डॉक्टर सीताराम मीना द्वारा लिखित ‘ढोला-मारू’ पुस्तक राजस्थान की वीरों के शौर्य और बलिदान से भरी मिट्टी की महत्ता को बखान करने वाली पुस्तक है। यह सच भी है कि यदि वीरता, शौर्य, साहस, पराक्रम और देशभक्ति की बातें हो रही हों तो उनमें राजस्थान का जिक्र आना बहुत ही स्वाभाविक है। क्योंकि राजस्थान ने अपने शौर्य और प्रताप से भारत के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।
  जैसे वीर-रस किसी देश और समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक होता है, वैसे ही प्रेमरस भी जीवन को रसपूर्ण बनाने  का काम करता है। प्रकृति जब अपने सौंदर्य के निखार पर होती है तो उसी समय नई- नई सृजनाएं होती हैं। इसी प्रकार जब यौवन भी अपने निखार पर होता है तो वह भी सृजन के लिए अपने आपको स्वयं ही समर्पित कर देता है । इसी से अनेकों प्रेम कथाएं बन जाती हैं। राजस्थान की अनेकों प्रेम कथाओं में से ढोला मारू की प्रेम-गाथा भी विशेष रूप से लोकप्रिय रही है।
  यद्यपि यह घटना आठवीं शताब्दी की है, परंतु इसके उपरांत भी राजस्थान में इसकी लोकप्रियता आज भी भंग नहीं हुई है। यहां के लोकगीतों में स्त्रियां अपने प्रियतम को ढोला के नाम से संबोधित करके ही प्रेम के प्रति अपने समर्पण और भावों को प्रकट करती हैं।
   ढोला के प्रति राजस्थान के लोक जीवन का भाव समर्पण देखते ही बनता है। जिससे पता चलता है कि यदि प्रेम भी समर्पण के साथ किया जाए तो वह भी व्यक्ति को लोकप्रियता प्रदान कराता है।
  इस पुस्तक में ढोला मारू की प्रेम कथा को बहुत ही बेहतरीन ढंग से लेखक प्रस्तुत करने में सफल हुए हैं । कछवाहा वंश के राजा नल के पुत्र ढोला और पुंगल के राजा पिंगल की बहुत ही सुंदर कन्या मारवणी दोनों प्रेम के सूत्र में बंध जाते हैं। उनकी प्रेम कहानी जैसे -जैसे आगे बढ़ती है वैसे – वैसे ही उनका जीवन प्रेम के रस में भीगता चला जाता है। उनकी यह प्रेम कथा ही राजस्थान की प्रमुख प्रेमगाथाओं में सम्मिलित होकर आज तक अपनी अमरता का गीत गा रही है।
कहानी कुछ इस प्रकार है कि बचपन में ढोला और मारवणी का विवाह हो जाता है। युवा होने पर मारवणी अपने बचपन के प्रेमी ढोला की चर्चा सुनती है तो उसकी विरह में व्याकुल रहने लगती है। बचपन में सच्चे दिल से किया गया प्रेम जीवन भर याद रहता है। यही बात मारवणी के साथ आकर जुड़ गई थी। उसने अपने बचपन के प्रेमी को खोज निकालने के लिए अनेकों यत्न किए। कितने ही संदेशवाहक भेजे। पर किसी ने आकर उसे यह नहीं बताया कि उसका प्रेमी कहां है और कैसी हालत में है ? सभी संदेशवाहक ढोला के पास जाने से पहले मारवणी की सौतन मालवणी के द्वारा मरवा दिया जाते थे। जिससे ढोला को भी यह पता नहीं पड़ता कि उसकी प्रेमिका मारवणी किस हालत में है और कहां है?
  अंत में मारवणी लोक गीत के गायक ढाढ़ी को संदेश देकर ढोला के पास भेजती है। इस बार वह सफल हो जाती है और ढोला तक उसके प्रेम का संदेश पहुंच जाता है। ढाढी इन दोनों को एक बार फिर मिलाने में सफल होता है । इस प्रकार मारवणी का प्रेम जीत जाता है । वह अंत में अपने प्रेमी और बचपन के दोस्त को ढूंढ लेती है। उससे मिलकर वह बहुत खुश होती है।
      कुल 12 अध्याय और 132 पृष्ठों में इस प्रेमगाथा को लेखक डॉक्टर सीताराम मीना द्वारा पूर्ण किया गया है। लेखक ने बहुत सुंदर शब्दों में इस प्रेमगाथा को प्रस्तुति दी है। पृष्ठ 88 पर वह लिखते हैं – मारवणी को चहुंओर ढोला के अलावा कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। एक दिन मारवणी ने सखियों से पूछा कि वह कौन है ? उसका घर कहां है? मैं कुछ नहीं जानती। सखियों ने कहा कि जो साल्हकुमार तुम्हें सपने में मिला, वही तेरा पति है। यह सुनकर मारवणी की काम भावना प्रबल हो उठी। उस सुंदरी को पति की विरह वेदना सताने लगी।’
     यह पुस्तक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 302003 द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक प्राप्ति के लिए फोन नंबर 0141-2310785 व 4022382 है। लेखक का मोबाइल नंबर 9414334753 है ।
पुस्तक का मूल्य ₹225 है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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