की स्थापना कर उसे स्वतंत्र देश की मान्यता दी। तब भारत के देशी नरेश इतने दुर्बल और राष्ट्रभक्ति से हीन हो चुके थे कि उन्होंने इस विभाजन को विभाजन ही नहीं माना। उन लोगों ने बड़े सहज भाव से इस पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी।
इतिहास में इस घटना को विभाजन के रूप में दर्शित नहीं किया गया। आज तक हम वही पढ़ रहे हैं जो अंग्रेजों ने इस विषय में लिख दिया था। इसके पश्चात सन् 1904 में नेपाल को तथा सन् 1906 में भूटान और सिक्किम को भारत से अलग किया गया। बाद में सिक्किम ने सन् 1974-75 में भारत में अपना विलय कर लिया, जबकि नेपाल के विलय प्रस्ताव को रूस के समर्थन के बाद भी नेहरू जी ने सन् 1955 में अस्वीकार कर दिया। यह नेहरूजी की बहुत बड़ी भूल थी, यदि नेपाल हमारे साथ होता तो आज भारत प्राकृतिक संपदाओं में सर्वाधिक समृद्घ राष्ट्र होता।
अंग्रेज शासक अपने साम्राज्य की सुरक्षार्थ निहित स्वार्थों में देश को बांटता गया और नये-नये देश इसके मानचित्र में स्थापित करता गया और हमने कुछ नहीं किया। सन् 1914 में अंग्रेजों व चीन के मध्य एक समझौता हुआ जिसके अनुसार तिब्बत को एक ‘बफर स्टेट’ की मान्यता दी गयी। मैकमहोन रेखा खींचकर हिमालय को विभाजित करने का अतार्किक प्रयास किया गया, जो भूगोल के नियमों के विरूद्घ था।
सन् 1914 में अंग्रेजों व चीन के मध्य एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार तिब्बत को एक ‘बफर स्टेट’की मान्यता दी गयी। मैकमहोन रेखा खींचकर हिमालय को विभाजित करने का अतार्किक प्रयास किया गया, जो भूगोल के नियमों के विरूद्घ था। सन् 1911 में अंग्रेजों ने श्रीलंका और सन् 1934 में बर्मा को अलग देश की मान्यता दे दी।  
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)

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