बाइबल की सच्चाई को आखिर समझना ही होगा

“किसी न किसी को तो बाइबल की असलियत को उजागर करना ही चाहिए। ईसाई उपदेशक ऐसा करने का साहस इसलिए नहीं करते क्योंकि वे समझते है कि उनको मंच से निकाल दिया जाएंगा। कॉलेज के प्रोफेसर इसलिए ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्हें वेतन मिलना बंद हो जएगा (नौकरी से निकाल दिया जाएगा)। राजनेता इसलिए ऐसा नहीं करते क्योंकि वो चुनाव हार जाएंगे। समाचारपत्रों के संपादक ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि उनके समाचारपत्रों के ग्राहकों में गिरावट आ जाएगी। व्यापारी इसलिए ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्हें डर है कहीं वे अपने ग्राहक खो ना बैठे। यहाँ तक की सामान्य कर्मचारी भी ऐसा करने से डरता है कि कहीं उनकी नौकरी खत्म ना हो जाए। इसीलिए मैंने सोचा कि यह काम मैं स्वयं करू।

करोड़ो लोग ऐसे है जो विश्वास करते है कि बाइबल ईश्वर प्रेरित ग्रंथ है। लाखो लोग ऐसे है जिन्हें लगता है कि बाइबल एक मार्गदर्शिका, धैर्य बढ़ाने वाली और दिशा-निर्देशक पुस्तक है, जो वर्तमान में शांतिदायक और भविष्य की आशा है। लाखो लोग ऐसे भी है जो मानते है की बाइबल कानून व्यवस्था, न्याय और करूणा का स्रोत है। लोगों को स्वतंत्रता, संपदा और सभ्यता देने के कारण संसार इसकी बुद्धिमतापूर्ण और हितकारी शिक्षाओं का आभारी हैं, तथा लाखो ऐसे लोग भी है जो कल्पना करते है कि बाइबल मनुष्य के मस्तिष्क और हृदय के लिए ईश्वर के असीम प्रेम और बुद्धिमत्ता का प्रकटिकरण (revelation) है। इसके अलावा लाखों लोग ऐसे भी है जो मानते है कि यह बाइबल मृत्यु रूपी अंधकार को जीतने वाला एक प्रदीप है, जो दु:ख रहित परलोक में प्रकाश बिखेरता है।

पर वे लोग बाइबल की अज्ञानता और क्रूरता, स्वतन्त्रता के प्रति इसकी घृणा और मजहबी अत्याचार भूल जाते है। वे लोग इसके स्वर्ग को तो याद रखते है, लेकिन शाश्वत यातनाओं की काल कोठरी (नरक) को भूल जाते है। वे यह भी भूल जाते है कि यह बाइबल मस्तिष्क को गुलाम और हृदय को प्रदूषित करती है। वे भूल जाते है कि यह बाइबल बौद्धिक-वैचारिक स्वतन्त्रता की शत्रु है। … मैं बाइबल की आलोचना इसलिए करता हूँ क्योंकि यह पुस्तक मानव स्वतन्त्रता की दुश्मन है, तथा मानव जाति की प्रगति की विकास यात्रा में सबसे बड़ी बाधा है।”

  • रॉबर्ट ग्रीन इंगरसौल

(स्रोत: “अबाउट दी होली बाइबिल”, ड्रेस्डन संस्करण, 1902)

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