*भोजन की तलाश, बनाती है इन्हें खास*
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लेखक आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा।
फोर्जिंग अर्थात भोजन के लिए भ्रमण ,भोजन की तलाश जीव जंतुओं को खास बनाती है। इस पृथ्वी पर किसी भी आवासीय क्षेत्र का कोई भी ऐसा जीव नहीं है जो भोजन की तलाश में कम से कम दिन के कुछ घंटे ना गुजारता हो कथित आधुनिक सभ्य मानव के अलावा। भोजन के लिए भ्रमण जीव जंतुओं का एक विशिष्ट गुणधर्म है यह उन्हें निरोग भी बनाए रखता है हालांकि इसमें जोखिम भी बहुत है लेकिन पेट क्या-क्या नहीं कराता। चींटी से लेकर हाथी पर्यंत चाहे शाकाहारी जीव हो या मांसाहारी या सर्वाहारी सभी जीवो को भोजन के लिए अच्छी खासी दौड़- धूप करनी पड़ती है। किसी भी पशु पक्षी थलचर नभचर का भोजन के लिए परिश्रम दो कारकों पर निर्भर करता है…. उस जीव का भोजन क्या है? तथा वह कैसे परिवेश में रहता है। यही कारण है कुछ जीवों के भोजन की खोज चंद मिनटों कुछ घंटों में पूरी हो जाती है तो कुछ पुरा दिन इसमें बिता देते हैं।
भोजन के लिए जानवरो के भ्रमण पर दुनिया के चोटी के जंतु व्यवहार शास्त्रियों ने समय समय पर शोध किये है… विनम्रता पूर्वक सभी ने अपने शोध में यह जाहिर किया है कि हम यह तो नहीं कह सकते हम किसी जीव के व्यवहार को पूरी तरह समझ गए हैं लेकिन उन्होंने जो भी समझा वह सराहनीय है।
इन शोध में मोटी मोटी तीन चीजें निकल कर आयी है।जीव जंतु तीन तरीके से अपना भोजन तलाशते हैं।
प्रथम श्रेणी हैExploratory Foraging करने वाले जीव जंतुओं की।
इस प्रथम श्रेणी में हाथी शेर जैसे बड़े जानवर हैं जो भोजन की खोज में जंगलों में औसत 50 किलोमीटर भ्रमण करते हैं कभी-कभी तो वन्य क्षेत्र भी बाहर निकल आते हैं कुछ इंसान आबादी खेतों में भी घुस जाते हैं। दूसरी श्रेणी में चींटी दीमक कीट पतंगे तितलियां कुछ चिड़िया शामिल होती हैं जो Localiged Foraging करती हैं वह भोजन की खोज के लिए कुछ लैंड मार्क खोजती हैं जहां दाना पानी फल फूल पत्ती मिल सकती है । कह सकते हैं उन्हें दिव्य दृष्टि भोजन की तलाश के मामले में हासिल होती है। भगवान कितना दयालु है बड़ा जीव अधिक भ्रमण कर सकता है छोटी जीव में इतनी ऊर्जा नहीं होती तो उसको स्थानीय भ्रमण की व्यवस्था में उसे बांध दिया। तीसरी श्रेणी में शामिल जंतु गाय भैस हिरण आदि पेच के माध्यम से भोजन खोजते हैं । यह जंतु जीवो के पद चिन्हों का अनुकरण कर भोजन तक पहुंच जाते हैं।
“हम यह नहीं कह सकते जीव जन्तुओं के भोजन के भ्रमण के इतने ही तरीके हैं असंख्य के तरीके हैं पूरी व्यवस्था को भगवान के अलावा कोई नहीं समझ सकता ना ही कोई दावा करता है ऐसा एक जंतु व्यवहार शास्त्री ने कहा था”।
जीवो का यह व्यवहार हमेशा से ही जंतु वैज्ञानिकों को आकर्षित रोमांचित करता रहा है। हम इंसानों को घर बैठे बिठाए बिना परिश्रम भ्रमण के भोजन मिल जाता है हम इन जीवो के पुरुषार्थ को नहीं समझ सकते। लेकिन हम उनके जीवन संघर्ष में अपने प्रकृति के अधाधुन्ध दोहन उनके आवास क्षेत्रों को कब्जाना वनों के विनाश जीव जंतु के शिकार आदि गतिविधियों से जरूर उनके परम शत्रु बन गए हैं लेकिन यह जीव जंतु आज भी हमारे लिए मित्रवत है। आज जिस देयनीय स्थिति में वह है कल को हम भी उसी स्थिति में आएंगे ।यह अटल आध्यात्मिक नियम है।
अचानक ही प्रसिद्ध पुण्यात्मा लेखक भजन उपदेशक स्वर्गीय पंडित चंद्रभानु आर्य जी की एक रचना की यह पंक्तियां मुझे याद आ रही है। जो इस प्रकार हैं।
लाखों आये, चले गए, इस आवागमन के चक्कर में। कल्प ,महाकल्प बीत गए इस जन्म मरण के चक्कर में ।।
कितनी बार यहां जन्म लिया किस किस के घर याद नहीं।
कितनी बार बने चौपाये, बने दो पाये याद नहीं।।
कितनी बार आकाश में चढ़कर टोहा सरोवर याद नहीं। कितनी बार नारी बने, कितनी बार नर बने याद नहीं।।
कई बार स्थावर( पेड़) बनके हम जमीन के अंदर गड़े रहे
कई बार कृमि बनकर के दुर्गंधी में सड़े रहे।।
कहीं शेर बघेरा चीते बनकर पहाड़ के ऊपर खड़े रहे।
कहीं कोई मारा कहीं आप मरे यू पेट भरण के चक्कर में।।
लाखों आए…………………।
भारत के आध्यात्मिक कवियों उपदेशको संतों ने लोक रचनाओं के माध्यम से वेद दर्शन अध्यात्म के गूढ़ ज्ञान को सरलता सहजता से बुद्धिगम्य बना दिया जाता है। साथ ही साथ पर्यावरण जैव विविधता के सम्मान संरक्षण के लिये भी आम लोग जनमानस को प्रेरित किया। अनेकों विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी भारतवर्ष के नाम ही रही है।
आर्य सागर ✍