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भारत-आस्ट्रेलिया: अनंत संभावनाएं

डॉ0 वेद प्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आस्ट्रेलिया-यात्रा उनकी अन्य विदेश यात्राओं की तरह काफी खबरीली रहीं। यों वे जिन देशों में गए, उनमें भी काफी खबरें पैदा कीं। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबट सितंबर में भारत आए ही थे। उनके पहले 2009 में भी आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड और हमारे प्रधानमंत्री की भेंट हुई थी। लेकिन 28 साल में पहली बार भारत का कोई प्रधानमंत्री आस्ट्रेलिया गया है।

मोदी यों तो गए थे, जी-20 के सम्मेलन में भाग लेने के लिए लेकिन उन्होंने आस्ट्रेलिया के सभी महत्वपूर्ण शहरों की यात्रा की। उन्होंने संसद को भी संबोधित किया। पिछले किसी भी प्रधानमंत्री ने भारत के लिए ऐसा अनुकूल वातावरण नहीं बनाया, जैसा कि मोदी बना पाए हैं।

जी-20 के नेताओं को वे विदेशों में जमा काले धन के खिलाफ तैयार कर सके, इस तथ्य ने मोदी को अपनी राष्ट्रीय राजनीति में तो अधिक विश्वसनीय बनाया ही है, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी उनका सिक्का चलवा दिया है। उन्होंने आस्ट्रेलियाई संसद में जो भाषण दिया, यदि उस पर बजी तालियों से अंदाज लगाया जाए तो उनका भाषण ओबामा और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी ज्यादा प्रभावशाली रहा।

संयुक्त पत्रकार परिषद में प्रधानमंत्री एबट ने उन्हें ‘भाई’ कहा। मोदी ने अपने भाषण से प्रवासी भारतीयों को मंत्रमुग्ध किया। मोदी ने भारत और आस्ट्रेलिया के बुनियादी संबंधों को अच्छे ढंग से उकेरने की कोशिश की। उन्होंने उन सब क्षमताओं का जिक्र किया, जिनके आधार पर आस्ट्रेलिया-भारत सहयोग कई गुना बढ़ सकता है। इस यात्रा के दौरान पांच समझौतों पर दस्तखत हुए और दोनों राष्ट्रों ने सामरिक सहकार को बढ़ाने का संकल्प किया।

इस यात्रा के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि दोनों देशों के संबंधों में जो शीतयुद्ध की दीवार खड़ी रहती थी, वह अब ध्वस्त हो चुकी है। इसके अलावा 1974 के पोखरन अंतस्फोट और 1998 के परमाणु विस्फोट से जो पारस्परिक दूरियां पैदा हुई थीं, वे अब मिट गई हैं। दोनों देश अब परमाणु सहयोग के लिए अग्रसर और तत्पर हैं। आस्ट्रेलिया अपने यूरेनियम के भंडार से भारत की जरुरतों को पूरा करने के लिए तैयार है।

यह ठीक है कि दो-तीन साल पहले भारत-जापान-आस्ट्रेलिया-अमेरिका का एक चौगुटा-सा बनने की हवा बही थी लेकिन वह अभी हवा में ही है, फिर भी यह तो निश्चित है कि अब आस्ट्रेलिया भारत को परमाणु सप्लायर्स क्लब का सदस्य बनने में मदद करेगा। हालांकि दोनों देशों ने अपना व्यापार बढ़ाने का संकल्प किया है लेकिन अभी तक 2015 में 40 बिलियन डालर का लक्ष्य पूरा होना ही दूर की कौड़ी दिखाई पड़ रहा है।

अभी हमारा द्विपक्षीय व्यापार सिर्फ 15 बिलियन डालर है जबकि चीन के साथ आस्ट्रेलिया का व्यापार 150 बिलियन डालर का है। आस्ट्रेलिया चीन को नाराज़ नहीं कर सकता लेकिन यदि भारत के साथ उसके सामरिक संबंध घनिष्ट होंगे तो जापान और अमेरिका चाहेंगे कि उनसे वे चीन को मर्यादित कर सकें। मोदी की इस यात्रा ने पारस्परिक सहयोग की अपार संभावनाएं खोल दी हैं लेकिन देखना यह है कि उनको साकार होने में कितना समय लगेगा।

लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार व अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

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