कविता  — 19

आर्यों को पवित्र भूमि मिली दान में भगवान से।
प्रचार करो वेद का – और रहो विधि विधान से।।

योग साधना सीखकर जीवन को उन्नत भी करो।
प्राणियों का ध्यानकर उनको समुन्नत भी करो।।

यह धरती मिली है आर्यों को जितनी चाहो भोगिये।
साधना मन की करो , विषय भोग से भी रोकिए।।

यश को बढ़ाओ पूर्वजों के नाम पर अभिमान हो।
तुम ‘आर्य’ हो ‘आर्यत्व’ सदा तुम्हारी पहचान हो ।।

अतीत गौरवमय  रहा वर्तमान जिसके हाथ में ।
भविष्य उज्जवल भी रहेगा शाम में प्रभात में ।।

जो पितृ-भूमि पुण्य-भूमि मानता निज देश को।
हिंदू सदा कहते उसे अपनाए किसी वेश को ।।

मजहब पूजा पद्धति जिसको न हिला सकती कभी ।
तलवार मजहब की जिसे नहीं रुला सकती कभी।।

निज पूर्वजों के देश का सम्मान हृदय से जो करे।
सदा हिंदू के हृदय में ही ऐसे भाव भक्ति के भरे ।।

जो आ8खंड भारत की साधना करता रहे दिन रात ही।
जो दिव्य भारत की मूर्ति को रखता है अपने साथ ही।।

रखकर वेद में विश्वास उनका करता रहे प्रचार भी।
‘आर्य’ हिंदू है वही जो योग का करता रहे प्रसार भी।।

(यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment: