गीता मेरे गीतों में …. कविता संख्या – 16 शिथिल करो बंधन

शिथिल करो बंधन

तर्ज : – बचपन की मोहब्बत को ….

माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता।
सत , रज, तम तीनों के महा-भ्रम में पड़ जाता।। टेक।।

सत , रज , तम – तीनों से माया ने रचा जीवन।
इन से ही जगत बना भोगों का पड़ा बंधन ।।
जो इन में भटक गया , रब से नहीं मिल पाता …..
माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता ……

पहचान नहीं पाता जब मानव ईश्वर को ।
तब शिथिल करो बंधन देखो जगदीश्वर को ।।
वह सब में व्यापक है , पर नजर नहीं आता …..
माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता ……

ना पार कोई पाया , इस माया ठगिनी का ।
आ शरण प्रभु की तू और नाश हो बंधन का ।।
कल्याण मिले निश्चय , भवबन्धन कट जाता …..
माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता ……

मिल पाता ज्ञानी ही और भक्ति भी करता।
‘राकेश’ प्रभु चाहते , कृपा का वरण करता ।।
‘सब कुछ ईश्वर का है’ – हृदय में यही आता …
माया में रमा मानव ना भगवान से मिल पाता …..

गीता मेरे गीतों में से उद्धृत
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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