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महाराष्ट्र में राजनीतिक प्रहसन!

महाराष्ट्र में विचित्र राजनीतिक प्रहसन चल रहा है। विधानसभा अध्यक्ष ने ध्वनि मत से भाजपा की सरकार तो बनवा दी लेकिन उसके बाद विपक्षी दलों ने जैसा हंगामा मचाया है, उससे जाहिर होता है कि दाल में कुछ काला है। विपक्षी मांग कर रहे हैं कि विश्वास-मत के लिए बाकायदा मतदान होना चाहिए। उनकी बात ठीक है लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने ध्वनि-मतदान होने ही क्यों दिया? अब जबकि एक बार मतदान हो गया और उसका परिणाम घोषित हो गया तो फिर हंगामा मचाने की तुक क्या है?

जाहिर है कि ध्वनि मत भी संविधान और नियमों के अनुसार है लेकिन उसकी वैधता अब भी संदिग्ध है। कोई भी दावे से नहीं कह सकता कि देवेंद्र फड़नवीस की सरकार को बहुमत प्राप्त है। अब जब भी विधानसभा में शक्ति-परीक्षण होगा, भाजपा सरकार धराशयी हो सकती है। ऐसी लंगड़ी सरकार भी अभी छह माह तक तो चल ही सकती है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि ऐसी सरकार छह माह बाद किसी समय चुनाव में उतरेगी तो क्या उसे अभी जितनी सीटें मिली हैं, क्या उतनी मिल पाएंगी?

शिव सेना चाहेगी कि महाराष्ट्र में भाजपा की छवि इतनी खराब हो जाए कि उसका खोया गौरव दुबारा लौट आए। और भाजपा चाहेगी कि शिव सेना लगभग खत्म ही हो जाए। इन अतिवादी दुष्ट विचारों के बावजूद दोनों पार्टियां अभी तक एक-दूसरे को ब्लेकमेल कर रही हैं। वरना, क्या वजह है कि केंद्र सरकार में शिव सेना का मंत्री पूरी बेशर्मी से अभी तक डटा हुआ है? और मुंबई के स्थानीय निकाय में दोनों पार्टियां अभी तक गलबहियां डाले हुए हैं।

विधानसभा में विपक्ष की आधिकारिक भूमिका निभाने वाली शिव सेना का बर्ताव कितना विचित्र है? उसमें कहीं आत्म-सम्मान और दृढ़ता दिखाई नहीं पड़ती। राष्ट्रवादी कांग्रेस ने खुद को अवसरवादी कांग्रेस बना लिया है। भाजपा भी कम नहीं है। वह जिसे महाभ्रष्ट कहती थी, अब उसी के कंधे पर बैठकर वह सत्ता-सुख भोगना चाहती है। यह अपने चेहरे पर खुद ही थप्पड़ मारने-जैसा है। इस सारे नाटक में सबसे अधिक प्रसन्न कांग्रेस दिखाई पड़ती है। यदि भाजपा सचमुच महाराष्ट्र में राज करना चाहती है तो उसे इस विधानसभा को तुरंत भंग करवाकर चुनाव करवाना चाहिए। अभी तो मोदी लहर है। नाव पार हो सकती है। बाद में ऊंट किस करवट बैठेगा, किसी को पता नहीं।

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