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नानी कहना चाही एक कहानी

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मित्र हो या भाई, इनका हक कभी नहीं मारना चाहिए। नहीं तो उस ठग जैसा हाल होता है। ‘ नानी कहना चाही एक कहानी।
‘किस ठग जैसा, नानी। ‘
सब बच्चों ने एक साथ पूछा।
नानी कहने लगी कहानी। एक देश में रहते दो ठग थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी। कई रईसजादों को ठग चुके थे पर कभी पुलिस के हत्थे न चढ़े थे। वो बड़ी सावधानी से और कभी-कभार ही ठगी किया करते ताकि किसी को कोई शक न हो। ऐसे में उनकी हालत हमेशा बदतर बनी रहती। हमेशा की तंगी से उबरने के लिए उन्होने सोचा-क्यों न कोई बड़ी ठगी की जाय ताकि फिर ठगी करने की जरूरत न पड़े। भाग्य ने उनका अच्छा साथ दिया। उनको मालूम हुआ कि शहर का एक सोना व्यापारी सोना लेकर दूसरे शहर जाने वाला है। ठगों ने उस व्यापारी का पीछा किया और बड़ी चालाकी से वैसा ही सूटकेस रखकर उसका सोने से भरा सूटकेस उठा लिया।
“फिर क्या हुआ नानी ? ” सब बच्चों ने एक साथ पूछा। लाखों का माल देखकर उनमें से एक ठग को लालच आ गया। सोचा, अगर इसका आधा किया गया तो यह बहुत कम हो जाएगा और अगर आधा न किया जाए तो शायद दोबारा कभी किसी तरह का काम-काज करने की जरूरत ही न पड़े।
उसने चलती ट्रेन से अपने मित्र को धक्का दे दिया और पूरा सोना अपने पास रख लिया। कुछ दिनों में उसके घर में एक रूपवान कन्या ने जन्म लिया। वह अपने माता-पिता की पहली सन्तान थी, सो उसके जन्मोत्सव पर खूब खर्चा किया गया। खूब रुपए उड़ाए गए।
छ: महीने भी नहीं बीते थे कि वह खूब बीमार रहने लगी। जब देखो तब उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता। घर का वातावरण भी नीरस ही रहता। घर का काम-काज भी प्रभावित रहने लगा। उसकी दवाई में धीरे-धीरे इतने रुपए खर्च हो गए कि उसे फिर से रुपयों की चिन्ता सताने लगी। उसकी बेटी अभी पाँच साल की भी न हुई थी कि ठगी के सोने से प्राप्त किया सारा धन खर्च हो गया। अब उसे अपने मित्र की याद आने लगी।
एक रात वह इसी बात को सोचता सो गया। उसकी बेटी को बुखार भी था। और पैसे बिल्कुल नहीं बचे थे। उसको गहरी नींद में उसका पुराना मित्र उसके सामने आया और बोला, हम दोनों ठग थे। हम दोनों ने पूरी दुनिया को लूटा। तुमने तो मुझे मारकर ठगा परन्तु मैने मरकर तुम्हें बिना मारे ही ठग लिया। मैने अपना हिस्सा तो लिया ही तुम्हारा भी ले लिया है। ‘
‘वो कैसे ‘ उसने सपने में ही पूछा। उसका मित्र जोर-जोर से हँसने लगा। वह डर गया था। उसके मित्र ने सपने में बताया, ‘ तुम्हारी रूपवती बेटी के रूप में जन्म लेने वाला मैं ही हूँ। अब मेरा हिसाब पूरा हुआ। ‘ इतने में उसकी नींद टूट गयी।
हड़बड़ाकर अपनी बेटी के पास आया। माथा छुआ। उसे बहुत ज्यादा बुखार था। उसने उसी वक्त दम तोड़ दिया। ठग मित्र वास्तव में ठगा-सा रह गया। वह जोर-जोर से विलाप करने लगा।
इसलिए कभी दूसरों का हक नहीं हड़पना चाहिए। नानी ने देखा, बच्चों की आँखें नींद से भारी हो रही थीं।

सुरेँद्र कुमार पटेल

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