जब सड़क के बिना ज़िंदगी ठहर जाए

गीता कुमारी
लमचूला, उत्तराखंड

देश के बुनियादी ढांचों में विकास के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारें लगातार प्रयासरत हैं. इस समय देश में सड़कों के विकास पर तेज़ी से काम हो रहा है. भारतमाला परियोजना हो या स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की बात करें, इन परियोजनाओं ने देश में सड़कों की तस्वीर बदल दी है. राष्ट्रीय राजमार्गों की दशा में तेज़ी से सुधार हुआ है. इसकी वजह से केवल शहर ही नहीं बल्कि गांव में भी विकास हुआ है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से गांवों की सड़कों की हालत में काफी सुधार हुआ है. जिन गांवों में अभी तक सड़कें नहीं पहुंची हैं, इस योजना के माध्यम से वहां सड़कों के विकास का काम तेज़ी से चल रहा है. इस योजना ने शहरों की तरह गांवों के विकास की अवधारणा को भी मज़बूत किया है. इसके कारण गांवों में रोज़गार के अवसर बढ़े हैं, जिसके कारण पलायन में कुछ हद तक कमी आई है.

लेकिन देश के अभी भी कुछ ऐसे गांव हैं जिसे आज तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लाभ नहीं मिल सका है. जिसके कारण न केवल यहां की सड़कें बदहाल हैं बल्कि गांव का विकास भी ठप्प पड़ गया है. ऐसा ही एक गांव पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का लमचूला है. जहां पक्की सड़कों के अभाव में विकास दम तोड़ता नज़र आ रहा है. ग्रामीणों का ऐसा कोई तबका नहीं है जिसे इसकी वजह से परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है. चाहे वह बुज़ुर्ग हो, मरीज़ हो या फिर स्कूली छात्र-छात्राएं, सभी यहां की जर्जर सड़क से आये दिन किसी न किसी प्रकार की परेशानियों का सामना करते रहते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि लमचूला गांव में गढ्ढों के बीच सड़कों के कुछ अंश देखने को मिल जाते हैं. इस स्थिति में यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि बारिश के दिनों में यहां के लोगों के लिए किस प्रकार की कठिनाइयां आती होंगी? इस दौरान गांव में यातायात की सुविधा लगभग ठप्प होकर रह जाती है. जिससे लोगों को पैदल ही आना जाना पड़ता है. इस पैदल सफर में भी उनकी मुश्किल ख़त्म नहीं होती है. गड्ढों की वजह से अक्सर लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, जिसमें एक बड़ी संख्या वृद्धों और विद्यार्थियों की है.

इस संबंध में गांव की एक किशोरी नेहा का कहना है कि हमारा स्कूल गांव से 7 किमी दूर है, जहां हमें प्रतिदिन सिर्फ इसलिए पैदल आना जाना पड़ता है क्योंकि ख़राब सड़क की वजह से कोई भी गाड़ियां यहां नहीं आती हैं. जिससे न केवल हमारा समय बर्बाद होता है बल्कि थके होने के कारण पढ़ाई पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. वह कहती है कि यदि घर वाले स्कूली वैन भी लगाना चाहते हैं तो कोई भी यहां आने को तैयार नहीं होता है. उनका तर्क है कि जितना किराया होगा उससे अधिक गाड़ी को ठीक कराने में महीने का खर्च हो जाएगा. वर्षा के दिनों में अधिकतर छात्राएं केवल ख़राब सड़क के कारण मजबूरी में स्कूल आना बंद कर देती हैं. जिससे उनकी पढ़ाई बाधित हो जाती है. नेहा सरकार से अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहती है कि यूं तो सरकार न जाने कितने वायदे करती है और कितने वायदों को पूरा भी करती है. लेकिन गांव में उन्नत सड़क बनाने का उसका वादा आखिर कब पूरा होगा? इस मुद्दे पर स्थानीय जनप्रतिनिधि का उदासीन रवैया भी इस सड़क के विकास में बाधक बन रही है.

सड़क की खस्ता हालत से दीपा देवी भी परेशान हैं. उनका कहना है कि सड़क खराब होने के कारण गांव की महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा कठिनाई तो गर्भवती महिलाओं को होती है. जब उन्हें चेकअप के लिए अस्पताल जाना होता है. वह ख़राब सड़क की वजह से कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाती हैं. जिस कारण कई बार वह चेकअप कराने से वंचित रह जाती हैं. जिससे उनका पैसा और समय दोनों ही बर्बाद हो जाता है. प्रसव के समय उन्हें सही सलामत अस्पताल पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. सड़क की जर्जर स्थिति और मुश्किल समय को देखते हुए गाड़ी वाले भी मनमाना किराया वसूलते हैं. जो आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों के लिए आसान नहीं होता है. सड़क की ख़राब हालत के कारण गांव में कभी भी समय पर एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती है और बारिश के समय तो उसका पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है. वहीं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नीमा देवी की शिकायत है कि उनका सेंटर गांव से मात्र 2 किमी की दूरी पर है, लेकिन ख़राब सड़क की वजह से वह कभी भी समय पर अपने सेंटर नहीं पहुंच पाती हैं. वह कहती हैं कि वर्षा के दिनों में अक्सर मुझे सेंटर बंद रखना पड़ता है क्योंकि ख़राब सड़क की वजह से मेरा उससे गुज़रना संभव नहीं होता है. सड़क की ऐसी जर्जर हालत से खुद गांव के वाहन चालक भी परेशान हैं. उनकी गाढ़ी कमाई का ज़्यादातर पैसा गाड़ी की मरम्मत में ही चला जाता है. वैन चालक दीपक कुमार कहते हैं कि सड़क खराब होने के कारण हमें काफी नुकसान उठाना पड़ता है. जहां हमें पहुंचने में एक घंटा लगनी चाहिए वहां हम 2 से 3 घंटे में पहुंचते हैं. जिससे हमारा समय और तेल दोनों ही बर्बाद होता है. वह कहते हैं कि यदि हम महीने में 10 हजार भी कमाते हैं तो अक्सर गाड़ी की सर्विसिंग में महीने में 15 हजार खर्च हो जाते हैं.

गांव की सरपंच सीता देवी कहती हैं इस संबंध में उन्होंने कई बार संबंधित विभाग के अधिकारियों से बात की लेकिन उनके उदासीन रवैये के कारण आज तक सड़क की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. वह बताती हैं कि सड़क टूटने की वजह से आसपास के घरों को भी नुकसान पहुंचा है. वहीं ग्राम प्रधान पदम राम का कहना है कि उन्होंने भी कई बार अधिकारियों से सड़क की मरम्मत के लिए गुहार लगाई है लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है. उन्होंने लिखित रूप से उच्च अधिकारियों को भी स्थिति से अवगत करा दिया है, लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है. बहरहाल गांव वालों को उम्मीद है कि एक दिन अधिकारियों को उनके गांव की जर्जर सड़क को ठीक कराने का विचार ज़रूर आएगा और उन्हें भी सड़क पर चलना आसान हो जाएगा. लेकिन वह दिन आखिर कब आएगा? (चरखा फीचर)

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