Categories
विविधा

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में विधान सभा चुनाव को लेकर उठा विवाद

                   डॉ0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री    

     किसी भी न्यायालय में जो वक़ील वकालत करते हैं , उनकी एक अपनी संस्था रहती है , जिसे बार एसोसिएशन कहा जाता है । आम आदमी की भाषा में कहना हो तो इसे उस न्यायालय की वक़ील यूनियन कहा जा सकता है । इस बार एसोसिएशन के बाक़ायदा चुनाव होते हैं । एसोसिएशन न्यायालय में वकालत करने वाले वकीलों की छोटी मोटी सुविधाओं इत्यादि के बारे में विचार करती रहती है । बार एसोसिएशन का एक महत्वपूर्ण काम वहाँ वकालत करने वाले वकीलों को चैम्बर अलाट करना भी होता है । जिन न्यायालयों में चैम्बर नहीं बने होते वहाँ इसकी जरुरत ही नहीं पडती । वहाँ वकीलों के अपने अपने तख्तपोश होते ही हैं ।

      इसी प्रकार की एक नहीं बल्कि दो बार एसोसिएशन जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के वकीलों की भी है । एक जम्मू बार एसोसिएशन और दूसरी कश्मीर बार एसोसिएशन । पिछले दिनों कश्मीर बार एसोसिएशन ने वकीलों को चैम्बर अलाट किये । लेकिन बार के दो सदस्यों मंज़ूर अहमद गनायी और नज़ीर अहमद मलिक को चैम्बर अलाट नहीं किये गये । दोनों पुराने वक़ील हैं । बार के सदस्य हैं । जब दोनों ने बार एसोसिएशन के प्रधान मियाँ अब्दुल क्यूम से  पूछा कि उन्हें चैम्बर क्यों अलाट नहीं किये गये तो मियाँ जी का उत्तर और भी आश्चर्यजनक था । मियाँ जी ने कहा कि आप दोनों को बार एसोसिएशन से निकाल दिया गया है क्योंकि आप ने जम्मू कश्मीर विधान सभा का चुनाव लड़ा है । मियाँ जी के अनुसार कश्मीर बार एसोसिएशन , राज्य विधान सभा के लिये चुनाव करवाने के चुनाव आयोग के अधिकार को स्वीकार नहीं करती क्योंकि सुरक्षा परिषद ने राज्य में जनमत संग्रह के लिये प्रस्ताव पारित किया हुआ है । उसका पालन किये बिना भारत सरकार जम्मू कश्मीर में विधान सभा के जो भी चुनाव करवाती है , वे असंवैधानिक हैं और बार एसोसिएशन का कोई वक़ील सदस्य यदि इन चुनावों में भाग लेता है तो वह असंवैधानिक गतिविधियों का दोषी है और उसको चैम्बर दिये जाने की बात तो दूर उसकी सदस्यता भी ख़ारिज की जाती है ।

      ज़ाहिर है इन दोनों वकीलों के पास जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के सिवा कोई चारा ही नहीं था । उस याचिका पर न्यायालय ने नोटिस आफ मोशन  जारी कर दिया । इसके उत्तर में मियाँ जी ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी वही कथा सुनानी शुरु कर दी । उनके अनुसार हमने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव क्रमांक 51 और 57 , न्यायालय के रिकार्ड में लगा दिया है । इन प्रस्तावों के अनुसार जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाने की अनुमति नहीं है । प्रस्तावों में स्पष्ट लिखा है कि यदि भारत सरकार चुनाव करवाती भी रहती है तो उन चुनाव परिणामों का कश्मीर के स्टेटस पर कोई असर नहीं पड़ेगा । मियाँ के अनुसार बार एसोसिएशन की स्पष्ट घोषित नीति है कि एसोसिएशन संयुक्त राष्ट्र संघ के इन प्रस्तावों की रोशनी में कश्मीर समस्या हल करने की कोशिश करेगी । इसलिये उसका कोई सदस्य यदि राज्य की विधान सभा का चुनाव लड़ता है तो वह एसोसिएशन की नीति के ख़िलाफ़ चलता है और उसको बार का सदस्य नहीं रखा जा सकता ।

