आर्ष विद्याकुलुम में शिक्षा संवाद का आयोजन


विशेष संवाददाता

बागपत। आर्ष विद्याकुलम बढ़ेढ़ी द्वार मुजफ्फरनगर हरिद्वार हाईवे पर एक शिक्षा संवाद का आयोजन किया गया जिसमें गुलामी के लंबे काल के बाद विदेशी आक्रांताओ ने हमारे देश की जिस शिक्षा को बर्बाद कर दिया गया था उसी शिक्षा पद्धति को किस तरह से दोबारा स्थापित किया जाए इस विषय पर एक महासभा का आयोजन हुआ जिसमें दूर-दूर से बहुत से विद्वानों ने प्रतिभाग किया कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्य नरेंद्र वैदिक वानप्रस्थी जी अध्यक्ष गुरुकुल विद्या प्रचारिणी सभा मुख्य अतिथि डॉक्टर हेमवती नंदन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार तथा आचार्यकुलम की परिदृश्यता पद्मश्री संतोष यादव रहे कार्यक्रम में स्वामी योगानंद सरस्वती ओंकारानंद सरस्वती आचार्य योगेश जी ने अपने संबोधन में अपने राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने के लिए विद्याकुलम गुरुकुल प्रणाली को फिर से स्थापित करने पर जोर दिया और कहां कि देश में सभी मदरसों को तत्काल बंद करके सभी सरकारी विद्यालयों को बोर्डिंग स्कूल बनाया जाए तथा उसमें संस्कृत और सैनिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाए तथा साथ में गणित विज्ञान आदि सभी विषयों के साथ सभी को निशुल्क वैदिक शिक्षा का प्रबंध राज्य स्तर से किया जाना चाहिए तभी हम वैदिक सनातन संस्कृति पर आए संकट से बच पाएंगे तथा न सिर्फ अपने देश को बल्कि इस विश्व को बर्बाद होने से बचा पाएंगे अन्यथा यह विश्व जिस रास्ते पर चल पड़ा है वहां से बहुत लंबे समय तक इसके अस्तित्व को बचाया नहीं जा सकता।इस अवसर पर आचार्य योगेश को विद्याकुलम का कुलपति घोषित किया गया।
दो बार की एवरेस्ट विजेता पद्मश्री श्रीमति संतोष यादव ने शारीरिक स्वास्थ को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का वास होता है। जिसके लिए शरीर के प्रति धर्म को निभाने के लिए चाय, कॉफी,चिप्स लहसुन प्याज के साथ सभी प्रकार के नशे से दूर रहने तथा वैज्ञानिक पद्धति से बनाईं गई वेश भूसा खादी अपनाना चाहिए तथा अनावश्यक वस्तुओं से बचे और अस्तेय का पालन करते हुए न्यून से न्यून में अपना कार्य पूर्ण करके अपना योगदान संसार को प्रदान करते हुए शुभ संकल्प लें जिसका कोई विकल्प न हो।
इस अवसर पर डॉक्टर हेमवती नंदन जी ने कहा कि प्रत्येक समस्या का समाधान शिक्षा से ही हो सकता है इसी के साथ ही संवाद के बिना भी कुछ संभव नहीं है। उन्होंने आधुनिक भारत के लिए के पुनर्लेखन पर बल दिया।तथा गुरु के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण करके मनुर्भव के सिद्धांत को पुनर्जीवित करने का आवाह्न किया जिसके लिए संस्कृत को पुनर्जीवित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। तथा यह मेरा नहीं है इस वाक्य को जीवन का उद्देश्य बनाए।
अन्य सभी विद्वानों ने भी विलुप्त होती जा रही गुरुकुल प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए आवाह्न किया तथा इसके लिए जिम्मेदार बनकर शांति पूर्वक इसके लिए लड़ाई लड़े। तथा घर वापसी के कार्य को आगे बढ़ाते हुए कृंवंतो विश्व आर्यम के सपने को साकार कर दिखाएं।

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