पुस्तक समीक्षा : जीणा भाई उर्फ मोहम्मद अली जिन्हा ( उपन्यास)

बीती शताब्दी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए बहुत बड़ी त्रासदी लेकर आई थी। जब 1947 की 15 अगस्त को देश को आजादी मिलने से पहले भारत का बंटवारा होकर एक नया देश पाकिस्तान के नाम से विश्व के मानचित्र पर उभर कर सामने आया था। भारत के लिए निश्चय ही 14 अगस्त 1947 एक काला दिन था। भारत के विभाजन की त्रासदीपूर्ण घटना को अंजाम तक पहुंचाने में मोहम्मद अली जिन्नाह नाम के मुस्लिम लीग के नेता का विशेष योगदान रहा था। यह और भी दुखद तथ्य है कि मोहम्मद अली जिन्नाह का परिवार मूल रूप से हिंदू रहा था, परंतु जैसे ही इस परिवार का धर्मांतरण हुआ तो उसने मोहम्मद अली जिन्ना के रूप में एक ऐसे खलनायक को जन्म दिया जो देश तोड़ने में सबसे आगे निकल गया।
डॉक्टर किशोरी लाल व्यास द्वारा लिखी गई यह पुस्तक वास्तव में एक उपन्यास है, परंतु हमें बहुत कुछ सीखने, समझने और सोचने के लिए प्रेरित करता है। पुस्तक को पढ़ने व समझने से हमें पता चलता है कि भारत जो कभी आर्यावर्त हुआ करता था और जिसका राज्य संपूर्ण भूमंडल पर हुआ करता था, उसे काटने और बांटने में अब से पूर्व भी कई जिन्नाह पैदा हो चुके थे। परंतु मोहम्मद अली जिन्ना ने 1947 में देश को जिस प्रकार काटा और अंग्रेजों का चाटुकर बनकर देश का अहित किया, वह घटना अपने आपमें बहुत ही दु:खद रही। इससे भी बड़ी दुखद बात यह थी कि देश का तत्कालीन नेतृत्व यह नहीं समझ पाया कि यदि देश का विभाजन मजहब के नाम पर हो ही रहा है तो फिर इस समस्या का स्थाई समाधान खोज लिया जाए अर्थात मुस्लिम देश के रूप में स्थापित होने वाले पाकिस्तान के लिए सभी मुसलमानों को भारत से भेज दिया जाए और वहां से सभी हिंदुओं को भारतवर्ष बुला लिया जाए। बीज के रूप में जिन जिन लोगों को तत्कालीन नेतृत्व ने भारत में रखा, वह अब फिर एक नए देश की मांग करने लगे हैं। कहने का अभिप्राय है कि देश को आजाद हुए अभी एक शताब्दी भी नहीं गुजरी है कि जिन्नाह के बोल फिर सुनाई देने लगे हैं।
हम देश की एकता और अखंडता के प्रति इतने अधिक सावधान और सजग हों कि हमारे रहते फिर ऐसा कोई गांधी पैदा ना हो जो किसी मुस्लिम लीग या किसी विदेशी शक्ति का गुणगान करने वाला या उसकी आरती उतारने वाला हो । ना ही
कोई ऐसा नेहरू पैदा हो जो सत्ता स्वार्थ के लिए देश की एकता और अखंडता को तार-तार करने के लिए भी तैयार हो जाए और मोहम्मद अली जिन्ना जैसा देश घातक तो कतई पैदा नहीं होना चाहिए जो निहित स्वार्थ में आर्य वैदिक हिंदू राष्ट्र भारत के विभाजन की आधारशिला रखने में सफल हो जाए।
देश के भीतर अलगाववाद की बात करने वाली शक्तियों को जवाब देने के लिए और युवा पीढ़ी को अपने कर्तव्य धर्म का बोध कराने के दृष्टिगत लेखक का प्रयास वंदनीय है। वह अपना संदेश और उद्देश्य स्पष्ट करने में सफल हुए हैं।
पुस्तक का मूल्य ₹225 है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर , 0141 – 2310785 व 4022382 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए उपरोक्त नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।
पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 127 है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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