     इस मरहले पर बहस में हस्तक्षेप करते हुये वक़ील शबनम गनी लोन ने कहा कि यदि मैं उच्चतम न्यायालय की बार एसोसिएशन की सदस्य की हैसियत में मुख्य न्यायाधीश के सामने यह कहूँ कि कश्मीर बार एसोसिएशन का अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सामने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को लेकर भाषण दे रहा है , जिसका अर्थ है कि वह राज्य को भारत का हिस्सा नहीं मानता तो उसका लाईसैंस रद्द कर दिया जायेगा । न्यायालय में बहस के इस मोड़ पर बार के अध्यक्ष मियाँ जी और तैश में आ गये । कहने लगे , मुझे इस लाईसैंस की परवाह नहीं है । तुम अपना लाईसैंस ले लो । मेरे लिये लाईसैंस से ज़्यादा महत्वपूर्ण आज़ादी के स्व निर्णय का अधिकार है । मियाँ जी ने और तैश में आते हुये कहा कि ये वक़ील सरकार के ख़िलाफ़ , या चाहें तो हाई कोर्ट के ख़िलाफ़ या फिर जिस के भी ख़िलाफ़ चाहें याचिका दायर कर सकते हैं । लेकिन बार एसोसिएशन के ख़िलाफ़ याचिका दायर करने का इन्हें कोई अधिकार नहीं है ।
मियाँ जी के अनुसार कश्मीर को लेकर बार एसोसिएशन की अपनी एक स्पष्ट नीति है , उसको चुनौती देने का अधिकार तो इसके सदस्यों को भी नहीं है । चुनौती देने वाले ये दो वक़ील तो अब बार के सदस्य भी नहीं रहे हैं । मियाँ का कहना है कि बार एसोसिएशन का जो सदस्य भारत द्वारा करवाये गये चुनाव में हिस्सा लेता है उसकी सदस्यता स्वत समाप्त हो जाती है ।

अब राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता शब्बीर अहमद नायक ने जो स्टैंड लिया , वह इन दोनों की बहस से भी ज़्यादा रुचिकर था । उन्होंने कहा कि इसमें सरकार को कुछ लेना देना नहीं है क्योंकि राज्य की प्रोजैक्ट निर्माण कारपोरेशन ने  ये चैम्बर बनाये थे , लेकिन उन्होंने अभी तक सरकार के न्याय विभाग को सौंपे नहीं हैं । जबकि वस्तुस्थिति  यह है कि इन चैम्बरों का उद्घाटन २०१३ में ही न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने किया था और बार एसोसिएशन ने इन्हें वकीलों में आवंटित भी कर दिया था ।

      वैसे केवल रिकार्ड के लिये , २०१० में इन्हीं मियाँ जी ने हाई कोर्ट के बैंच को एक सीधे सपाट प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट बता दिया था कि मैं भारतीय नहीं हूँ । मुख्य प्रश्न यह है कि कश्मीर की बार एसोसिएशन ऐसा संविधान बनाती है जिसमें स्पष्ट तौर पर राज्य को भारत का हिस्सा नहीं माना गया है । उस एसोसिएशन का प्रधान आधिकारिक तौर पर हाई कोर्ट के एक बैंच के सामने कश्मीर को लेकर लगभग वही भाषण दे रहा है जो हुर्रियत के अध्यक्ष सैयद अहमद शाह गिलानी आम तौर पर अपनी जनसभाओं में देते हैं या फिर ग़ुलाम नबी फ़ाई अमेरिका में बैठ कर पाकिस्तान की आई एस आई के इशारे पर सैमीनारों में बोलते बुलाते हैं ।

      अब इस पूरी घटना को लेकर उठने वाला प्रश्न यह नहीं है कि हाई कोर्ट में मियाँ जी का यह देशद्रोही भाषण अबाध गति से चलता रहा । मुख्य प्रश्न यह है कि तथाकथित नैशनल मीडिया इस अनैशनल घटना को लेकर चुप्पी क्यों साध गया ? जो मीडिया करीना कपूर की किसी पत्रिका के कवर पर छपी एक फ़ोटो को लेकर सारा दिन हल्ला मचाता रहा , वह मीडिया इस घटना की ख़बर देने से भी बचता रहा । आख़िर किसी एक भी चैनल ने इस घटना पर बहस करवाने की बात तो दूर , इस की ख़बर चलाना भी जरुरी नहीं समझा । जो मीडिया किसी अज्ञात अनाम व्यक्ति के किसी बयान को लेकर सारा दिन बहस करवा सकता है और उस पर फ़तवे भी जारी कर सकता है वह कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियाँ जी के इस भाषण को सिरे से गोल कर गया । मीडिया का यह व्यवहार चिन्ताजनक तो है ही , पर्दे के पीछे की कहानी भी अपने आप बयान करता है ।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version