दक्षेस : कुछ भूल जाएं, कुछ आगे बढ़ें

दक्षेस के 18 वें शिखर सम्मेलन का मूल्यांकन कैसे किया जाए? यह कहना शायद काफी ठीक होगा कि आधा गिलास भरा और आधा गिलास खाली रहा। आधा गिलास भरा इस दृष्टि से रहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने नेपाल के साथ कई समझौते किए। पाकिस्तान के साथ कोई कहा−सुनी नहीं हुई बल्कि दोनों देशों के नेताओं में अनौपचारिक भेंट हो गई। इसके अलावा सदस्य−राष्ट्रों के नेताओं की आपस में भेंट हो गई। अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति अशरफ गनी का सभी दक्षेस−नेताओं से व्यक्तिगत परिचय भी हो गया।

इसके अलावा पाकिस्तान के सिवाय दक्षेस के सातों राष्ट्रों ने तीन महत्वपूर्ण समझौतों पर अपनी सहमति व्यक्त की है। पहला, यात्रियों और माल के आवागमन, दूसरा सभी देशों को रेल−मार्ग से जोड़ना और तीसरा ऊर्जा (बिजली) सहयोग! यदि ये तीनों समझौते दक्षेस के सभी देश स्वीकार कर लेते तो सारे दक्षिण एशिया की शक्ल ही बदल जाती। लोग अपने वाहनों से एक−दूसरे के देशों में आ−जा सकते थे और एक−दूसरे का माल भी अपने−अपने वाहनों से पहुंच सकता था। सारे देशों को रेल से जोड़ना इस प्रक्रिया को और भी तेज कर देता। भारत, पाक और बांग्लादेश तो रेल से जुड़े ही हैं, अफगानिस्तान, नेपाल और भूटान को भी जोड़ा जा सकता था। इसके अलावा बिजली के अभाव से ग्रस्त पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल की बहुत मदद हो सकती थी लेकिन पाकिस्तान ने बहाना बना दिया कि उसकी पर्याप्त आंतरिक तैयारी नहीं है, इसलिए वह इन समझौते पर दस्तखत नहीं करेगा। ये समझौते दक्षेस के समझौते नहीं बन सके, यह गिलास का आधा खाली होना है लेकिन इसमें पाकिस्तान का ही नुकसान सबसे ज्यादा है, क्योंकि बाकी सातों राष्ट्र आपस में समझौते करके इस योजना को लागू कर लेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री ने दक्षेस राष्ट्रों के लिए भारत की ओर से अनेक सुविधाओं की एक तरफा घोषणा की है। यह दक्षेस के आधे खाली गिलास को भी भरने−जैसा ही है। दक्षेस देशों से आनेवाले रोगियों को तत्काल वीज़ा, व्यापारियों को 3 से 5 साल का वीज़ा, बुनियादी निर्माण−कार्यों के लिए आर्थिक सहायता, दक्षेस विश्वविद्यालय की सुविधाओं का विस्तार, राष्ट्रीय ज्ञान−व्यवस्था का विस्तार,कुछ रोगों की प्रयोगशालाओं को विशेष मदद आदि। यदि पाकिस्तान इन सुविधाओं का बहिष्कार करेगा तो वह अपना ही नुकसान करेगा। यदि पाकिस्तान आतंकवाद की भर्त्सना करता और मोदी उससे बातचीत की पहल करते तो इस दक्षेस सम्मेलन में चार चांद लग जाते। लेकिन अब भी निराश होने की जरुरत नहीं है। जो बीत गया, उसे भूलने की कोशिश करें और भारत की अध्यक्षता में नई शुरुआत का संकल्प करें।

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