केजरीवाल ने जैसा बोया वैसा सामने

arvind_kejriwal_bijli_paani_295‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय   उक्त कहावत वर्तमान में आम आदमी

पार्टी पर सही रूप से चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। केजरीवाल के पारंगत

नेतृत्व ने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जिस स्टिंग के हथियार का

प्रशिक्षण दिया था। आज वही हथियार आम आदमी पार्टी और स्वयं केजरीवाल के

लिए आत्मघाती बनकर सामने आ रहा है। वर्तमान में आम आदमी पार्टी के नेता

केजरीवाल के समक्ष जो भी संकट उपस्थित है, उसके बारे में यह कहा जाए कि

यह स्वयं केजरीवाल की नीतियों का ही परिणाम है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं

कही जाएगी। जिस स्टिंग के भूत से वह अन्य दलों को भयभीत करने का विचार

पालने का काम करने वाली महारत का प्रशिक्षण दे रहे थे। आज उसी स्टिंग की

गिरफ्त में वे स्वयं फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक और पार्टी के प्रमुख नेता राजेश गर्ग ने

यह कहकर सनसनी ही फैला दी थी कि केजरीवाल भाजपा नेताओं के नाम से फोन

करवाते थे और बाद में उसी को स्टिंग आपरेशन के नाम से प्रचारित करके

वाहवाही लूटने का काम करते थे। जबकि सत्य इसके ठीक विपरीत था। इससे यह तो

प्रमाणित होता था कि केजरीवाल की मंशा जनता को गुमराह करके केवल दिल्ली

की सत्ता ही हथियाना भर थी। पूरी तरह झूंठ पर आधारित केजरीवाल का तरीका

उन्हें सत्ता तो दिला गया, लेकिन उनके कार्यकर्ताओं ने जो प्रशिक्षण

प्राप्त किया था। सत्ता प्राप्त करने के बाद वही प्रशिक्षण उनके गले की

हड्डी साबित हो रहा है।

केजरीवाल की हठधर्मिता के कारण ही आज आम आदमी पार्टी विभाजन की कगार पर

पहुंच गई है। योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को जिस तरीके से पार्टी से

बाहर का रास्ता दिखाया उससे यह तो पहले ही तय हो गया था कि यह राजनेता अब

इस पार्टी में बिलकुल ही नहीं रहेंगे। हालांकि यह दोनों नेता बार बार यह

कहते रहे थे कि वे आप पार्टी में ही रहेंगे, लेकिन केजरीवाल का समर्थक

समूह उन्हें बिलकुल नहीं चाहता था। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि केजरीवाल

के पास वह चश्मा भी नहीं है जिससे समग्र अध्ययन करने का दृश्य दिखाई दे

सके, उनकी आंखों पर लगे चश्मे में केवल उन्हीं के समर्थक ही नजर आते हैं।

अब तो प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि आप

नेता के रूप में उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। नवीन राजनीतिक दल की

स्थापना करके ही यह दोनों नेता अपनी राजनीतिक जमीन बनाने की कवायद में लग

गए है। पार्टी में विभाजन होने के बाद किसका कितना राजनीतिक जोर रहेगा,

यह तो समय बताएगा, लेकिन यह तय है कि बयानों का जो खेल प्रारंभ हुआ है,

वह खेल आगे भी जारी रहेगा। इस बयानबाजी में कौन बाजी मारेगा, इसका फैसला

बहुत जल्दी हो जाएगा।

लोकतांत्रिक तरीके से सोचा जाए तो यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में

सत्ता की असली मालिक जनता ही होती है, लेकिन केजरीवाल साहब तो जनता के

सपनों पर पानी फेरने का काम करने की कवायद करने लगे हैं। अभी हाल ही में

केजरीवाल ने यह स्वयं स्वीकार किया है कि मैं भी आदमी हूं गलती हो जाती

है, और झूंठ भी बोल सकता हूं। केजरीवाल ने ऐसा बोलकर यह तो साबित कर ही

दिया है कि भारत की राजनीति में जैसा केजरीवाल के बारे में प्रचारित किया

गया वास्तव में केजरीवाल वैसे बिलकुल भी नहीं हैं। इन सब बातों से यही

कहा जा सकता है कि अरविन्द केजरीवाल ने जो बोया है आज वह उसी को काटने की

मुद्रा में हैं। एक कहावत है कि चोर चोरी से जाए लेकिन हेराफेरी से न

जाए, हेराफेरी चोर के स्वभाव का मूल होता है, चोर इस स्वभाव के विपरीत

कभी नहीं जा सकता। ठीक इसी प्रकार का स्वभाव आम आदमी पार्टी का बन गया

है, स्टिंग करना आप के कार्यकर्ताओं क स्वभाव बन गया है। ऐसे में आम आदमी

पार्टी के सब कुछ माने जाने वाले केजरीवाल कार्यकर्ताओं से यह आशा करें

कि कार्यकर्ता स्टिंग की शैली को भूल जाएं तो यह संभव नहीं जान पड़ता।

केजरीवाल एंड कंपनी ने दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने के लिए जब बबूल के

पेड़ों की खेती की है तो यह निश्चित है कि उन्हें सारे रास्ते में कांटे

ही कांटे मिलेंगे, फूल की आशा करना तो बहुत दूर की बात है।

आम आदमी पार्टी का भविष्य आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा दिखाई दे रहा है जिस

पर किसी प्रकार का संकेतक नहीं है, दिशाओं की अज्ञानता है। सारे रास्तों

पर बहुत बड़ा भ्रम सा निर्मित होता दिखाई दे रहा है। इस भ्रमजाल में

फंसकर केजरीवाल किस परिणति को प्राप्त करेंगे, यह अभी से कह पाना

जल्दबाजी ही होगी, लेकिन यह संभावी लगने लगा है कि आम आदमी पार्टी में

जिस लावा का निर्माण हो रहा है, वह एक दिन भयानक विस्फोट का रूप धारण

करके सामने आएगा और पार्टी दो धड़ों में विभक्त हो जाएगी।


सुरेश हिन्दुस्थानी

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