nonsenseआजकल बकवास और बकवासी लोगों का खूब बोलबाला है। जिन्हें नहीं बोलना चाहिए वे भी बोल पड़ते हैं, बोलते चले जाते हैं। नॉनस्टॉप बकवास करना ही इनकी जिन्दगी है।

बात छोटे-बड़े, खास या आम आदमी की हो या फिर किसी भी श्रेणी के कोई से इंसान की। बकवास करना अपने आपमें वह मौलिक प्रतिभा है जिसका न ईश्वर से संबंध है, न वंशानुगत संस्कारों से, न किसी पारिवारिक या परिवेशीय माहौल से।

आदमी हर वक्त कुछ न कुछ करना चाहता है, किसी का बोलना और सुनना अच्छा लगता है, किसी को अनचाहे ही सुनना पड़ता है और कोई-कोई बेशर्म-बदतमीज लोग हर क्षण किसी न किसी के बारे में बकवास करते रहने के आदी हैं।

कुछ लोग हमेशा बकवास भी करते रहते हैं, पागल जानवरों की तरह गुस्सैल भी हो जाते हैं और हमेशा बरसते रहते हैं। इनके लिए कोई अपना-पराया नहीं होता। काफी सारे लोग परंपरागत और नवीन गालियों का मिश्रण भी उण्डेलते रहकर अपनी मौलिक और अन्यतम प्रतिभा का लोहा भी मनवाते रहते हैं।

हरेक क्षेत्र में कुछ लोगों के बारे में यह प्रसिद्ध होता है कि इनकी जबान कभी ठिकाने नहीं रहती, हमेशा फिसलती ही रहती है और ऎसी फिसलती है कि वापस पटरी पर आने में कई दिन लगते हैं। ऎसे ही कुछ लोगों के बारे में कहा जाता है कि उनके बोलने का टोन ही ऎसा होता है कि हर किसी को लगता है कि जैसे कई दिनों से भूखा गिद्धों का सरदार टूट पड़ने को ही आतुर हो।

मानवीय मूल्यों के ह्रास के मौजूदा माहौल में हर क्षेत्र में ऎसे महान लोग होते ही हैं जो कहीं भी किसी भी समय फूट पड़ सकते हैं, ये कब, किस समय और क्या बोल जाएं, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता।

इस किस्म के लोगों को आजकल खूब संख्या में देखा जा रहा है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये काहे के इंसान हैं, अथवा ऎसे लोगों को कौन कह सकता है कि ये इंसान हैं।

हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में ऎसे खूब लोगों से हमारा पाला पड़ता है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये बकवासी लोग हमेशा बकवास करते रहते हैं। इन लोगों के मुँह से भूले-भटके किसी की तारीफ भी निकल जाए तो लोग महान आश्चर्य व्यक्त करते हैं।

इसी प्रकार के लोगों की ढेरों प्रजातियों से  हर आम और खास आदमी हमेशा रूबरू होता है। यह जरूरी नहीं कि बकवासी इंसान पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़। हाँ इतना जरूर है कि इस श्रेणी में पढ़े-लिखे लोगों का प्रतिशत काफी हद तक ज्यादा ही देखा गया है।

दुनिया में जहाँ कहीं इस प्रकार के बकवासी लोगों का वजूद है वहाँ संवेदनशील लोगों को थोड़ा बुरा लग सकता है लेकिन समझदार वही है जो इन्हें मूर्ख, अज्ञानी और नासमझ मानकर इनकी बातों को अनसुना करता हुआ अपने काम में लगा रहे।

बकवासी लोगों की बातों पर गौर करना अपने आप में मूर्खता है। इंसान जब क्रोध अथवा उन्माद में हो, तब वह जो कुछ भी बोलता है उसका कोई अर्थ नहीं होता,इस बात को समझना होगा।

यह उन्माद पैदा करने वाले कई सारे कारक हो सकते हैं या कोई एक कारक भी संभव है। समझदार लोग ऎसे उन्मादी और बकवासी लोगों की किसी बात पर कभी गौर नहीं करते बल्कि अनसुना करते हुए आगे बढ़ जाते हैं।

जीवन में जहाँ कभी ऎसा मौका आए, बकवास और बकवासियों को तवज्जो न दें बल्कि उन्हें दया और करुणा का पात्र मानते हुए अपने कामों में रमे रहें क्योंकि ये नासमझ लोग नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं,।

यह किसी न किसी खुमारी में जीने वाले लोग हैं जिन्हें यह तक पता नहीं होता कि किस समय क्या कहना चाहिए। ज्यों-ज्यों हिंसक और क्रूर जानवरों की संख्या कम होती जा रही है, वे आत्माएं मनुष्य के रूप में प्रकट होने लगती हैं।

जब भी कोई अहंकारी या उन्मादी आदमी हमारे सामने बकवास करे, तब किसी हिंसक वृत्ति के जानवर का चेहरा ध्यान में लाएं और भगवान पशुपतिनाथ का स्मरण कर चुपचाप आगे बढ़ जाएं। पशुपतिनाथ का आभार प्रकट करें कि गनीमत है कि इन लोगों को तीखें दाँत, लम्बे सिंग, मजबूत खुर, काँटें और पैने नाखून नहीं दिए, वरना हम सबका क्या हाल होता। इनका ईलाज भगवान पशुपतिनाथ के पास ही होने वाला होता है।  बोलो पशुपतिनाथ भगवान की जय….।

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