पाकिस्तान में नई सोच जरुरी

अफगानिस्तान के इतिहास में कल का दिन ऐतिहासिक माना जाएगा क्योंकि इस दिन ‘इसाफ’ नामक अंतरराष्ट्रीय फौज की औपचारिक वापसी हो गई है। पिछले 13 साल में इस फौज ने अपने लगभग 3500 जवान कुर्बान किए, करोड़ों-अरबों डॉलर बहाए और काबुल की सरकारों को अब तक टिकाए रखा। उस पर न तो तालिबान का अधिकार होने दिया और न ही अफगानिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनने दिया। इस बीच हामिद करजई की सरकार ने भरसक कोशिश की कि अफगानिस्तान की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति पटरी पर आ जाए लेकिन ‘इसाफ’ की फौजें अपने पीछे जैसा अफगानिस्तान छोड़कर जा  रही हैं, वह इराक से भी  बदतर हाल में है। हालांकि  इस समय अफगान फौज और पुलिस की संख्या करीब साढ़े तीन लाख है लेकिन यह सवाल खड़ा हुआ है कि इन फौजियों की वापसी के बाद वहां कहीं अराजकता न फैल जाए।

इस दृष्टि से आजकल पाकिस्तान में जो चल रहा है, वह बहुत शुभ सिद्ध हो सकता है। सभी देशों को यह भय था कि पश्चिमी फौजों की वापसी होते ही पाकिस्तान अत्याधिक सक्रिय हो जाएगा। वह तालिबान के जरिए काबुल पर कब्जा कर लेगा लेकिन तालिबान और पाकिस्तानी फौज के बीच जून से खुला युद्ध शुरु हो गया है और पेशावर के हत्याकांड ने उसे नई धार दे दी है। पहले तो सिर्फ पाकिस्तान के कुछ राजनीतिज्ञ ही तालिबान और आतंकवादियों के खिलाफ बोलते थे लेकिन अब तो फौज ने उन्हें खत्म करने की कसम खाली है। इसका उल्टा भी हो रहा है। याने तालिबान ने भी फौजियों पर सीधा हमला बोल दिया है। पहले पेशावर हत्याकांड किया और अब अदनान रशीद नामक तालिबान कमांडर ने खुलेआम फौज पर आरोप लगाए हैं कि उसने किस तरह से कश्मीर और अफगानिस्तान में तालिबान को अपना मोहरा बनाया है। कश्मीर की झूठी आजादी के लिए फौज ने पाकिस्तानी नौजवानों की बलि चढ़ा दी है।

रशीद ने जो कुछ कहा है, वह सबको पहले से पता है लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि पाकिस्तानी फौज काबुल और कश्मीर के बारे में काफी नए ढंग से सोचने के लिए मजबूर हो जाएगी। यदि अब भी वह पुराने ढर्रे पर चलती रही तो न सिर्फ पाकिस्तान की जनता उसके खिलाफ हो जाएंगी बल्कि अमेरिका आदि देश भी कहीं पाकिस्तान की आर्थिक और सैनिक मदद बंद करने का फैसला न ले लें। ऐसा होना पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए खतरनाक होगा। यदि पाकिस्तान में कोहराम मच गया तो पूरे दक्षिण एशिया की स्थिति डावांडोल हो जाएगी।

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