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स्वास्थ्य

स्वास्थ्य का उजड़ना होता है खतरनाक, रखें इसका ध्यान


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मैं आपको सेहत कितनी बड़ी नेमत है इसे समझाने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ-

अक्सर कबीर अपने दादा से शिकायत करता रहता है कि उनके पास कुछ भी नेमते नहीं हैं, दुर्भाग्य ही शायद उनका भाग्य है और उन्हें बनाने वाले ईश्वर ने उन्हें बनाने के बाद उनकी तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा। पड़ोसियों के पास कार है, बंगला है, बेइंतहा पैसा है…..।
उसके दादा उसे हमेशा ईश्वर की दी हुई नेमते गिनवाते लेकिन उस पर इनका कोई खास असर नहीं होता और कुछ दिनों बाद वह वही शिकायतें करता रहता। सौभाग्य से उसके दादा उसे समझाते रहते औरों की तरह नहीं जो सोचें कि यह तो काँच का कँचा है इस पर तेल नही चढ़ेगा। एक दिन वे उसे एक फाइव स्टार हॉस्पिटल में ले गए जहां पर सभी बेहद अमीर लोग भर्ती थे और अपनी ज़िंदगी और मौत के बीच होती जंग को देख रहे थे। कभी ज़िन्दगी का पलड़ा भारी होता तो कभी मौत का पंजा सख्त हो जाता…।
कबीर के दादा ने सभी अलग अलग वार्ड में जाने की और उन मरीज़ों से उनके लिए श्रेष्ठ नेमत क्या है यह सवाल करने की योजना बनाई। वह काफी नेक और प्रसिद्ध समाजसेवी थे, अस्पताल में रोगियों का हौंसला बढाने आते रहते थे इसलिए हॉस्पिटल प्रबंधन ने उन्हें रोगियों से मिलने और बात करने की इजाज़त दे दी। सबसे पहले वे श्वासरोग विभाग में पहुँंचे। एक बुज़ुर्ग जटिल अस्थमा से पीड़ित साँसों के लिए जद्दोजहद कर रहा था। दादा ने उससे क्षमा माँगते हुए पूछा कि “महोदय आपके लिए ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत क्या है अभी?” बुज़ुर्ग ने हाँफते हुए जवाब दिया, (उनकी आँखों से आँसू निकल रहे थे, वे दुःख के नहीं पीड़ा के थे जो अक्सर श्वसन तंत्र के रोगियों को निकलते ही हैं) “मेरे लिए तो सबसे बड़ी नेमत यही होगी कि मैं आसानी से बिना किसी मुश्किल के साँस ले पाऊं।”

उसके बाद कबीर को उसके दादा यूरोलॉजी (मूत्ररोग) डिपार्टमेंट में ले गए। वहां पर वे एक किडनी के रोगी से मिले जो युवा ही था और बहुत ज़्यादा पैेनकिलर लेने के कारण उसकी किडनी डैमेज हुई थी। किडनी इतनी ज्यादा डैमेज हो चुकी थी कि उसको अब मूत्र ही नहीं आता था। दादा जी ने उससे पूछा बेटा आपके लिए अभी ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत क्या होगी? उसने फौरन ही जवाब दे दिया कि, “मेरे लिए तो यही सबसे बड़ी नेमत होगी कि मेरी किडनी फिर से मूत्र का निर्माण करने लगे और मैं भी आप लोगों की तरह हर दो तीन घंटों में मूत्र त्याग करने जाऊं।” कबीर अचंभित था कि मूत्र करने जाना भी कितनी बड़ी नेमत है जिस पर उसका कभी ध्यान ही नहीं गया था।

इसके बाद वे दोनों वार्ड दर वार्ड घूमते रहे और सेहत के महत्व को जानते रहे। कोई अंधेपन से पीड़ित अमीर व्यक्ति कह रहा था कि मेरी सारी दौलत ले लीजिये लेकिन कृपा करके मुझे मेरी आँखें वापस दिलवा दीजिये। कोई नींद न आने से पागलपन की हद तक परेशान था। एक गायक के कंठ में छोटी सी फुंसी ने उसका सारा कैरियर बर्बाद कर दिया था और वह उसकी पुरानी आवाज़ फिर पाना चाहता था, एक हॉकी प्लेयर के कैरियर को टखने के फ्रैक्चर ने बर्बाद कर दिया था और अब वह अपना स्वस्थ टखना फिर से पाने के लिए दुआएं कर रहा था, एक पैरालिसिस का रोगी अब अपनी महंगी कारों को नहीं चला पाएगा और उसका कहना था कि अपने पैरों की सवारी के आगे सारी सवारियां निकृष्ट और बेकार हैं, ये उसे अब पता चला है। आहार नली के कैंसर से पीड़ित एक महिला से भी वही सवाल पूछा तो उसने बताया कि उसके लिए तो यही सबसे बड़ी नेमत होगी कि उसका कैंसर ठीक हो जाए और वह आराम से बिना किसी तकलीफ के खाना खा सके और जीवन को सामान्य रूप से जी सके जैसा कि वह कैंसर से पहले था।

