कविता – 21

अमन को हैं बेचते …

जो राज पद को प्राप्त कर प्रजा का हित चिंतन करे।
योग्य राजा है वही जो परकल्याण हित जीवन धरे ।।
जो राग व अनुराग से सर्वथा और पूर्णतया मुक्त हो ।
राजा उसी को मानिये जो  न्याय  विवेक  युक्त  हो ।।

राजा वही है जो कभी अपने लिए नहीं सोचता।
प्रजा के कल्याण हेतु  उपाय  सदा ही खोजता।।
जिसके लिए प्रजा के जन तैयार प्राण दान को।
आंच कभी आने ना दे जो देश के स्वाभिमान को।।

कर्म कोई भी करो पर अनुमन्य बुद्धि युक्त हो।
अखंड सत्ता ईश का आशीष  भी   संयुक्त हो।।
विवेकी जन जिसको कहें वेद के अनुकूल भी।
करने की उसको ठान लो जग हो प्रतिकूल भी।।

बुद्धि युक्त कर्म ही संसार के उत्थान का हेतु सदा।
बुद्धि युक्त विवेकी जन पाते संसार में सुख संपदा।।
जो न्याय के स्थान पर सदा अन्याय का हैं पक्ष लेते।
वे देश मे आग का व्यापार कर अमन को हैं बेचते ।।

ब्रह्म का   अनुरागी  बन  जो ब्रह्म में विचरण करे।
आहार जिसका ब्रह्न हो उसे ब्रह्म निज शरण धरे।।
जो ब्रह्मवेत्ता बन धरा पर ब्रह्म शक्ति का संचय करे।
ऐसा  व्रतधारी धरा से पापांत एक दिन निश्चय करे।।

जब राजनीति पथभ्रष्ट हो,  बन जाती दुराचारिणी।
तब सर्वत्र पापाचार फैले आती बाढ़ अत्याचार की।।
देश के शासक स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कह प्रसन्न हों।
‘राकेश’ उस समाज में भय सर्वत्र सर्वदा आसन्न हो।।

(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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