snake fattyएक तालाब के किनारे मोटा सांप रहता था मेंढकों को खाया करता था …मेंढक बचने की कोशिश करते कभी कभी कोई हाथ भी आ जाता सांप का भी पेट भर जाता था …सांप ने सोचा मेहनत कितनी होती है और ये टैडपोल कभी हाथ आते हैं कभी नहीं …कितनी बार इनके चक्कर में काँटों से छिद गया हूँ कुछ चक्कर चलाना चाहिए जिससे मेहनत भी न लगे घाव भी न लगे और अपना पेट भर जाए खा पी कर मटरगश्ती करें।

सांप कहीं दूसरी जगह से कीड़े मकोड़े खाकर आ जाता और तालाब के किनारे चुप्प बैठ जाता …मेढकों के बच्चे कूद कूद कर पास पहुँच जाते जब उनको लगता की कहाँ मौत के मुंह में पहुँच गए तो भागते वापिस …पर सांप कोई हरकत नहीं करता ….कुछ समय बीता मेढक खुले में आते सांप निश्चेष्ट पड़ा रहता …एक दिन एक मेंढक पहुँच गया बोला आपने हमे खाना बन्द कर दिया ये मुल्लों की तरह दाढ़ी बढ़ा ली है …क्या गम लग गया है…..

देखो मैंने जिंदगी में बहुत पाप किये हैं पर मुझे समय पर होश आ गया है मुझे संसार से वैराग्य हो गया है अब कोई इच्छा शेष नहीं बस जो मैंने मंडूकजाति का अपकार किया है उसका प्रायश्चित्त करना चाहता हूँ …पर कैसे …नहीं सूझता …एक उपाय है पर तुम शायद विश्वास करो …नहीं विश्वास तो नहीं पर तुम जब साफ़ मन से बोल रहे हो तो बोलो।

इनकी बात सुनकर दूसरे मेंढक भी आ पहुंचे सुनने लगे।

सुनो मैं चाहता हूँ की मैं सब मेंढकों को पीठ पर बिठा कर सवारी कराऊँ इस तालब के दूर दूर कोनों तक ले जाऊं ….बात करने वाला मेंढक तो दूर रहा दुसरे जोशीले फट से उसकी पीठ पर सवार हो गए …सांप ने पूरे तालाब में घुमाया ..सबको असीम आनंद मिला …सब सांप को by बोल कर घर चले ।

दो तीन दिन यही क्रम चला ..तो बात मेंढकों के राजा तक पहुंची ..राज ने कहा हमारा अधिकार पहले था सवारी का तुम लोंगों ने बताया क्यों नहीं …अब राजा मंत्री सैनीक सब सवारी करें रोज का नियम सांप थकता था पर कुछ नहीं चुपचाप धीरज से प्रतीक्षा करता था ….

सांप लगातार दो तीन दिन सवारी करने नहीं आया तो राजा ने संदेसा भेजा की आते क्यों नहीं …सांप ने कहलवाया मैं अब खाता नहीं हूँ कमजोरी आ गई है ..अब मुझसे नहीं होता मेरी और से इतनी ही सेवा समझाना …

सवारी का चस्का लग गया दुसरे तालाब के मेंढकों पर भी रुआब पड़ने लगा था की फलां तो सांप की सवारी करता है …प्रतिष्ठा और सुख के मोह में मेंढक ने कहलवा भेजा …तुम्हारे लिए दो मेंढक प्रतिदिन हम दिलवाया करेंगे ।

कुछ दिन नियम रहा बाद में सांप सवारों को भी खाता जाता पर कोई कुछ नहीं बोलता सब को सवारी के लालच ने घेर रखा था ।

धीरे धीरे स

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