मजबूत हो रही है भारतीय बैंकों की स्थिति

अभी हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय स्थिरिता प्रतिवेदन जारी किया है। यह प्रतिवेदन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा, भारत में वित्तीय स्थिरिता की स्थिति की जानकारी देते हुए, प्रत्येक दो माह बाद नियमित रूप से जारी किया जाता है। विश्व के कई देशों में हालांकि कोरोना महामारी की तीसरी अथवा चौथी लहर चल रही है एवं कहीं कहीं तो ओमीक्रॉन का प्रकोप भी अत्यधिक तेजी से बढ़ रहा है। भारत में भी ओमीक्रॉन के साथ कोरोना महामारी की तीसरी लहर का असर अब स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई विकसित देशों में आपूर्ति चैन में विभिन्न प्रकार की परेशानियां दिखाईं दे रही हैं जिसके कारण इन देशों में मुद्रा स्फीति की दर में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। मुद्रा स्फीति में हो रही लगातार वृद्धि के कारण कई देशों ने ब्याज दरों में वृद्धि करना शुरू कर दिया है एवं कोरोना महामारी के दौर में प्रारम्भ किए गए सहायता/प्रोत्साहन पैकेज में लगातार कमी किए जाने की घोषणाएं की जा रही हैं। उक्त कारणों के चलते अमरीका, यूरोपीयन देशों, आदि में आर्थिक गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है।

परंतु, भारत में जुलाई 2021 के बाद से कोरोना की दूसरी लहर में लगातार हो रहे सुधार के चलते, टीकाकरण कार्यक्रम में आ रही तेजी के कारण (अभी तक भारत में लगभग 150 करोड़ टीके नागरिकों को लगाए जा चुके हैं) एवं इस दौरान केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई आर्थिक निर्णयों के कारण देश में न केवल आर्थिक गतिविधियों में तेजी से सुधार होता दिख रहा है बल्कि वित्तीय स्थिरिता की स्थिति में भी लगातार सुधार दृष्टिगोचर है।

भारत में वर्गीकृत वाणिज्यक बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात 30 सितम्बर 2021 को समाप्त तिमाही में 16.6 प्रतिशत के सराहनीय स्तर पर पहुंच गया है। जबकि अंतरराष्ट्रीय मानदंडो के अनुसार, बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात न्यूनतम 8 प्रतिशत (एवं 2.5 प्रतिशत के पूंजी कंज़र्वेटिव बफर को मिलाकर 10.5 प्रतिशत) होना बैंकों के लिए आवश्यक माना जाता है। इसी प्रकार, भारत में वर्गीकृत वाणिज्यक बैंकों की आस्तियों पर आय एवं इक्वटी पर आय भी इस अवधि में संतोषप्रद रही है, जिसके चलते पूंजी पर्याप्तता अनुपात में भी लगातार सुधार हो रहा है, जो मार्च 2020 में 14.7 प्रतिशत से बढ़कर सितम्बर 2020 में 15.8 प्रतिशत हो गया एवं मार्च 2021 में 16 प्रतिशत होकर सितम्बर 2021 में 16.6 प्रतिशत हो गया है।

वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों में सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियों एवं शुद्ध गैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत भी 30 सितम्बर 2021 को समाप्त तिमाही में कम होकर 6.9 प्रतिशत एवं 2.3 प्रतिशत क्रमशः हो गया है। सकल गैर निष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 8.4 प्रतिशत, सितम्बर 2020 एवं मार्च 2021 में 7.5 प्रतिशत एवं सितम्बर 2021 में 6.9 प्रतिशत रही हैं। साथ ही, शुद्ध गैर निष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 2.9 प्रतिशत, सितम्बर 2020 में 2.1 प्रतिशत, मार्च 2021 में 2.4 प्रतिशत एवं सितम्बर 2021 में 2.3 प्रतिशत की रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रभावित हुए ऋण खातेदारों को उनके द्वारा अदा किया जाने वाले ब्याज एवं किश्त की अदायगी में छूट प्रदान की थी, जिसके कारण भी गैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हुई है। परंतु उक्त बैंकों के प्रोविजन कवरेज अनुपात में सुधार हुआ है और यह मार्च 2021 के 67.6 प्रतिशत से बढ़कर 30 सितम्बर 2021 को 68.1 प्रतिशत हो गया है। इसका आश्य यह है कि इन बैंकों ने अपने खातों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रोविजन कर लिया है। यदि आगे आने वाले समय में इन गैर निष्पादनकारी आस्तियों में समस्या होती है तो बैंकों को इस प्रकार की समस्या से निपटने में आसानी होगी।

देश की आर्थिक गतिविधियों में हो रहे सुधार के चलते भारतीय बैकों के व्यवसाय में भी अब तेज वृद्धि हो रही है। अब तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऋण की मांग बढ़ रही है। जुलाई-सितम्बर 2021 तिमाही के दौरान महानगर, शहरी, अर्द्धशहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गृह ऋण की मांग में भी भारी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। बैकों की जमाराशियों में तो लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती दिख रही है वहीं 19 नवम्बर 2021 को समाप्त एक वर्ष के समय में बैकों की ऋणराशि में 6.97 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। बैकों की ऋण राशि का स्तर पिछले वर्ष के 104.34 लाख करोड़ रुपए की राशि से बढ़कर 19 नवम्बर 2021 को 111.62 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया है। इसका आश्य यह है कि बैकों में हो रही तेज व्यवसाययिक गतिविधियों के कारण इन बैकों की लाभप्रदता में भी वृद्धि दर और अधिक तेज होगी। इससे देश की वित्तीय स्थिरिता की स्थिति में वर्ष 2022 के दौरान और अधिक सुधार देखने में आ सकता है।

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