वेद की वर्तमान स्तिथि

प्रस्‍तुति: राहुल आर्य

कुछ अपवादों को छोड़कर, वेदार्थ के सम्बन्ध मे अभी तक भी मध्यकालीन पौराणिक आचार्यो तथा आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों का दृष्टिकोण ही मान्य है | चाहे वे आधुनिक शिक्षा पद्धति के विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय हो और चाहे प्राचीन पद्धति के शिक्षा केंद्र हो, सर्वत्र सायण-महीधर तथा मैक्स मूलर-मैकडानल-ग्रिफ़िथ आदि के भाष्य पढ़े उअर पढाये जाते है |

कुछ वर्षों पहले देश के प्रसिद्ध विद्वान एवं शिक्षा शास्त्री डॉक्टर संपूर्णानंद जी ने ‘गणेश’ नामक एक पुस्तक लिखी थी | उस ग्रन्थ मे उन्होंने यजुर्वेद के प्रसिद्ध मंत्र ‘गणानानत्वा………गर्भधम्’ को उद्धृत किया | इस मंत्र पर उव्वट और महीधर कृत अर्थ देकर उन्होंने लिखा-“इस अर्थह को देखकर आश्चर्य होता है, परन्तु दूसरा अर्थ संभव नहीं |” इस और इससे अगले मन्त्रो के द्वारा किये जानेवाले कृत्य को विचित्र, बेहूदा, और अत्यंत अश्लील मानते हुये और उससे प्राप्त होनेवाले पुण्य मे संदेह करते हुये भी उन्होंने लिखा -“भाष्यकारो ने जो अर्थ किया है, वह कपोलकल्पित नहीं है |” उनके इस कथन से यह स्पष्ट है की संपूर्णानंद जी महीधर और उव्वट कृत भाष्य को ठीक मानते हुये वेदों मे अश्लीलता को मानते थे | उन्ही के नाम से स्थापित ‘संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्याललय’ मे वेद के नाम पर यही कुछ पढाया जाता है |

इसी प्रकार भारतीय विद्याभवन द्वारा संचालित संस्थाओ मे वेद के नाम वहि सब कुछ दूषित पढाया जा रहा है जो कन्हैयालाल मुंशी ने अपने ग्रन्थ ‘लोपामुद्रा’ मे प्रस्तुत किया है |इस ग्रन्थ वे ऋग्वेद के आधार पर लिखते है “इनकी भाषा मे अब भी जंगली दशा के स्मरण मौजूद थे | मांस भी खाया जाता था | ऋषि सोमरस पीकर नशे मे चूर रहते थे | सर्वसाधारण सूरा पीकर नशा करते थे | वे रूपवती स्त्रियों को लुभाने के लिए मन्त्रो की रचना करते थे ….इत्यादि ( आगे लिखने की हिम्मत नहीं हो रही ) |

महामंडलेश्वर श्री स्वामी गंगेश्वरानन्द जी ने चारो वेदों का अत्यंत शुद्ध तथा सुन्दर संकरण तैयार करके ‘वेद भगवान’ के नाम से देश विदेश मे प्रतिष्टित किया है | परन्तु अपने वेद भाष्य मे मन्त्रो का अनर्थ करके उन्होंने अपने किये कराये पर स्वयं ही पानी फेर दिया | इस काम मे तो उन्होंने सायण, महीधर, उव्वट को भी कही अधिक पिच्छे छोड़ दिया है | उदाहणार्थ यहाँ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र प्रस्तुत है —-

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।

होतारं रत्नधातमम्॥ ऋ01.1.1

इन मंत्र का अर्थ उन्होंने इस प्रकार किया –“यहाँ अग्नि का अर्थ हनुमान है | सृष्टिक्रम बोधक ‘आकाशाद वायु:, वायुरग्नि:’ इस श्रुति के अनुसार आकाश से वायु और वायु से अग्नि की उत्पत्ति होने से अग्नि का वायुपुत्र होना स्पष्ट है | हनुमान पवन सुत नाम से प्रसिद्ध है | वेद कहते है मै वायुपुत्र अर्थात हनुमान जी की स्तुति करता हूँ |”

वेद मे हनुमान का नाम आने से स्पष्ट है की हनुमान पहले हुये और वेद बाद मे | परन्तु हनुमान जी से पहली बार भेंट होने पर उनके विद्वता पूर्ण भाषण को सुनकर श्री राम ने लक्ष्मण से कहा था —

प्रमाण वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा कांड ३/२८ – इस मंत्र से स्पष्ट है की हनुमान चारो वेदों के विद्वान थे | वेद के पहले मंत्र ही शब्द के हनुमान वाचक होने और मंगलाचरण उसकी स्तुति किये जाने से स्पष्ट है की वेद हनुमान जी के बाद बनने प्रारंभ हुये थे | तब चारो वेद हनुमान जी ने कहा से पढ़ लिए ?

हवन के मन्त्रो मे एक मंत्र है—अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा | श्री गंगेश्वरानंद जी के अनुसार इस मंत्र मे ‘अग्नि का अर्थ कृष्ण और ज्योति का अर्थ राधा है |’ उनका कहना है कृष्ण राधा है और राधा कृष्ण है | मंत्र मे न कृष्ण का नाम है और न राधा का | पर अपने भक्तो की प्रसन्नता के लिए मनमने अर्थ करने मे उन्हें संकोच नहीं था |

यज्ञ की समाप्ति पर व्रत विसर्जन के लिए एक मंत्र पढ़ा जाता है —

अग्ने व्रतपते व्रतमचारिषम तदंशकं तन्मेsराधीदमहम य एवास्मी सोsस्मि | यजुर्वेद २/२८

पौराणिक लीलाओ से भरे मस्तिष्क मे स्वामी गंगेश्वरानंद जी इसका अर्थ करते हुये लिखते है – ” हे व्रजनारियों, अब तुम जाओ ! तुम मेरे साथ इन रातो मे रमण करोंगी | शरद ऋतु की पौर्णमासी मे उस (भगवान) के साथ जब व्रजनारियों ने लीला की और आनंद प्राप्त किया, तब रासलीला के समाप्त होने पर इस अलौकिक महान रस को बार-बार स्मरण करके वन से घर मे आकार बोली-हम गोपियों ने व्रत का अनुष्ठान कर लिया | रासलीला के करण यह व्रत सफल हो गया |” प्राय: सभी मन्त्रो के अर्थ इसी प्रकार अश्लील और कपोलकल्पित है | किसी विकृत मस्तिष्क की बडबड़ाहट को भाष्य नहीं कहा जा सकता |

दुर्भाग्यवश, प्राचीन भारत के दूषित इतिहास को निमित बनाकर -वेद और वैदिक कालीन आर्यो का जो चित्र देश की वर्तमान और भावी पीढियों के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, उसे पढ़ सुनकर किसी के हृदय मे अपने अतीत के प्रति गौरव की भावना नहीं बनी रह सकती |

भाव यह है की भारत के इतिहास का पुनर्लेखन योजनाबद्धरूप मे साम्यवादी रंग देकर किया जा रहा है | परिणामत: कुछ समय के बाद, बुद्धिजीवीवर्ग ही नहीं, जनसाधारण भी वेद से विमुख होकर इस अमूल्य निधि से हाथ धो बैठेंगे |

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