आखिर क्यों गहराता जा रहा है देश में बिजली संकट ?

देश में बिजली संकट

योगेश कुमार गोयल

महाराष्ट्र में करीब 28 हजार मेगावाट बिजली की मांग है, जो गत वर्ष के मुकाबले 4 हजार मेगावाट ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना इत्यादि राज्य भी इस समय कोयले की किल्लत से जूझ रहे हैं।

भीषण गर्मी के बीच बिजली की तेजी से बढ़ती मांग के कारण देश के कई राज्यों में बिजली की कमी का संकट गहरा रहा है। बिजली की मांग बढ़ने के साथ ही थर्मल पावर प्लांटों में कोयले की खपत तेजी से बढ़ी है और इसी कारण कुछ राज्यों के बिजली संयंत्रों में कोयले का स्टॉक घट रहा है। दरअसल गर्मी के कारण कई बिजली कम्पनियों में बिजली की मांग में वृद्धि हुई है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, बिजली की मांग में भी उसी तेजी से वृद्धि हो रही है। कोरोना लॉकडाउन के बाद बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौट रही औद्योगिक गतिविधियों के कारण उद्योगों में भी बिजली की खपत बढ़ी है, इससे भी बिजली की मांग बढ़ रही है लेकिन मांग के अनुरूप पावर प्लांटों में कोयले का स्टॉक नहीं है। कोयले की कमी के संकट को लेकर कोल इंडिया स्वीकार चुकी है कि गर्मी शुरू होने के साथ ही देश के बिजली संयंत्रों में कोयला भंडार नौ साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था। हालांकि संघीय दिशा-निर्देशों के अनुसार बिजली संयंत्रों में कम से कम 24 दिनों का कोयला स्टॉक होना चाहिए।

आंकड़े देखें तो महाराष्ट्र में करीब 28 हजार मेगावाट बिजली की मांग है, जो गत वर्ष के मुकाबले 4 हजार मेगावाट ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना इत्यादि राज्य भी इस समय कोयले की किल्लत से जूझ रहे हैं, जिस कारण कुछ राज्यों में कुछ पावर प्लांटों में तो बिजली उत्पादन ठप्प हो गया है तो कुछ प्लांटों में बिजली उत्पादन अपेक्षाकृत कम हो पा रहा है। केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) के मुताबिक देश में 173 बिजली संयंत्रों में से 155 गैर-पिथेड बिजली संयंत्र हैं, जहां पास में कोई कोयला खदान नहीं है और इनमें औसतन कोयले का करीब 28 फीसदी स्टॉक है जबकि कोयला खदानों के पास स्थित 18 पिथेड संयंत्रों का औसत स्टॉक सामान्य मांग का 81 फीसदी है। पिछले साल अक्तूबर माह में भी बिजली की मांग करीब एक फीसदी बढ़ जाने के कारण कोयला संकट के चलते बिजली संकट गहराया था और तब यह भी स्पष्ट हुआ था कि बिजली संयंत्रों को कोयले की वांछित आपूर्ति नहीं होने के अलावा कई नीतिगत खामियां भी बिजली संकट का प्रमुख कारण हैं।

