आजमगढ़ और रामपुर में क्यों हार गए अखिलेश यादव

अजय कुमार 

माना जा रहा है कि सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में भगवा दल की जीत के पीछे कि जो मुख्य वजहें हैं। उसमें एक तो भाजपा ने दोनों ही सीटों पर पिछड़े समाज का उम्मीदवार उतारा था, वहीं रामपुर में बसपा के दलित वोट पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में शिफ्ट हो गया।

समाजवादी पार्टी को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। इससे भी बड़ी हकीकत यह है कि अपने आप को मुसलमानों का रहनुमा समझने वाले आजम खान को रामपुर के वोटरों ने ठेंगा दिखा दिया तो आजमगढ़ में अखिलेश यादव की जैसी दुर्गति हुई, वह अकल्पनीय रही। आजमगढ़ में जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने मुकाबले का त्रिकोणीय बना दिया, वह न केवल रोचक रहा बल्कि यह बात भी जोर पकड़ने लगी है कि बहुजन समाज पार्टी को जो समाजवादी बीजेपी की बी टीम साबित करने में लगे थे, अबकी से उनके भी अरमानों पर पानी फिर गया। क्योंकि ‘कांठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती’ है। विधान सभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी के इस झूठ पर जिन मुस्लिम वोटरों ने भरोसा करके बसपा से किनारा कर लिया था, वह मुस्लिम वोटर लोकसभा उप-चुनाव में फिर से बसपा के साथ खड़े नजर आए, इसीलिए सपा आजमगढ़ हार गई तो रामपुर में एक मुस्लिम नेता ने ही अपने समर्थकों से भाजपा के पक्ष में मतदान की अपील कर दी, जिसका बीजेपी को भरपूर फायदा मिला। मतलब साफ है कि अब मुसलमानों का समाजवादी पार्टी से विश्वास उठने लगा है। यह विश्वास इस उप-चुनाव में इसलिए और तार-तार हो गया क्योंकि दोनों मुस्लिम बाहुल्य सीटें जहां लोकसभा चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना था, वहां अखिलेश यादव ने अपनी ‘चुनावी सेना’ को मैदान में अकेले छोड़ दिया। दोनों ही सीटों पर एक बार भी अखिलेश प्रचार के लिए नहीं गए तो यूपी के सीएम ने इसे जनता और खासकर मुसलमनों के बीच ही बड़ा मुद्दा बना दिया। यह और बात है कि समाजवादी पार्टी अपनी कमजोरियों को पहचानने की बजाए पुराना राग अलाप रही है कि सरकारी मशीनरी ने उसको हरा दिया, लोकतंत्र ठोकतंत्र बन गया।

माना जा रहा है कि सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में भगवा दल की जीत के पीछे कि जो मुख्य वजहें हैं। उसमें एक तो भाजपा ने दोनों ही सीटों पर पिछड़े समाज का उम्मीदवार उतारा था, वहीं रामपुर में बसपा के दलित वोट पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में शिफ्ट हो गया। इतना ही नहीं रामपुर में तो कांग्रेस नेता नवाब काजिम अली खान ने वोटरों से भाजपा को समर्थन का ऐलान कर दिया, जबकि कांग्रेस ने आजमगढ़ की तरह यहां भी सपा के समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। यदि बात 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों की करें तो इसमें सच्चाई भी जान पड़ती है। 2014 में भाजपा के नेपाल सिंह को 3 लाख 58 हजार मत मिले थे, जबकि सपा के नसीर अहमद को 3 लाख 35 हजार के करीब वोट हासिल हुए थे। वहीं कांग्रेस के नवाब काजिम अली खान डेढ़ लाख से ज्यादा वोट ले गए थे और बसपा के अकबर हुसैन भी 81,000 वोट हासिल करने में सफल हुए थे। ऐसे में इस बार कांग्रेस और बसपा के गैर-हाजिर रहने से इन वोटों का बंटवारा सपा और भाजपा के बीच ही होना था। साफ है कि नवाब के भाजपा को समर्थन करने से कांग्रेस के वोटों का एक हिस्सा घनश्याम लोधी को मिल गया। गौरतलब है कि नवाब खानदान का आजम खान से छत्तीस का आंकड़ा रहता है। इसीलिए दोनों नेता पार्टी लाइन से ऊपर उठकर एक-दूसरे का विरोध करने का मौका नहीं छोड़ते हैं। इसके अलावा बीएसपी के दलित वोटर्स ने भी भाजपा को ही पसंद किया है। इस तरह रामपुर में बसपा का हाथी शायद भाजपा की करवट बैठ गया है और नवाब का साथ तो खुले तौर पर भाजपा के साथ ही था। इस चुनाव में एक तरफ सपा के अति आत्मविश्वास को लोगों ने चारों खाने चित कर दिया वहीं आजम खान को भी झटका दिया है, जो खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए थे। भाजपा के लिहाज से बात करें तो रामपुर में आजम खान की मौजूदगी में जीत हासिल करना उसके लिए बड़ी सफलता है। जिस रामपुर की दो विधानसभा सीटों पर आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में रह कर भी जीत गए थे, उस पर उनकी मौजूदगी में हार होना सपा के लिए बड़ी किरकिरी है। इस उप-चुनाव के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति पर भी सवाल उठ सकते हैं, जो आजमगढ़ और रामपुर में से किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए। ऐसे में आने वाले दिनों में वह एक बार फिर से पार्टी के अंदर और बाहर निशाने पर आ सकते हैं।
बहरहाल, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की जीत पर कहा कि यह डबल इंजन वाली सरकार की डबल जीत है। जोकि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए एक संदेश है। उन्होंने कहा कि पहले विधानसभा चुनाव में दो तिहाई बहुमत फिर विधान परिषद चुनाव और अब उपचुनाव में जीत डबल इंजन की सरकार के सुशासन पर जनता की मुहर है। योगी ने कहा कि यह चुनाव परिणाम बताता है कि जनता परिवारवादी और सांप्रदायिक दलों और नेताओं को स्वीकार करने वाली नहीं है। जनता भाजपा के ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के साथ है। उन्होंने कहा कि इन चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट है कि भाजपा 2024 में यूपी की 80 में से 80 लोकसभा सीटों पर जीत की ओर बढ़ रही है।