कई बार सेहत को वापस पाने के लिए हमारी दौलत कुछ काम नहीं आती। सच ही है कि हमारे नौकर-चाकर हमारी सेवा कर सकते हैं लेकिन पीड़ाओं और रोगों को सिर्फ हमें ही सहन करना है। दुनिया का कोई भी व्यक्ति त्वचा के बाहर के संसार में तो आपके लिए कुछ भी कर सकता है लेकिन त्वचा के भीतर वाले संसार मे सारी की सारी जंग सिर्फ और सिर्फ आपको ही लड़ना है।

उन सभी अमीरों की पीड़ा को देख और सुनकर कबीर अब खुद को नेमतों से लदे हुए शरीर का मालिक समझ रहा था। उसके पास वे राहतें और नेमतें थी जिनके लिए वे अमीर स्त्री और पुरुष तरस रहे थे… वह सेहत की कद्र और उसकी कीमत जान चुका था। उसके दादा भी आज की इस क्लास से बहुत खुश थे क्योंकि इसके बहुत सकारात्मक परिणाम मिले थे। अब कबीर खुद को बहुत भाग्यशाली मानने लगा था…और उसे यह अहसास भी हो गया था कि ईश्वर उससे कितना प्रेम करता है और हर पल उसका ख्याल रखता है, उसने उसे कभी भुलाया नहीं था…। अब कबीर तो सेहत को सबसे बड़ी नेमत मानने लगा है… और आप?

हमारे जन्म लेते ही एक चीज हमें दी जाती है और एक ही बार दी जाती है, वह है हमारा शरीर। यह जीवन गुज़ारने का एकमात्र साधन है जो हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर या खुदा द्वारा दिया जाता है। केवल और केवल इसके साथ ही हमें जीवन गुज़ारना होता है। इसके बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है। यही हमारा सच्चा हमसफर है। मॉडर्न रूमानी अंदाज़ में कहूँ तो यही हमारा ‘ट्रू वैलंटाइन’ है। रुकिए मेरी बात पर शक़ करने से पहले आप एक बार खुद को शरीर के बिना इमैजिन कीजिए…अब शायद आपको मेरी बात का महत्व समझ आ रहा होगा।

एक सत्य स्वीकार कीजिए कि हमारे पास एक ही शरीर है और हमें उसी के साथ जीना है। यह सत्य स्वीकार करने के बाद आप मुझे यह बताइये कि आप इस एक मात्र अमूल्य निधि का कितना ख्याल रखते हैं? मैं अगर किसी युवा से कहूं कि अब शासन का नियम है कि आपको केवल और केवल एक ही बाइक मिलेगी और इसी से आपको अपने पूरे जीवन के सफर तय करना है। तो आप मुझे बताइये कि वह युवा उस बाइक की कितनी देख रेख करेगा? उसकी वह सर्विसिंग करवाएगा, समय पर ऑइल चेंज करवाएगा, टायर, ब्रेक, बॉडी सभी का ख्याल रखेगा। लेकिन अगर मैं कहूँ कि शरीर भी आपको एक ही मिला है और उसी में पूरी ज़िंदगी गुज़ारना है, इसका ख्याल रखो, इसकी सेहत को बनाए रखो, इसे पोषण दो, कसरत करो, परहेज़ करो, जोड़ों, दिल, किडनी, फेफड़े, लिवर, दिमाग का ख्याल रखो… आदि। तो अब वह युवा मेरी बात आसानी से नहीं मानेगा और अगर मानेगा भी तो केवल 15 से 20 दिन के लिए। फिर उसी ढर्रे पर। फिर उसी लापरवाही पर उसका जीवन लौट आएगा।