कोरोना काल से पहले अगस्त 2019 में देश में बिजली की खपत 106 बिलियन यूनिट थी, जो करीब 18 फीसदी बढ़ोतरी के साथ अगस्त 2021 में 124 बिलियन यूनिट दर्ज की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च 2023 तक देश में बिजली की मांग में 15.2 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है, जिसे पूरा करने के लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को उत्पादन में 17.6 फीसदी वृद्धि करनी होगी। देशभर में कुल बिजली उत्पादन का 70-75 फीसदी कोयला आधारित संयंत्रों से ही होता है और कोल इंडिया द्वारा रिकॉर्ड कोयला उत्पादन भी किया जा रहा है लेकिन फिर भी मांग और आपूर्ति का अंतर कम नहीं हो पा रहा है। देश में करीब 80 फीसदी कोयले का उत्पादन कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) द्वारा किया जाता है और उसने इस वित्त वर्ष में कोयला आपूर्ति को 4.6 फीसदी बढ़ाकर 565 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा है। कोल इंडिया का कहना है कि वैश्विक कोयले की कीमतों और माल ढुलाई लागत में वृद्धि से आयात होने वाले कोयले से बनने वाली बिजली में कमी आई है।
केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी के मुताबिक 2012-22 में देश में कुल कोयला उत्पादन 8.5 फीसदी बढ़कर 77.72 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि यदि वाकई कोयले का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है तो फिर बिजली संयंत्र कोयले की भारी कमी से क्यों जूझ रहे हैं और यदि कोयले की कमी नहीं है तो बिजली उत्पादन में गिरावट क्यों आ रही है? बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलगाड़ियों की कमी भी बिजली संकट गहराने का कारण बनी रही है। कोयला खदानों से पावर प्लांटों तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे में रैक (डिब्बों) की कमी एक अहम कारण रहा है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि कोरोना महामारी के कारण कई राज्यों की वित्तीय स्थिति खस्ता हुई है, जिससे उनके स्वामित्व वाली बिजली वितरण कम्पनियां (डिस्कॉम) बिजली उत्पादन कम्पनियों को बकाया चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। माना जा रहा है कि केन्द्र तथा कोयला बहुल गैर-भाजपा शासित सरकारों के बीच भुगतान को लेकर तनातनी और बिजली उत्पादन कम्पनियों द्वारा सीआईएल को अदायगी में देरी कोयला खनन में ठहराव आने का एक प्रमुख कारण है।
विदेशों से कोयले का आयात बंद करने से भी समस्या गहराई है। दरअसल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें काफी बढ़ी हैं और बिजली संयंत्रों द्वारा कोयले का आयात इसीलिए बंद या बहुत कम किया जा रहा है क्योंकि इससे उनकी उत्पादन लागत में काफी वृद्धि हो रही है। कोयले की बढ़ती मांग के कारण बिजली मंत्रालय द्वारा कोयले का आयात बढ़ाकर 36 मिलियन टन करने को कहा गया है। बहरहाल, कोयले की कमी से बार-बार उपजते बिजली संकट से निजात पाने के लिए बिजली कम्पनियों को भी कड़े कदम उठाने की दरकार है। दरअसल बिजली वितरण में तकनीकी गड़बड़ियों के कारण कुछ बिजली नष्ट हो जाती है। वितरण प्रणाली को दुरुस्त करके बेवजह नष्ट होने वाली इस बिजली को बचाया जा सकता है। इसके अलावा लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर चोरी की जाने वाली बिजली के मामले में भी सख्ती बरतते हुए निगरानी तंत्र विकसित करते हुए बिजली की चोरी पर अंकुश लगाना होगा। बिजली संकट से स्थायी राहत के लिए अब आवश्यकता इस बात की भी महसूस होने लगी है कि देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के बजाय प्रदूषण रहित सौर ऊर्जा परियोजनाओं, पनबिजली परियोजनाओं तथा परमाणु बिजली परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाए।

इस वर्ष तक सौर ऊर्जा के जरिये 100 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन इस लक्ष्य को हासिल नहीं किए जा सकने के कारण भी बिजली की कमी का संकट बना है। सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत फिलहाल चीन, अमेरिका, जापान तथा जर्मनी के बाद दुनियाभर में पांचवें स्थान पर है और बिजली के समय-समय पर गहराते संकट से देश को निजात तभी मिलेगी, जब सौर ऊर्जा परियोजनाओं के जरिये लक्ष्यों को समय से हासिल किया जाए। घरों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने हेतु आसान शर्तों पर ऋण तथा सब्सिडी देने की योजना के जरिये भी बिजली की मांग कुछ हद तक कम करने में मदद मिल सकती है। ऊर्जा की कमी को विश्व बैंक द्वारा किए गए एक अध्ययन में आर्थिक विकास में बाधक बताया जा चुका है। दरअसल बिजली के समय-समय पर गहराते संकट के कारण विभिन्न राज्यों में आम नागरिकों की ही परेशानियां नहीं बढ़ती बल्कि बिजली की कमी से देश की अर्थव्यवस्था पर भी काफी बुरा असर पड़ता है।

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