साधना से सृजन करें, कोई दाता या शूर

साधना से सृजन करे,
कोई दाता या शूर।
सृष्टि-हित में रत रहे,
ईश्वर का है नूर॥1656॥

भावार्थ:- अपनी आजीविका आजीविका के लिए सामान्य व्यक्ति कुछ न कुछ उत्पन्न करने अथवा निर्माण करने में लगा हुआ है किन्तु संसार में ऐसे ही व्यक्ति होते परमपिता परमात्मा की बनाई सृष्टि के कल्याण के लिए निर्माण अथवा अनुसंधान या सम्यक जीवन का मार्गदर्शन करने में रत है, जैसे देवालय, चिकित्सालय,अनाथालय, धर्मशाला, गौशाला, पाठशाला, यज्ञशाला का निर्माण करते हैं अथवा उनमें खुले दिल से दान देते हैं।अनुसंधान संस्थानों में बड़े- बड़े वैज्ञानिक, चिकित्सक, वास्तुकार,शिल्पकार, साहित्यकार, नीतिकार, अन्तरिक्ष के गूढ़ रहस्यों की गवेषणा करने वाले अन्तरिक्ष यात्री इत्यादि, अपनी साधना में लीन होकर लोकोपकार के कार्य करते हैं। वास्तव में कहा जाय, तो ये आधुनिक युग के ऋषि हैं, मनस्वी हैं,तपस्वी हैं,ये उर्जा के कारण हैं, ये दिव्य-प्रकाश की दीप्तिमान किरण है,जो ईश्वरीय नूर से संसार को आलोकित कर रही हैं।

व्यक्त से अव्यक्त अधिक शक्तिशाली है:-

व्यक्त से अव्यक्त सदा,
शक्ति में है अनन्त।
गति देत ब्रह्माण्ड को,
जिसका आदि न अन्त॥1657॥

भावार्थ:- इस दृश्यमान संसार में मूर्त से अमूर्त स्थूल से सूक्ष्म, व्यक्त से अव्यक्त अधिक शक्तिशाली है। उदाहरण के लिए तांबे के तारो से अधिक शक्तिशाली उनमें प्रवाहित होने वाली विद्युतधारा है, जिससे कल- कारखानों में बड़ी-बड़ी मशीनें चलती है,मोटर और रेल गाड़ी चलती है। कितने आश्चर्य की बात है,तार तो दिखाई देते हैं मगर विद्युत-धारा दिखाई नहीं देती है।
पिण्ड में देखिए शरीर के अंग दिखाई देते हैं किन्तु मन, आत्मा, और प्राण। प्राण,अपान, समान, उदान,व्यान,सूक्ष्म प्राण- नाग – इसका कार्य है डकार लेना, कूर्म – इसका कार्य है दगोन्मेष, पलक झपकना देवदत्त – इसका कार्य है जम्माई लेना, कृकल – इसका कार्य है छींकना,धननज- इसका कार्य मृत शरीर को फुलाना सड़ाना, मन दिखता नहीं है, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म है किन्तु है बड़ा शक्तिशाली, यह चाहे तो मनुष्य को राक्षस बना दे और यह चाहे तो मनुष्य को देवत्त्व और भगवत्त की प्राप्ति करादे। आत्मा भी अमूर्त है किन्तु यह भी बहुत शक्तिशाली पत्थर और लोहे को भी तोड़ कर निकल सकती है, यह हाथी जैसे शरीर को लिए घूमती है।
ब्रह्माण्ड में देखें, तो ब्रह्म अमुर्त है किन्तु बड़े-बड़े सूर्य, तारे, ग्रह,उपग्रह, पंचमहाभूत उसी के संकेत पर चलते है। गति करते हैं। संसार में स्थूल वस्तुओं का तो आदि-अन्त है किन्तु ब्रह्म का कोई आदि-अन्त नहीं है। वह अजर है, अमर है, अनादि अजन्मा है। उपरोक्त विश्लेषण से सिद्ध होता है कि,इस दृश्यमान विश्व में व्यक्त से अव्यक्त अधिक शक्तिशाली है।
क्रमशः

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