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पहल

– अविनाश वाचस्‍पति

पहल खुद पहलकारक हो

तो अच्‍छा लगता है

पर पहेली का न बने

न पैदा हो पहले से

पहल ही रहता है

पहल का हल

सदा विचारों की फसल

उपजाता है

शून्‍य से खुद को

भीतर तक जलाया है

झुलसाया है

सच बतलाऊं

भीतर तक तपाया है

पहल पर्याय का हो

कविता, कहानी, उपन्‍यास

नाटिका, नौंटंकी या

किसी भी विघ्‍नबाधा की पहल

पहल ही करता है

या नहीं

पर पहल हो जाती है

 

पहल की गाड़ी

सड़क निर्माण से पहले

पगडंडी पर दौड़कर

आगे निकल जाती है

किसी को सुनाई दे या न दे

पर पहल का कोलाहल

कल कल करता मन

को भीतर तक मोहता है

मन से धान को मल मल

पर मन को कल कल रास आती है

पर ध्‍वनि यह न रास से

न रस्‍सी से बांधी जाती है।

 

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