तेरी कोमल काया के नही, चिन्ह दृष्टि कहीं आएंगे।
पंचभूतों में पंचभूत, ये सारे ही मिल जाएंगे।

पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को, तेरे अवशेष बढ़ाएंगे।
हरी-हरी फिर घास जमेगी, जिसे पशु चर जाएंगे।

ध्यान कर उस हश्र का, जो अंतिम पल पर होवेगा।
यदि सुरभि है तेरे अंदर, तभी जहां तुझे रोवेगा।

बागबां है ये जहां, और कली इंसान है।
जनम मृत्यु का नियंता, वो माली भगवान है।

ओ मनुष्य! तू क्यों भटकता, पैसा पद जायदाद में।
इनके हित मत जुल्म कर, रोना पड़ेगा बाद में।

तन से कर इस जग की सेवा, मन लगा प्रभु याद में।
आत्मिक आवाज सुन ले, व्यर्थ के तू नाद में।

त्याग दे दुश्प्रवृत्तियों को, सद्प्रवृत्ति स्वीकार कर ले।
मत उलझ तू कंटकों से, प्रसून से तू झोली भर ले।

ज्ञान और विज्ञान से कर, प्राणियों का हित सदा।
इतिहास के पन्नों में अपना, तू भी कुछ कौशल बदा।

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