अब “हाथ जोड़ो आंदोलन” नहीं “भारत छोड़ो आंदोलन” होना चाहिए

भारत में एक बार नहीं अनेक बार भारत छोड़ो आंदोलन चलाए गए हैं, अंतर केवल इतना है कि देश, काल , परिस्थिति के अनुसार उन आंदोलनों को भारत छोड़ो आंदोलन का नाम नहीं दिया गया। इसके साथ-साथ भारत के छद्म इतिहासकारों ने देश के क्रांतिकारियों के साथ विश्वासघात करते हुए उनके पुरुषार्थ और देशभक्ति को इतिहास में उचित सम्मान भी नहीं दिया। यदि सच्चाई के साथ इतिहास को लिखा जाए और इतिहास से पूछा जाए कि भारत में कब कब और किन-किन योद्धाओं ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो सबसे पहला नाम क्रांति पुरुष राजा दाहिर सेन का आएगा, जिसने सन 712 ई0 मे मोहम्मद बिन कासिम को हिंदुस्तान छोड़ो की तर्ज पर चुनौती दी थी। इसके पश्चात राजा जयपाल, राजा आनंदपाल, राजा अनंगपाल, पृथ्वीराज चौहान आदि वीर राजा भी मां भारती के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त करते हुए अपना आंदोलन विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध जिस प्रकार चला रहे थे ,उनके उस आंदोलन के पीछे भी “विदेशियो ! भारत छोड़ो” का गहरा भाव ही था।
गजनी, गौरी, कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन खिलजी आदि सल्तनत कालीन सुल्तानों के विरुद्ध भारत के योद्धाओं के जितने भी संघर्ष हुए, उन सबको भी भारत छोड़ो आंदोलन का नाम ही दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार बाबर से लेकर औरंगजेब के शासनकाल में मुगलों के विरुद्ध मां भारती की मुक्ति के लिए लड़ने वाले महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा उदय सिंह, महाराणा प्रताप सिंह, छत्रसाल, शिवाजी महाराज ,बंदा बैरागी, पंजाब के सिख गुरु और उन जैसे अन्य अनेक क्रांतिकारी राजा महाराजा साधारण प्रजा के लोग जिस आंदोलन को चला रहे थे, वह भी “मुगलो ! भारत छोड़ो आंदोलन” ही था। इनके पश्चात 1857 की क्रांति के समय हमारे जितने भर भी क्रांतिकारी विदेशियों को भगाने के लिए उठ खड़े हुए थे उनके उस आंदोलन का मूल उद्देश्य जी “अंग्रेजो ! भारत छोड़ो” ही था।
इस सारे रोमांचकारी इतिहास के तथ्यों के रहते यह कैसे कहा जा सकता है कि भारत के लोगों ने पहली बार 8 – 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चलाया था ? विशेष रूप से तब जब इस आंदोलन के मुखिया गांधी जी थे , जो अंग्रेजों की चाटुकारिता के लिए जाने जाते थे।
जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था तब 8 अगस्त 1942 को भारत में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया था। गांधीजी का यह आंदोलन भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के पूर्व के किसी भी आंदोलन की बराबरी का आंदोलन नहीं था। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि पूर्व के क्रांतिकारी आंदोलन जो कि राजा दाहिर सेन से लेकर के अब तक लड़े गए थे, वे सारे के सारे विदेशियों को मारकाट करके भगाने के प्रति संकल्पित होकर लड़े गए थे। जबकि यह आंदोलन गांधी जी के “करो या मरो” के नारे के उपरांत भी विदेशी सत्ताधारियों के सामने हाथ जोड़कर खड़ा होने वाला आंदोलन था। इस आंदोलन का विदेशी सत्ताधारियों पर तनिक सा भी प्रभाव नहीं पड़ा था । इसका कारण यह था कि यह आंदोलन डेढ़ – दो दिन में ही समाप्त हो गया था। क्योंकि कांग्रेस के सभी बड़े नेता अंग्रेजों ने उठाकर जेल में डाल दिए थे। जिससे आंदोलन की हवा निकल गई थी, किंतु स्वाधीनता के पश्चात देश की सत्ता कांग्रेस के हाथों में चली गई, इसलिए इस आंदोलन को महिमामंडित करके इतिहास में स्थान दे दिया गया।
जिस देश के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने कहा था कि :-

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत।
लक्ष्मण बाण संभालेहु , भय बिन होय न प्रीत।।

उस देश में बार-बार असहयोग आंदोलन , सविनय अवज्ञा आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन का ही दूसरा रूप भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलन हाथ जोड़ जोड़ कर चलाए जा रहे थे तो यह देश की मूल चेतना के साथ क्रूर उपहास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। हाथ जोड़ जोड़कर जिन अंग्रेजों से भारत छोड़ो की बात की जा रही थी, वह चुपचाप भारत तोड़ो की नींव रख रहे थे और 1947 में जब वे भारत को छोड़कर गए तो उसे तोड़कर भी गए। हाथ जोड़ जोड़कर भारत छोड़ो की बात कहने वालों की यह सबसे बड़ी पराजय थी कि वे अखंड भारत लेने में असफल हो गए थे।
जो लोग आज भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ मना रहे हैं उन्हें उपरोक्त वर्णित तथ्यों और दुख भरी दास्तान पर भी विचार करना चाहिए। हम मिथ्या ढंग से थोपे गए प्रतीकों को, महापुरुषों को, उनके विचारों को, उनकी विचारधारा को जब तक अपने लिए अभिशाप नहीं मानेंगे तब तक हम सशक्त ,सबल, सक्षम, समर्थ भारत का निर्माण नहीं कर पाएंगे।
आज देश में जिस प्रकार देश विरोधी शक्तियां सक्रियता के साथ सिर उठा रही हैं उनसे भी हमें निपटना होगा। उनके विरुद्ध फिर एक भारत छोड़ो आंदोलन करने की आवश्यकता है। पर ध्यान रहे कि यह भारत छोड़ो आंदोलन हाथ जोड़ो आंदोलन ना बने बल्कि भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में खड़ा हो और भारत छोड़ो आंदोलन के नारे के साथ आगे बढ़े। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि यह आंदोलन किसी भी स्थिति में गांधीवाद का अनुकरण करने वाला ना हो बल्कि यह हमारे उन इतिहास नायकों वीर योद्धाओं की तर्ज पर लड़ा जाने वाला आंदोलन हो जिन्होंने विभिन्न काल खंडों में केवल और केवल एक ही उद्घोष किया किया था कि विदेशी आक्रमणकारियो ! तुर्को, मुगलो, अंग्रेजो, भारत छोड़ो, अन्यथा तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे। जब तक टुकड़े टुकड़े गैंग को यह नहीं बताया जाएगा कि हम टुकड़े-टुकड़े करना भी जानते हैं , तब तक देश की एकता ,अखंडता और संप्रभुता की रक्षा होना असंभव है।

9 अगस्त 2022

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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