जो एलओसी पर नहीं हारा वह दिल्ली से हार गया…

 पुण्य प्रसून बाजपेयी

लाइन आफ कन्ट्रोल पर खड़े होकर दुश्मनों का सामना भी किया। तब भी कोई परेशानी नहीं हुई। क्योंकि खुद तय करना था दुश्मनों से दो-दो हाथ करने कैसे हैं। 26/11 हमले के वक्त बतौर कमांडो मैदान में थे।आतंकियों को ठिकाने लगाने में भी कोई परेशानी नहीं थी  हर वक्त जान हथेली पर रखकर ही जिन्दगी जीने वाले सेना का यह कमांडो कभी थका नहीं। रुका नहीं। लेकिन दो दिन पहले दिल्ली में अस्पतालों के हाल ने इसकी रुह कंपा दी। स्वाइन फ्लू का नाम सुनकर मरीज से पहले अस्पताल में कैसी अफरा थफरी मच जाती है और मरीज के इलाज की जगह मरीज को अस्पताल से निकालने में ही अस्पताल का प्रशासन कैसे लग जाता है। उसके बाद दिल्ली के टॉप मोस्ट अस्पतालों की कतार में चाहे निजी अस्पताल हो या सरकारी। स्वाइन फ्लू के इलाज के लिये किसी के पास आईसीयू का बेड तो दूर सुरक्षा हेतु एन 95 किट तक नहीं हैं। और इन हालातों में सेना की वर्दी पहने कमांडो दिल्ली की सड़कों पर छह घंटे तक सिर्फ इसलिये भटकता है कि कही स्वाइऩ फ्लू से प्रभावित उसकी चाची का इलाज हो। सिर्फ एक बेड का इंतजाम कराने के लिये दिल्ली में किस किस के फोन कराने पड़ते हैं और जब बेड मिल जाता है तो इलाज नहीं मिलता। डाक्टर खुद बीमार है। नर्स भी मरीज है। और स्वाइन फ्लू के मरीज के लिये आईसीयू में वेंटिलेटर तक नहीं है। सबकुछ उसी दिल्ली में जिसे डिजिटल से लेकर स्मार्ट बनाने के सियासी नारे लग चुके हैं। दुनिया के नक्शे पर चमकता हुआ दिखाने का एलान हो चुका है। ऐसे में जो जवान कभी सीमा पर नहीं डिगा वह दिल्ली की बदहाली पर डिग गया।

 यह सच दो दिन पहले 11 फरवरी का है। रोहतक में रहने वाली प्रेमा देवी की तबियत बिगड़ी। बेटे ने दिल्ली में अपने चचरे भाई को फोन किया। दिल्ली में तैनात सेना के इस कमांडो ने तुरंत पंजाबी बाद में महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती की व्यवस्था की। प्रेमा देवी को आईसीयू में भर्ती कराया गया। इलाज शुरु हुआ। जांच में जैसे ही एच 1एन1 पाजिटिव पाया गया वैसे ही अस्पताल में अफरा तफरी मच गई। अस्पाताल वालों ने तुरंत प्रेमा देवी को कही और शिफ्ट करने को कहा। दोपहर के दो बजे बकायदा अस्पताल ने अल्टीमेटम दे दिया कि आप मरीज को ले जायें। अन्यथा मुश्किल हो जायेगी । और फिर शुरु हुआ अस्पताल दर असपताल भटकने का सिलसिला। दिल्ली के टॉप मोस्ट निजी अस्पतालों का दरवाजा खटखटाया गया। एक्शन बालाजी। मूलचंद अस्पताल । सेंट स्टीफेन्स अस्पताल। अपोलो और सर गंगाराम अस्पताल। हर जगह से एक ही जबाब मिला कि आईसीयू में बेड खाली नहीं है। हर तरह से कोशिश शुरु हुई। कहीं किसी के कहने से कोई बेड मिल जाये। लेकिन नहीं मिला। फिर सरकारी अस्पतालो के भी चक्कर लगने शुरु हुये। सफदरजंग अस्पताल। सुचेता कृपलानी अस्पताल। एयरपोर्ट अस्पताल। हिन्दुराव अस्पताल। जीटीबी । लोकनायक अस्पताल।