उधर, यूपी में दो लोकसभी सीटों पर हार मिलने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि आजमगढ़ और रामपुर संसदीय उपचुनाव में भाजपा सरकार ने सत्ता का खुलकर दुरुपयोग किया। अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार ने छल-बल से जनमत को प्रभावित करने का षड्यंत्र किया है। भाजपा की सत्ता लोलुपता ने प्रदेश में सभी लोकतांत्रिक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है। अखिलेश ने कहा कि आजमगढ़ और रामपुर दोनों क्षेत्रों में सपा मजबूती से चुनाव लड़ी है। जनता का रुझान सपा की ओर रहा है। भाजपा ने अपने पक्ष में जबरन मतदान के लिए सभी अलोकतांत्रिक एवं निम्नस्तर के हथकंडे अपनाए। मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया। उन्हें डराया-धमकाया गया। पुलिस ने तमाम कार्यकर्ताओं को थानों में जबरन अवैध तरीके से बैठा लिया। पोलिंग एजेंटों को मतदान केंद्रों से बाहर कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि भाजपा की मनमानी का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि रामपुर में जहां मुस्लिम क्षेत्र में 900 वोट थे वहां 6 वोट पड़े और जहां 500 वोट थे वहां सिर्फ एक वोट पड़ा। यह लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का मजाक है। लोकतंत्र लहूलुहान है और यह जनता का उपहास है। लोकसभा उपचुनाव की जीत का जश्न मनाना जनता का उपहास करना है। मुख्यमंत्री जिस जीत का दावा करते हैं उस तथाकथित जीत से जनता हतप्रभ है। सच तो यह है कि 2024 में जनता भाजपा के इस अहंकार को तोड़कर रख देगी।
खैर, इन सब बातों के कोई खास मायने नहीं हैं। सबसे अधिक उत्साहजनक प्रतिक्रिया हार के भी जीत महसूस कर रही बसपा सुप्रीमो मायावती की रही, उन्हें अपनी हार का गम नहीं बल्कि सपा की हार की खुशी ज्यादा है। मायावती अब हुंकार भरके कह रही हैं कि भाजपा को हराने की सैद्धांतिक व जमीनी शक्ति उन्हीं के पास है। यह बात समुदाय विशेष को समझाने के लिए पार्टी लगातार प्रयास जारी रखेगी। मायावती ने कहा कि भाजपा व सपा के हथकंडों के बावजूद बसपा ने आजमगढ़ में जो कांटे की टक्कर दी वह सराहनीय है। वैसे बताते चलें कि बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली पहले सपा के टिकट से ही यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे, अखिलेश उनको टिकट देने का वायदा भी कर रहे थे, लेकिन टिकट देने के नाम पर वह गुड्डू को टरकाते ही रहे, इसी के बाद वह बसपा में आ गये और हाथी पर चढ़कर बसपा को नई संजीवनी दे गए। 

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