गीता मेरे गीतों में , गीत 33 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

सर्व व्यापक में दृष्टि से उत्थान

मैत्री का सम्मान करो , कुछ करुणा का भी ध्यान करो ।
मुदिता भी अपनाइए समय पर उपेक्षा का बर्ताव करो।।

सुखीजनों को देख कीजिए – प्रेमपूर्ण मित्रता का अनुबंध।
दु:खीजनों को देख कीजिए, करुणा का दया पूर्ण संबंध।।

करते हों जो पुण्य जगत में , उनसे हर्षित हो मिला करो।
पापी जन यदि मिलें कहीं पर,उपेक्षा उनकी किया करो।।

तिरस्कार करना नहीं उचित जो दुखिया कहीं मिलें तुमको।
प्रोत्साहित उन्हें करते रहना , जब पुण्यात्मा मिलें तुमको ।।

पापियों से दूर रहो पर, वाणी से मत कड़वा बोलो।
मत मीठे रहो गुड़ जैसे, मत नीम सी कड़वाहट घोलो।।

व्यवहार जगत में सबसे उत्तम, आधार बनाता बढ़ने का।
वाचिक तप को भंग किया तो कारण बनता है गिरने का।।

भयंकर युद्ध हुए हैं जग में, व्यवहार की गति बिगड़ने से।
विनाश के बाद लगती सदियां, बिगड़े हालात सुधरने में ।।

सब कुछ अनुकूल चले सबके, इस हेतु वाचिक तप करना।
जो भी इसमें बाधा पहुंचाए निसंकोच उसी का वध करना।।

कौरव दल ने दी एक चुनौती, रण क्षेत्र सजाया है आकर।
इनको प्रत्युत्तर देना होगा, हर हथियार युद्ध में आजमाकर।।

जो धर्म छोड़- अधर्म अपनाते, उनसे धरती पर भार बढ़े।
जो अनीति युक्त व्यवहार करें , उनसे धरती पर पाप बढ़े।।

जो अधर्म – अनीति के पोषक हैं उनका संहार उचित होता।
जो धर्म व नीति से प्रेम करें , उनका उद्धार उचित होता।।

मत भय संकोच संदेह करो पापी का विनाश करने में कभी।
धरती का बोझ हल्का करने में कब होता है पाप कभी ?

सबमें मुझको – सबको मुझ में जो देखा करता है अर्जुन !
उसका कभी नाश नहीं होता मेरी गहरी बात सुनो अर्जुन !!

ईश्वर को सबमें व्यापक जाने वह पतित कभी नहीं होता है।
चिंतन अजर ,अमर अविनाशी का व्यर्थ कभी नहीं होता है।।

जो प्रभु के सुमिरण में चूक करे, वह परमेश्वर को नष्ट करे।
जो उसकी आज्ञा के उलट चले, वह अपना जीवन नष्ट करे।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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