हल्दीघाटी   की    मिट्टी    से  ….

कविता – 38

हल्दीघाटी   की    मिट्टी    से  मैंने   जाकर   ये   पूछा,
किस पर तू इतराती है और किसका तुझको नाज चढा ?
मिट्टी बोली –  “मुझे  है  गौरव !  मैंने  राणा  को   देखा”,
सारे संगी साथी देखे,  सबका शौर्य  और  साहस  देखा।।

आगे  बात  बढ़ाती  बोली   – “मेरा  इतिहास  अनूठा  है,”
चौकड़ी भरते चेतक को मैंने अपनी  आंखों  से  देखा  है।
झालाराव   की   स्वामी भक्ति   मेरे  आगे   से  है  गुजरी ,
यहीं पे शक्तिसिंह  के  भीतर  भाई  की  भक्ति  है  उमड़ी।।

हल्दीघाटी  की  मिट्टी  ने  मुझे  याद   दिलाये  भामाशाह,
स्वाधीन बनाना देश को जिनके हृदय की  थी  एक  चाह।
मिट्टी बोली – “मैंने   राणा   को  इतिहास  बनाते है  देखा ‘,
मुगलों को भगते और  ‘लाहौल बिला कुव्वत’ कहते  देखा।

मातृभूमि  हित  जो  भी  हिंदू  वीर  हुए   बलिदान  यहां ,
उनके  से  बलिदान  की  गाथा  तुम्हें  मिलेगी  और  कहां ?
मुझे गर्व है उन  वीरों  ने  मेरी  छाती  का  पय पान  किया
जिनके कारण प्यारे भारत को आजादी का सम्मान मिला।।

जब राणा प्रताप के संकेतों  पर  यहां  नाचता  चेतक  था,
वह  दृश्य  बड़ा  गौरवशाली  और  बड़ा  ही  रोचक  था ।
मैंने अपने रजकण को खुद राणा के चरणों  से धन्य किया,
राणा ने मुझे स्पर्श किया, समझो !  मैंने कोई पुण्य किया।।

हल्दीघाटी  की  माटी  को  गौरव से भरा  सम्मान  मिला,
यह वसीयत है उन वीरों की जिन्हें अंतिम यहां स्थान मिला। वसीयत  और  विरासत  का  अधिकारी  सारा  भारत  है,
“राकेश”  इस  मिट्टी  के  आगे  खड़ा  हुआ  नतमस्तक है ।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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