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राजनीति

देश विभाजन और राजनैतिक वातावरण

country partitionहरिशंकर राजपुरोहित

गतांक से आगे…..

द्वितीय महायुद्घ की समाप्ति पर सिंगापुर के ब्रिटिश सेना के सर्वोच्च कमांडर लॉर्ड माउंट बेटन, जो पचास वर्ष से कम उम्र का प्रौढ नौजवान था, को भारत का वायसराय बनाकर, इंग्लैंड की सरकार ने भारत भेजा। जिसको अंग्रेजों के इस निर्णय को, कि भारत को दो हिस्सों में विभाजित करा दिया जाय यानि दो राष्ट्र (हिंदू तथा मुस्लिम राज्य) कर दिये जाएं पालना करनी थी। इस हेतु इस वायसराय ने सभी आवश्यक कार्यवाही प्रारंभ कर दीं और अंततोगत्वा विभाजन करा दिया, जिसे दोनों राष्ट्रों के नेताओं ने स्वीकार कर लिया। देश की सीमाएं भी बांट दी गयीं तथा नवोदित राष्ट्र पाकिस्तान का प्रथम गर्वनर जनरल राष्ट्राध्यक्ष बै. मोहम्मद अली जिन्ना ने बनना निश्चित किया जिसे उसके मुस्लिम लीग के नेताओं ने स्वीकार किया तथा 14 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाया।

इस वायसराय की पत्नि लेडी माउंटबेटन, इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के परिवार से थी, इसलिए इस दंपति का प्रभाव सामान्यतया अधिक था। इस दंपति का  पंडित जवाहरलाल नेहरू बहुत भरोसा करते थे, तथा उनसे नेहरू के ‘घनिष्ठ संबंध’ बन गये थे, इस कारण इस वायसराय को अंग्रेज सरकार द्वारा ‘देश विभाजित’ करने के  कार्य को शीघ्रता व सरलता से करने में सफलता मिली। कांग्रेस तथा हिंदू नेता कभी नही चाहते थे, कि उन्हें केवल हिंदू बाहुल्य क्षेत्र वाला भारत मिले, परंतु मोहम्मदअली जिन्ना के दो राष्ट्र के प्रस्ताव को कांग्रेसी नेताओं से वायसराय तथा जवाहरलाल नेहरू ने मनवा लिया, जिसको दबाव में अन्य भारतीय नेताओं को भी मानना पड़ा। लॉर्ड माउंट बेटन की यह सबसे बड़ी सफलता थी कि कांग्रेस के संरक्षक महात्मा गांधी तथा अन्य हिंदू नेता विभाजन नही चाहते थे, फिर भी कांग्रेस व पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन स्वीकार कर लिया था।

इतना सब होने पर,  इस लॉर्ड माउंटबेटन से कांग्रेस नेताओं को दूर रहना चाहिए था, क्योंकि उसने ही जिन्ना की जिद दो राष्ट्र सिद्घांत को मानने व मानकर उस पर कार्यवाही की सिफारिश अंग्रेज सरकार व यहां के नेताओं को समझाकर विभाजन कराया था, परंतु इसके विपरीत इसी व्यक्ति पर न जाने क्यों अधिक भरोसा करके आजाद भारत का प्रथम गर्वनर जनरल (राष्ट्राध्यक्ष) बनाना प्रस्तावित कर दिया, जो इसने सहज स्वीकार कर लिया (यही व्यक्ति भारत का वायसराय अंग्रेज सरकार द्वारा आजादी से पूर्व बना हुआ था) उस पर भरोसा करने पर ‘भरोसा की भैस पाडा लाई’ वाली कहावत चरितार्थ हुई। इसी वायसराय ने जम्मू कश्मीर के हिज हाईनेस हरिसिंह इंद्र महिन्द्र सिपार-ए-सल्तनत त्रष्टस्ढ्ढ, त्रष्टढ्ढश्व एण्ड ए.डी.सी.टू दी किंग एम्परेर को, कश्मीर राज्य को जिसकी आबादी उस समय करीब पचास लाख की थी, पाकिस्तान में मिल जाने की सलाह दी थी। महाराजा हरिसिंह की आयु 52 वर्ष उस समय थी, फिर भी महाराजा अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखना चाहते थे।

पाकिस्तान की सेना के जनरल अकबर खान के नेतृत्व में कबाईलियों का आक्रमण नाम देकर वस्तुत: पाकिस्तान की सरकार की आज्ञा से कश्मीर के बारामूला स्थान पर 26 अक्टूबर 1947 को हमला बोल दिया गया, जहां अंग्रेजों के परिवार, गिरजाघर, हिंदुओं के मंदिर स्कूल, अस्पताल आदि थे। उनको इन आक्रमणकारी सेना ने नष्ट कर दिया तथा महाराजा कश्मीर को मजबूर होकर अपने मंत्री मंडल की सलाह पर भारत राज्य में 27 अक्टूबर को विलीनीकरण हेतु स्वीकृति देनी पड़ी। यही जनरल जबाल अकबर खान 1947 में पाकिस्तान की सेना का चीफ ऑफ दी जनरल स्टाफ बना, जिसने सन 1950 में सैनिक सत्ता पलटने का प्रयत्न किया, जिसे द्रोही मानकर कारागृह में डाल दिया गया। कश्मीर के भारत में वैधानिक विलय के बाद ही भारत की सेना कश्मीर बचाव हेतु पहुंची। तब तक पाक सेना काफी आगे बढ़ चुकी थी, उसे बहादुर भारत की सेना ने पीछे खदेडऩा प्रारंभ किया। फिर यूएन ओ द्वारा सीजफायर करा देने करा देने से जो भू-भाग पाकिस्तान की सेना ने हड़प लिया था उस क्षेत्र को आज भी आजाद कश्मीर कहा जाता है। वस्तुत: वह पूर्णतया पाकिस्तान के नियंत्रण में है तथा उसकी आड में भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं, तथा पाकिस्तान इसका दुरूपयोग प्रचार हेतु भारत के विरूद्घ कर रहा है।

ऐसा हो जाने से भारतीय जनमानस में पाकिस्तान की सेना तथा सरकार के प्रति भारी रोष  व्याप्त था। लोग तो यहां तक मानने लगे थे, कि भारत के प्रमुख सेनापति सर रोबर्ट लोकहर्ट ने माउंटबेटन वायसराय तथा नेहरू जी प्रधानमंत्री को समझाया था, कि युद्घ करने में लाभ नही है। इस कारण 26 अक्टूबर की रात सेना नही भेजी गयी, यहां तक कि 27 अक्टूबर को विलीनीकरण कश्मीर का हो जाने के बाद भी काफी देरी की गयी तथा दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री ने यूएनओ को पुकार दिया।   क्रमश:

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