हम शरीर की अहमियत नहीं समझते। सेहत को कोई प्राथमिकता नहीं देते। शरीर को ऐसे घिस देते हैं जैसे यह हमारा है ही नहीं। नशा करके अपनेे मुंह, फेफड़े, लिवर और दिमाग को खराब कर लेते हैं। चटोरों और भुक्कड की तरह वास्तविक भूख से दुगना खा कर सो जाते हैं और फिर कई रोगों को दावत देकर इस शरीर को नष्ट कर लेते हैं। हम शरीर को होश संभालते ही खराब करना शुरू कर देते हैं और जब यह खराब हो जाता है तब हमें असली होश आता है कि अरे यह हम क्या कर बैठे! नाश, सत्यानाश और क्या।

प्रिय पाठकों आपका शरीर जब तक आपके साथ है तभी तक ज़िन्दगी का आनंद है, मज़ा है और ऑफकोर्स जीवन है। आपके जीवन का कोई भी काम शरीर के बिना नहीं हो सकता। कोई भी लक्ष्य इसके बिना नहीं पाया जा सकता। किसी की मदद इसके बिना नहीं की जा सकती। यह जब तक आपके साथ है आप किसी का भी सहारा बन सकते हैं लेकिन यह अगर आपके साथ नहीं है तो फिर आप खुद बेसहारा हो जाएंगे, आप दूसरों पर बोझ बन जायेंगे और बोझ कबतक…ज़िन्दगी भर तक… और ज़िन्दगी भर बोझ कौन उठाएगा भला? आपके अपने, आपके मित्र, आपके बीवी बच्चे आपकी बाहर की पीड़ा या समस्या को ठीक करने में आपकी मदद कर सकते हैं लेकिन आपकी चमड़ी के भीतर के संसारवाकई समस्याओं और पीड़ाओं से केवल और केवल आपको ही निपटना है। आराम, आलस, आनंद और महत्वाकांक्षा के पीछे अपने शरीर को बर्बाद न करें।

आपको क्या करना चाहिए-

● सेहत को प्रथम पायदान पर रखना चाहिए। यह मनन करना चाहिए कि कहीं आप सेहत को बर्बाद य्या नज़रंदाज़ तो नहीं कर रहे हैं।

● रोज़ाना कम से कम 30 से 45 मिनट शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दें जिसमे योग और कसरत शामिल हो।

● केवल और केवल सेहत को लाभ पहुंचाने वाली चीज ही खाएं। हर निवाला अपना असर दिखाएगा इस सिद्धांत पर चलें। कोई भी घातक चीज अपने शरीर में ना जाने दें।

● स्वस्थ रहने की कला सीखें। इसके लिए किसी से प्रशिक्षण लें या किताबें पढें।

● जीवित रहने के मूलभूत काम सही ढंग से करें जैसे- श्वास लेना, पानी पीना, भोजन करना, स्नान और सोना।

● यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या हो तो आप तुरंत ही किसी अच्छे चिकित्सक से मिलें। अच्छे चिकित्सकों से मिलने से डरे नहीं और हर व्यक्ति के पास अच्छे चिकित्सकों की एक लिस्ट होना ही चाहिए।

आयुर्वेद आदि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की मदद अवश्य लें क्योंकि ये बिना किसी दुष्प्रभाव के आपको स्वस्थ कर देती हैं।

● अपने चिकित्सक की सलाह का पालन करें। उनके द्वारा बताए गए परहेज़ ज़रूर करें।

● स्वच्छ वातावरण बनाने में सहयोग करें। प्रदूषण ना खुद फैलाए और ना फैलाने दें।

● केमिकल से उत्पन्न अन्न और सब्जियों की जगह ऑर्गेनिक को महत्व दें।

पुनःश्च मैं अक्सर अपने लेख और वक्तव्य में एक बात कहता हूँ कि अगर आपके पास एक स्वस्थ लिवर और पैंक्रियाज़ हैं तो आप एप्पल के संस्थापक और अपने वक़्त के सबसे ज्यादा मालदार स्टीव जॉब्स से भी ज्यादा धनवान हैं। क्योंकि उनका सारा धन मिलकर भी उन्हें ये दो अंग वापस नहीं कर सका। इसलिए प्रिय पाठकों अपने शरीर की कद्र कीजिए, इससे प्रेम कीजिए क्योंकि “जग में तो शरीर से बड़ा साथी नहीं कोई…”

#World_Health_Day. #विश्व_स्वास्थ्य_दिवस

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साभार

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