 कहीं आईसीयू में बेड नहीं मिला। रात के आठ बजे तो जवान ने राष्ट्रपति भवन में तैनात अपने सहयोगी को सारी जानकारी बतायी। तो किसी तरह व्यवस्था कर कहा गया कि आरएमएल अस्पताल में जानकारी दे दी गई है। वहा बेड मिल जायेगा। बेड कैसे मिलेगा । इसकी जानकारी अस्पताल के भीतर किसी को नहीं थी। बेड का मतलब था खुद ही खाली बेड देख कर मरीज को लेटा दें। वर्दी में जवान को देखकर अस्पताल में एक नर्स ने बताया कि रिसेप्शन पर जाकर कहां पर्ची भरनी है और मरीज को लाकर बेड पर लेटा देना है। स्वाइन फ्लू से तड़पती प्रेमा देवी अस्पताल के पार्किग में खडी एंबुलेन्स में थी । उन्हें खुद ही उठा कर लाया गया। लिटाया गया । लेकिन आईसीयू में बिना एम95 किट के जायें कैसे। तो जबाब मिला । रुमाल बांध कर चले जाईये । अंदर कई बेड खाली थे। लेकिन इलाज नादारद था। स्वाइन फ्लू वार्ड में तैनात एक डॉक्टर और दो नर्स बीमार थीं। तो कोई देखने वाला नहीं था। स्वाइन फ्लू का सीधा असर सांस लेने पर पड़ता है। लेकिन आईसीयू में वेंटिलेटर तक नहीं था। इस बीच तीन मरीज और पहुंचे । लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कहा बेड खाली नहीं है । चाहिये तो ऊपर से कहला दीजिये। जवान यह सुन अंदर से हिल गया । देश के लिये अपनी जान पर खेलने वाले जवान को समझ नहीं आया कि बेड है लेकिन इलाज नहीं। और बिना इलाज के बेड मिल जाये इसका सुकून भी उपर से कोई फोन कर देगा। उसने सवाल करने शुरु किये । तो वर्दी देखकर जबाब तो किसी ने नहीं दिया लेकिन मरीजों को जगह भी नहीं दी। सिर्फ बेड पर लिटा कर आईसीयू का असर यह हुआ कि दो घंटे बाद करीब साढे दस बजे कार्डिक अरेस्ट हुआ। उसे बाद लंग्स फेल हुये। फिर लीवर फेल हुआ ।

और इस दौर में जांच के लिये इधर उधर भागते-हाफ्ते में रात के एक बज गये। डेढ़ बजे नर्स ने डाक्टर से जानकारी हासिल कर परिजनों को बताया कि प्रेमा देवी नहीं रहीं। लेकिन उनकी मौत स्वाइन फ्लू से हुई है तो वायरस इनके शरीर में है इसलिये खुली बॉडी ले जाना ठीक नहीं है। और तुरंत अंतिम संस्कार करना ही होगा। नही तो शरीऱ के नजदीक आने वाले किसी के भी शरीर में वायरस जा सकते हैं। रोहतक से चली प्रेमा देवी को जिसने भी 10 फरवरी की रात या कहें 11 फरवरी की सुबह देखा और एंबुलेंस में लेट कर दिल्ली ठीक होने के लिये पहुंची प्रेमा देवी का शरीऱ गठरी की तरह एयर टाइट कर 12 फरवरी की तड़के जब रोहतक पहुंचा तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि चौबीस घंटे के भीतर दिल्ली ने इलाज की जगह मौत कैसे दे दी। और तड़के ही अंतिम संस्कार की तैयारी करनी पड़ी। उसी तरह जैसे अस्पताल से बॉडी बांध कर दी गई थी। यानी स्वाइन फ्लू से मरे मरीज को जिसने भी सुना वह स्वाइन फ्लू का नाम सुनकर ही खौफजदा हो गया। दिल्ली में इलाज के नाम पर कैसे क्या हुआ इसे ना बेटे ने ना ही भतीजे ने गांव में किसी को बताया। दिल्ली को लेकर मोह भंग अभी भी किसी का हुआ नहीं है। रोहतक के दो और जिंद के तीन स्वाइन फ्लू के मरीज कल और आज भी दिल्ली पहुंचे। सेना का जवान अब एक ही सवाल कर रहा है कि जब दिल्ली का यह हाल है तो देश का क्या होगा। जहां मरने के लिये वातावरण तैयार किया जा रहा है। इस बीच देश भर में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या चार सौ दस पार कर चुकी है। और प्रधानमंत्री ने विश्व कप क्रिकेट खेलने वाले देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बधाई दी है।

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