शिव-सेना और मुसलमान


shiv sena
शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ में उसके एक सांसद का लेख छपा है। वह जल्दबाजी में दिया गया बयान नहीं है, बल्कि एक लेख है याने उसमें जो कुछ भी कहा गया है, वह सोच-समझकर कहा गया है। उस लेख में कहा गया है कि कई नेता और पार्टियाँ मुसलमानों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करते हैं और मुसलमान समझते हैं कि इसी में उनका भला है लेकिन वे हर बार ठगे जाते हैं। पहले कांग्रेस उनको ठगती थी और अब ओवैसी जैसे नेता उनको ठग रहे हैं। यदि यही चलता रहा तो भारत के मुसलमान कभी उन्नति नहीं कर पाएँगे। यहाँ तक तो उस शिव-सेना सांसद की बात तथ्य-संगत और तर्कसंगत भी लगती है लेकिन इसके आगे उन्होंने जो लिखा है, उसे मुसलमान तो क्या, भारत का हर नागरिक भी रद्द कर देगा। इतनी रद्दी बात आज के भारत में कोई नेता सोच भी सकता है, इस पर भी सबको आश्चर्य होगा। उन्होंने लिखा है कि मुसलमानों से मतदान का अधिकार छीन लेना चाहिए ताकि वोट बैंक की तरह उनका इस्तेमाल अपने आप ही बंद हो जाए। यह तर्क वैसा ही है, जैसे कोई यह कहे कि आपको जुकाम हो गया है तो उसका इलाज़ यही है कि आपकी नाक काट ली जाए।

 आप किन-किन की नाक काटेंगे? किन-किन जातियों का इस्तेमाल वोट बैंक की तरह नहीं होता? भारत का कौन सा ऐसा निर्वाचन-क्षेत्र है, जिसमें हजारों लाखों वोट जाति, मजहब, क्षेत्रीयता आदि के नाम पर आँख मींचकर नहीं डाले जाते हैं? इसी दोष के कारण आपको देश के ज्यादातर मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करना पड़ेगा।  क्या आप इसके लिए तैयार हैं? यदि नहीं तो सिर्फ मुसलमानों पर आप इतने मेहरबान क्यों हो रहे हैं? शायद इसलिए कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने भी ऐसी ही मांग उठाई थी । मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की मांग असंवैधानिक तो है ही, वह यह भी बताती है कि आप कायर हैं। आपने अपनी हार मान ली है। आपने वोट बैंक की राजनीति के आगे घुटने टेक दिए है। आपको अपने आप पर विश्वास नहीं है। क्या आप ऐसी राजनीति नहीं कर सकते हैं कि जिससे हमारे मुसलमान दलित, पिछड़े, आदिवासी और साधारणजन भी केवल गुण-दोष के आधार पर ही वोट दें? भेड़ चाल न चलें। थोक में वोट न डालें। अपने विवेक का प्रयोग करें। किसी खास तबके के लोगों को मताधिकार से वंचित करने की बात वही कर सकते हैं, जिन्होंने अपना विवेक दरी के नीचे सरका दिया है।

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