मोदी को राहत देने वाली यात्रा

डाॅmodi ji0 वेद प्रताप वैदिक की कलम से

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह त्रि-राष्ट्रीय विदेश-यात्रा अब तक की सभी विदेश-यात्राओं में सबसे अधिक सफल मानी जा सकती है। फ्रांस, जर्मनी और कनाडा यूं भी पूर्व के उन देशों से कहीं अधिक शक्तिशाली और संपन्न हैं, जिनमें मोदी अब तक गए थे। मोदी पहले पड़ोसी देशों में गए और फिर पूर्व के और अब पश्चिम के देशों में गए। अमेरिका तो पहले ही हो आए थे। यूरोप के देशों और कनाडा के साथ भारत के संबंध जितने घनिष्ट हो सकते थे, नहीं हुए । यदि उसके कारणों में हम यहां गहरे न उतरें तो भी यह तो मानना पड़ेगा कि मोदी की इस यात्रा ने हमारी पिछली सभी कमियों को पूरा कर दिया है। इन देशों में यात्रा करते समय मोदी ने कुछ ऐसे चमत्कारी काम भी कर दिए हैं, जो अब तक किसी प्रधानमंत्री ने इतने बड़े पैमाने पर और इतने जोश-खरोश से नहीं किए। उन्होंने उन देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों कीमहती सभाओं को संबोधित किया। अपने हजारों श्रोताओं को उन्होंने आत्मविश्वास और उत्साह से भर दिया। इन सभाओं में उन्होंने उन आरोपों और लांछनों का भी कड़ा जवाब दिया, जो भारत पर लगा दिए जाते हैं। प्रवासी भारतीयों की इन सभाओं में बोलते हुए मोदी का लहजा कभी-कभी चुनाव अभियान का–सा हो जाता था। कांग्रेस ने उस पर आपत्ति जताई है। वास्तव में ये जनसभाएं उन साक्षात श्रोताओं के लिए तो होती ही हैं, उनके साथ-साथ उन करोड़ों भारतीयों के लिए भी होती हैं, जो उन्हें टीवी चैनलों पर देखते हैं।

फ्रांस के साथ राफेल नामक लड़ाकू विमानों का सौदा कई वर्षों से लटका हुआ था। बोफोर्स में जला कांग्रेस का नेतृत्व राफेल को इतनी फूंक मारता रहा कि वह सौदा खत्म ही होने को था,लेकिन भारतीय वायु सेना के आग्रह ने बाजी पलटा दी। फौज में लड़ाकू विमानों की कमी ने प्रधानमंत्री को आनन-फानन फैसले पर मजबूर किया। उन्होंने इस यात्रा के दौरान 36 विमानों का सौदा कर लिया। उनके पेरिस जाने के पहले भारतीय और फ्रांसीसी अखबार भी लिख रहे थे कि यह सौदा इस यात्रा के दौरान हो पाना मुश्किल है। इसमें शक नहीं कि तैयार विमानों की खरीद काफी महंगी पड़ती है और उसमें परनिर्भरता भी होती है, लेकिन दोनों सरकारों के बीच यह समझौता भी हुआ है कि वे मध्यम श्रेणी के 126 लड़ाकू विमानों को भारत में ही बनाने के बारे में बात करेंगे। राफेल विमानों की खरीद से फ्रांसीसी सरकार तो गद‌्गद है, लेकिन इस खरीद को कुछ लोग ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के विपरीत मान रहे हैं। उनका कहना है कि यदि आप इस तरह बने-बनाए विमान और शस्त्रास्त्र विदेशों से खरीदते रहे तो आपके ‘मेक इन इंडिया’अभियान का क्या होगा ?

फ्रांस से भारत ने चार अरब डॉलर के ये विमान ही नहीं खरीदे, अन्य 17 समझौते भी हुए,जिनमें सबसे प्रमुख वह है, जिसके अंतर्गत फ्रांसीसी कंपनी ‘अरेवा’ भारत के जैतापुर में छह परमाणु-संयंत्र लगाएगी। 10 हजार मेगावाट क्षमता की यह जैतापुर परियोजना भारत के शांतिपूर्ण परमाणु-कार्यक्रम में चार चांद लगा सकती है। फ्रांस ने भारत में अपना पूंजी विनियोग अगले पांच साल में पांच गुना बढ़ा दिया है। चार करोड़ डॉलर से दो अरब डॉलर कर दिया है। पुडुचेरी व नागपुर सहित तीन भारतीय शहरों को ‘चुस्त शहर’ बनाने की जिम्मेदारी भी फ्रांस ने ली है। उसने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता और 21 जून को अंतरराष्ट्रीय ‘योग दिवस’ घोषित करने का भी समर्थन किया है।

फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ मोदी का व्यक्तिगत समीकरण इतना अच्छा बैठ गया कि उसका लाभ दोनों देशों की कूटनीति को भी मिल सकता है। फ्रांस अमेरिकी गुटों में रहते हुए भी अपनी स्वायत्तता बनाए रखता है, जैसे कि भारत गुटनिरपेक्ष रहा है । फ्रांस और भारत का स्वभाव एक-जैसा है। ये दोनों देश चाहें तो अफ्रीका, पश्चिम एशिया और आग्नेय एशिया में अग्रगण्य भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र में ये दोनों देश अनेक मुद्‌दों पर कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं, जैसे कि 2013 में अफ्रीकी देश माली में पैदा हुए संकट के समय इन्होंने किया था। यदि भारत के नेता और नौकरशाह थोड़ी अंग्रेजी की गुलामी कम करें और फ्रांसीसी भाषा को उचित महत्व दें तो फ्रांस भारत के काफी निकट आ सकता है, जैसे कि वह मॉरिशस को अपने निकट बनाए रखता है। हमारे अधिक से अधिक छात्र फ्रांस में पढ़ें और फ्रांसीसी छात्र भारत में पढ़ें । पर्यटन बढ़े, वीज़ा आसान हो आदि मुद्‌दों पर भी अच्छे समझौते हुए हैं। जहां तक जर्मनी का सवाल है, उसके साथ खरीद-फरोख्त का वैसा कोई समझौता नहीं हुआ, जैसा फ्रांस के साथ हुआ, लेकिन दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक मुद्‌दों पर गहरी समझ बनी।

पाकिस्तान में जकी-उर-रहमान लखवी की रिहाई ने दोनों देशों के नेताओं को अच्छा मौका दे दिया कि वे आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोले। मोदी द्वारा की गई यह तुलना ठीक नहीं थी कि आतंकवाद और परमाणु-प्रसार को एक जैसा माना जाए, क्योंकि भारत ने तो खुद परमाणु-बम बनाकर सबसे पहले परमाणु-प्रसार किया था, लेकिन इस तुलना के पीछे उनकी भावना यही थी कि आतंकवाद को परमाणु बम के बराबर खतरनाक माना जाए। मोदी ने हनोवर के व्यापार मेले का उद्‌घाटन किया। उसमंे 400 भारतीय कंपनियों और 3000 जर्मन प्रतिनिधियों ने भाग लिया। मोदी ने जर्मनी की सबसे बड़ी कंपनियों के कर्ता-धर्ताओं के साथ सीधी बातचीत की। उन्हें अपनी पूंजी लगाने के लिए प्रेरित किया। उन्हें पर्याप्त सुविधाओं का आश्वासन दिया। भारत की मजबूत आर्थिक संभावनाओं का प्रभावशाली नक्शा खींचा। जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल और मोदी ने दोनों देशों के बीच भाषा, शिक्षा, शहरी विकास, रेलवे, ऊर्जा, व्यापार आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का भी संकल्प किया।

इंदिरा गांधी के बाद द्विपक्षीय यात्रा पर कनाडा जाने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के साथ उनका पूर्व परिचय काफी उपयोगी सिद्ध हुआ।1974 में इंदिराजी ने जब परमाणु-अन्तः स्फोट किया था तो कनाडा ने भारत के विरुद्ध प्रतिबंध लगा दिए थे, लेकिन अब कनाडा भारत को अगले पांच साल में तीन हजार टन यूरेनियम देगा। भारत से छह गुना बड़े इस देश की जनसंख्या सिर्फ चार करोड़ है। इसमें खनिज सामग्रियों के अकूत भंडार हैं। इन भंडारों के दरवाजे अब भारत के लिए खुल रहे हैं। 12 लाख भारतीय वहां रहते हैं। अब अनेक क्षेत्रों में सहयोग तो बढ़ेगा ही, दोनों देश वीज़ा के नियमों में भी छूट देंगे। इस यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा जारी किए गए प्रशंसा-पत्र से भी मोदी की छवि सुधरी है। घरेलू राजनीति में यह यात्रा मोदी को काफी राहत पहुंचाएगी। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी की यह त्रि-राष्ट्रीय यात्रा भारतीय विदेश नीति के इतिहास में स्मरणीय हो गई है।

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