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राजनीति

ओछेपन की दौड़ में कांग्रेस आगे

कांग्रेस से मुझे यह उम्मीद नहीं थी। नेहरु के नाम पर ओछेपन का क्या काम है? आप पं. जवाहरलाल नेहरु की सवा सौंवी जयंती पर सारी दुनिया को दिल्ली बुलाए हुए हैं लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को बुलाना कांग्रेस पार्टी अपनी तौहीन मानती हैं। आप कृपया बताइए कि आप में और मोदी में क्या फर्क है? मोदी 31 अक्तूबर को सरदार पटेल का जन्म दिन बहुत धूमधाम के साथ मनाते हैं लेकिन उसी दिन होने वाले इंदिरा गांधी के बलिदान-दिवस की लगभग अनदेखी कर देते हैं। वे इंदिरा स्मृति-स्थल पर नहीं गए। वे चले जाते तो उनका कद थोड़ा उंचा ही होता लेकिन ओछेपन की इस दौड़ में कांग्रेस ने मोदी को मात कर दिया है।

मोदी को आपने नहीं बुलाया। मोदी का क्या बिगड़ा? कुछ नहीं। यदि आप बुलाते तो भी क्या वे आ पाते? क्या वे अपने विदेशी मेजबानों से उनके अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की तारीख बदलवाने के लिए कहते? क्या उनके निवेदन को वे स्वीकार कर सकते थे? नहीं। तो फिर क्या होता? वहीं होता, जो अभी हो रहा है। मोदी नहीं आ पाते लेकिन कांग्रेस के बड़प्पन की छाप पूरे देश पर पड़ती। नेहरु को कांग्रेस के दायरे में कैद करना नेहरु का अपमान है। नेहरु कांग्रेस के ही नहीं, सारे देश के नेता थे। वे प्रधानमंत्री नहीं बनते तो भी देश उन्हें सबसे बड़े नेताओं की श्रेणी में रखता।

आज की कांग्रेस और नेहरु की कांग्रेस में जमीन-आसमान का अंतर है। आज की कांग्रेस एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से ज्यादा कुछ नहीं है। आज भ्रष्टाचार और कांग्रेस एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। ऐसी संगत में बैठने की बजाय प्रधानमंत्री का विदेश में रहना कहीं बेहतर हैं।

कांग्रेस को यह लग रहा है कि भाजपा और मोदी गांधी, नेहरु और पटेल जैसे नेताओं को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं? यह तो लोकतांत्रिक सहिष्णुता का परिचायक है। कांग्रेस को किसने रोका है? वह चाहे तो सावरकर के अदम्य साहस, गोलवलकर के तप, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के त्याग, लोहिया के मौलिक विचारों और जयप्रकाश के सदाचार की कद्र कर सकती है। इन शलाका-पुरुषों की हर बात से सहमत होना जरुरी नहीं है, जैसे कि गांधी और नेहरु से भी सहमत होना जरुरी नहीं है लेकिन इन सब महापुरुषों के प्रति सम्मान व्यक्त करने में हम कोताही क्यों करें? यदि कांग्रेस मोदी को बुलाती तो क्या मोदी नेहरु के विरुद्ध बोलते? यह ठीक है कि मोदी संघ के स्वयंसेवक रहे हैं और मुंहफट भी हैं लेकिन यह मत भूलिए कि अब वे भारत के प्रधानमंत्री हैं। नेहरु पर बोलते समय वे कम से कम अपनी गरिमा का ध्यान रखते और विदेशी अतिथियों के सामने भारत का मान बढ़ाते।

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