Categories
मुद्दा

दूसरों की शेरो शायरी चुराने में सिद्धहस्त है मुनव्वर राणा

गली-गली में शोर है, मुनव्वर राना चोर है !!!
मैं शायर बदनाम, चुराता हूं दूसरों के कलाम !!!
सबूतों के साथ पेश है “मुनव्वर राना का, चोरी का कारनामा” !!!
सुबह शाम सोते जागते हिंदुस्तान को कोसने वाले शायर मुनव्वर राना का एक शेर हैं “किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई, मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई”… अगर ये शेर नहीं होता तो मुनव्वर राना… मुनव्वर राना नहीं होते… बल्कि एक ट्रांसपोर्टर (मुनव्वर राना का बेसिक धंधा ट्रक चलाने का है) से ज्यादा कुछ नहीं होते… असल में बहुत कम लोग जानते हैं कि इस “ट्रांसपोर्टर टर्न शायर” ने दूसरों के कई शेर खुद अपने नाम से ट्रांसपोर्ट कर लिये हैं… और इसी में शामिल है इनका सबसे मशहूर शेर – “मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई”
दरअसल ये ओरिजनल शेर लिखा है मशहूर पत्रकार और कवि आलोक श्रीवास्तव (Aalok Shrivastav) ने… जो कुछ इस तरह से है कि –

“बाबू जी गुज़रे, आपस में, सब चीज़ें तक़सीम हुई तब |
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा ||”

आपको मुनव्वर और आलोक के शेर में एक-दो शब्द अलग लगे होंगे लेकिन दोनों शेर का भाव एक जैसा है… यानि अब सवाल उठता है कि किसी ना किसी ने तो ये शेर चुराया है… आलोक श्रीवास्तव का दावा है कि ये शेर उन्होने मुनव्वर राना से काफी पहले लिख लिया था और मुनव्वर राना का कहना है कि ये शेर उनका है जैसा कि उनके बेटे तबरेज राना ट्विट करके दावा भी कर रहे हैं… लेकिन जब सबूतों के साथ पड़ताल की गई तो पकड़ी गई मुनव्वर राना की चोरी…

सबूत नंबर 1
“अमर उजाला” ने ये शेर सबसे पहले आलोक श्रीवास्तव के नाम से 22 अक्टूबर 2000 को छापा था… जबकि मुनव्वर राना के नाम से ये शेर पहली बार छपता है दिसम्बर 2002 में वो भी खुद उनकी किताब में… यानि यहां मुनव्वर राना का झूठ नंबर एक पकड़ा जाता है (आप दोनों तस्वीरें देख सकते हैं)

सबूत नंबर 2
बकौल आलोक श्रीवास्तव 2001 में उन्होने अपना अम्मा वााल शेर एक मुशायरे में सुनाया जहां खुद मुनव्वर राना मौजूद थे… मुनव्वर ने ये शेर सुनने के बाद भरे मुशायरे में आलोक की तारीफ भी की… लेकिन दिसम्बर 2002 में ये शेर उन्होने अपनी किताब में अपने ही नाम से चेप दिया… और जगह-जगह मुशायरों में सुनाने लगे… जाहिर है अपने शेर की चोरी आलोक श्रीवास्तव से बर्दाश्त नहीं हुई, लिहाज़ा उन्होने मई 2003 में मुनव्वर राना को एक पत्र लिखा… लेकिन मुनव्वर ने इस पत्र का कभी कोई जवाब नहीं दिया… यानि चोर की दाढ़ी में तिनका कहावत यहां चरितार्थ होती है।

सबूत नंबर 3 (कमेंट बॉक्स में है)
अब कागज़ बहुत हो गये… अब पेश है वीडियो सबूत… एक वीडियो है जिसमें आलोक श्रीवास्तव दुबई में एक मुशायरे में ये शेर पढ़ रहे हैं और मंच पर बैठे हुए मशहूर शायर वसीम बरेलवी कहते हैं कि “ये ओरिजनल शेर है”… तभी एक और मशहूर शायर ताहिर फऱाज़ की आवाज़ गूंजती है, वो कहते हैं “इसी के अंडे बच्चे पैदा हो गये”… यानि वो सीधे-सीधे कह रहे हैं कि इस शेर को सुनकर कुछ (मुनव्वर) लोगों ने शेर बना लिये हैं…

सबूत नंबर 4
हाल ही में दूरदर्शन के एंकर अशोक श्रीवास्तव जी ने जब मुनव्वर राना का ध्यान उनकी चोरी की तरफ दिलवाया तो राना साहब के बेटे तबरेज ने एक मुशायरे का वीडियो जारी कर दिया जिसमें उन्होने ये दावा किया कि ये शेर उनके अब्बा मुनव्वर राना 20 साल पहले यानि 2000 में ही पढ़ चुके… लेकिन जब पड़तात की तो मालूम चला कि मुनव्वर राना का ये वीडियो वाला दावा भी फर्जी साबित हुआ और ये वीडियो 2003 का निकला…

सबूत नंबर 5
दरअसल मुनव्वर राना आदतन चोर किस्म के शायर रहे हैं… उन्होने अकेले आलोक श्रीवास्तव की ही बौद्धिक संपदा में सेंध नहीं मारी है बल्कि वो बशीर बद्र साहब और गुलरेज़ अली के भी शेर चुराते रहे हैं… भऱोसा नहीं होता तो खुद पढ़ लीजिए…

बशीर बद्र ने कभी लिखा था कि – “कई दिन से तुम्हे देखा नहीं है, चले भी आओ मुद्दत हो गई है”…
अब देखिए मुनव्वर का चोरी किया हुआ शेर – “कई दिन से तुम्हे देखा नहीं है, ये आंखों के लिए अच्छा नहीं है”…

कभी गुलरेज अली ने लिखा था कि – “चलन नथिया पहनने का किसी बाज़ार में होगा, शराफत नाक छिदवाती है, धागा डाल देती है”…
अब देखिए मुनव्वर का चोरी किया हुआ शेर – “भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों पर, गरीबी कान छिदवाती है, तिनका डाल देती है”…

आलोक श्रीवास्तव की ओर से अब तक जारी दस्तावेज बताते हैं कि उनकी ग़ज़ल मुनव्वर राना के चुराए शेर के कम से कम तीन साल पहले की है जबकि वे इस बात को लेकर भरपूर आत्मविश्वासी हैं कि उनकी अम्मा ग़ज़ल की ओरिजनल डेट और पीछे की है जिसका वे समय आने पर खुलासा करेंगे।
#PrakharShrivastava

ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और राष्ट्रीय हिन्दू संगठन से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇

https://kutumbapp.page.link/GKrLXYQFURJZnCtbA?ref=VK58C

Comment:Cancel reply

Exit mobile version