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गौ और गोवंश

गोपाष्टमी मनाने का सही लाभ तभी है…..

cow profitरज्जाक अहमद

गोपाष्टमी (गाय पूजा का विशेष दिन) 31 अक्टूबर गोपाष्टमी पर देश में जगह-जगह गोवंश की पूजा अर्चना हुई। संतों ने व हिंदू धर्म के आचार्यों और विद्वानों ने गाय के महत्व को समझने व गौ की धार्मिक आस्था के विषय में बहुत कुछ कहा। भारत वर्ष मुनियों का देश रहा है। हजारों वर्ष पहले ही धर्म की रक्षा करने वाले संतों ने गाय के बारे में वह सब कुछ बता दिया था, जो आज के इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों के लिए कौतूहल पैदा करता है। गाय की महिमा वेदादि शास्त्रों से भी साबित है। लेकिन हम स्वयं गाय के प्रति कितने गंभीर हैं? यह बात आज प्रासंगिक भी है और विचारणीय भी है। हां, देश में कुछ लोग जैसे बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर जी व अन्य कई संत जरूर गोवंश को बचाने की ईमानदारी से हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। कथावाचक व संतों जैसे कपड़े पहनने वाले कुछ लोग जनसामान्य की भावनाओं का लाभ उठाकर गाय के नाम पर व्यापार भी कर रहे हैं। भारत में साधू संतों से लेकर जमींदार किसान व उससे जुड़ेे खेतिहार मजदूर सभी पशुपालक रहे हैं। उसमें गाय प्राथमिकता में थी। राजा महाराजा व बड़े जमींदार तो गऊ शालाएं बनवाकर उनमें अपने खर्चे पर गऊओं की देखरेख करवाते थे। गोवंश व गाय ने युग-युगों से हमारी अनेकों पीढिय़ों का पोषण किया है, पर आज हमने गाय का कितना शोषण किया है, यह देखकर दु:ख होता है। उसी का परिणाम है कि आज गाय सडक़ पर घूमकर कूड़े के ढेर की गंदगी से अपना पेट भरने को मजबूर है। ममत्वपूर्ण अनाक्रमता व आत्मीयता तो गाय के वंश में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती है। प्यार उसका  स्वभाव है तो ममता उसका संस्कार  है। इसलिए पशुओं में गाय मनुष्य के लिए सबसे अधिक उपयोगी होने के कारण सम्माननीय है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन के एक गांव में गोवर्धन पूजा वाले दिन एक मंदिर पर एक मेले का आयोजन होता है। जो वहां की परंपरा के अनुसार बहुत ही आस्था का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि वहां पर मांगी गयी हर मन्नत पूरी होती है। मंदिर के सामने वाले रास्ते पर दो-दो लोगों को एक साथ मिलाकर उल्टा लिटाया जाता है। आस्था रखने वाले लोग स्वेच्छा से दूर तक लेट जाते हैं। व्यवस्था करने वाले लोग इनके बीच-बीच में थोड़ी -थोड़ी जगह छोड़ देते हैं, फिर अचानक मंदिर की तरफ से रास्ते की ओर सौ गायों को एक साथ छोड़ दिया जाता है। अचानक सौ गायों का एक साथ कम जगह वाले रास्ते पर निकलना ऊपर से भीड़ का शोर उनमें अफरा-तफरी और घबराहट पैदा कर सकता है। पर गाय की समझदारी देखिए कि अचानक इतने लोगों को जमीन पर पड़ा देखकर भी गायों का मानसिक संतुलन ठीक बना रहा।  किसी भी गाय का एक भी पैर किसी इंसान के ऊपर नही पड़ा।  अत: अचरज नही होना चाहिए कि गोवंश के धन को ये प्रकृति की बख्शीश है कि वो इंसान के शरीर पर पैर नही रखती, जहां पर जगह मिलेगी वहीं ंपैर रखेगी। उस अफरा-तफरी के से माहौल में आदमी को बचाने के चक्कर में एक गाय गिर भी गयी, जिससे उसे काफी चोट लगी। गऊ माता ने खुद कष्ट उठा लिया, पर किसी इन्सान को चोट नही आने दी। यही है गाय की ममत्वपूर्ण अनाक्रामकता, आत्मीयतापूर्ण स्वभाव, संस्कार और ममता। इस देश में करोड़ों लोगों ने इस मेले का सीधा प्रसारण जी न्यूज टी.वी. चैनल पर देखा है। अब देखने वाली बात ये है कि ऐसी गऊ माता के प्रति हम किसाना अत्याचार और पापाचार कर रहे हैं? जब तक उससे हमें दूध मिलता रहता है, तो उसे हम घर में रखते हैं, पर उसका  शरीर बूढ़ा होने पर उसे हम घर से निकाल देते हैं। इससे गऊ माता का बाकी जीवन कितना कष्ट मय गुजरता होगा, जरा कल्पना करके देखिए। शहर में आपको दुग्ध देने वाली गायें भी सडक़ों पर घूमती दिखती हैं। इनके पालक इन्हें सुबह दूध निकालकर छोड़ देते हैं। वह गलियों में घूम फिरकर पेट भरती हैं। शाम होने पर दूध देने के समय वह फिर घर पहुंच जाती हैं। इसके पीछे बालक की चालाकी छुपी है। वह उसके बच्चे को घर पर बांधकर रखता है। समय पर अपने बच्चे को दूध पिलाने की उसकी ममता उसे मजबूर करती है और वह घर की तरफ चल देती है। इसी का फायदा उठाकर पालक उसका दोहन कर रहा है। जब कहीं गोवंश के संबंध में संतगण या हिंदू धर्म के आचार्य/विद्वान कोई सत्संग या प्रोग्राम करते हैं तो बहुत से धनी लोग उसमें बढ़ चढक़र हिस्सा लेते हैं। दान भी बहुत देते हैं। उनके नाम भी मंच से सम्मान के साथ धर्मप्रेमी कहकर पुकारे जाते हैं, और वो मंच के करीब कुर्सियों पर बैठकर जमीन पर बैठकर ही कथा या प्रवचन सुनते हैं। लेकिन ये वो धर्म प्रेमी हैं, जिनकी कोठियां या फार्म हाउस सैकड़ों में नही अपितु हजारों वर्गमीटर जमीन पर बनी हैं। गेट के साथ ही या पीछे सर्वेन्ट क्वार्टर है। उसके बराबर वाला कमरा जिसमें गद्दा बिछा है, उसमें  कूलर व पंखे की भी व्यवस्था है, यह कमरा ‘डॉगी’ के लिए है। एक नौकर उनकी देखरेख व घुमाने के लिए है  और एक नौकर कुत्तों के लिए अलग होता है, कुत्तों का खाना भी बाहर से डा. के बताये अनुसार आता है। दोनों टाईम पर दूध व आईसक्रीम खिलाई जाती है। लेकिन इतनी बड़ी जगह में घर के किसी कोने में भी गाय के लिए कोई जगह नही है। मेरा मतलब है ऐसे धर्मपे्रमियों से जिनके घर में कुत्तों के लिए जगह है, पर गाय के लिए नही, तो क्या सिर्फ कथा सुनने से या नाम के लिए चंदा देने से ही हो जाएगी गोवंश की रक्षा? इस बार की  गोपाष्टमी तो चली गयी, अगले वर्ष फिर आएगी, क्या ही अच्छा हो कि उससे पहले हमारे घरों से डॉगी कल्चर निकलकर गाय की सेवा करने वाली संस्कृति अपनाने की गंभीर पहल शुरू हो जाए। गोपाष्टमी मनाने का सही लाभ हमें तभी होगा।

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