निरंतर कमजोर होता जा रहा विपक्ष

लोकतंत्र में विपक्ष की बहुत ही उपयोगिता और महत्व है। वर्तमान भारतीय राजनीति का यह दुर्भाग्य है कि देश के विधानमंडलों और विशेष रूप से संसद में विपक्ष कमजोर होता जा रहा है। विपक्ष की कमजोरी और सरकार के विधाई कार्यों में अड़ंगे डालने की प्रवृत्ति के चलते अभी हाल ही में चले संसद के शीत सत्र को एक दिन पहले समाप्त करना पड़ा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि यह सत्र कुल 83 घंटे 12 मिनट चला, जिसके 18 घंटे 40 मिनट व्यवधान में बीत गए। यह बहुत बड़ी बात है कि जब पूरे शीत – सत्र के समय में देश की संसद के निम्न सदन ने कुल 83 घंटे 12 मिनट ही काम किया हो और उसमें से 18 घंटे 40 मिनट विपक्ष के व्यवधान में बीत गए हों। निश्चित रूप से यह शीत सत्र अब दोबारा कभी नहीं आने वाला। इतने मूल्यवान समय को देश के मानसिक और आत्मिक रूप से कमजोर विपक्ष ने यदि व्यवधान डालने में बिताया है तो उसने देश के साथ कोई अच्छा कार्य नहीं किया।                  देश के विपक्षी सांसदों का व्यवधान डालने का यह आचरण तब और भी अधिक अखरता है जब उन्होंने ऐसा कार्य केवल इसलिए किया कि सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने की नीति पर काम करती हुई दिखाई दे रही थी। विपक्ष ने ऐसा क्यों नहीं किया कि वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध काम करने में सरकार से भी अधिक सक्रिय दिखाई देता ? भ्रष्टाचार के विरुद्ध कटिबद्ध हुई सरकार जो भी विधायी कार्य निपटाना चाहती थी उसे विपक्ष पूरा नहीं होने देना चाहता था। चुनाव सुधारों के लिए भी सरकार तो सजग और सक्रिय दिखाई दी, परंतु विपक्ष इससे भी भागता हुआ दिखाई दिया। वह वोटर आईडी कार्ड को आधार से लिंक करने का विरोध करता रहा। जबकि एक समय वह भी था जब विपक्ष इस बात की मांग किया करता था। आज मोदी सरकार यदि ऐसा करने जा रही है तो इससे उसे आपत्ति क्यों होती है ? क्या यह सच नहीं है कि देश में बहुत बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता बनाए जाते रहे हैं? देश के राजनीतिक दल विदेशी रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों तक को देश का मतदाता बनाने में नहीं चूकते। क्या अपने पाप के उजागर होने के भय से विपक्ष मोदी सरकार के इस प्रकार के निर्णय का विरोध कर रहा है ? यदि हां, तो विपक्ष को समझ लेना चाहिए कि देश की जनता सब जानती है। इसी प्रकार लड़कियों की विवाह योग्य आयु 21 वर्ष करने को भी विपक्ष ने उचित नहीं माना।
  अब प्रश्न है कि ऐसा क्यों हो रहा है? यदि इस प्रश्न पर निष्पक्षता से विचार किया जाए तो पता चलता है कि आज का विपक्ष वह विपक्ष नहीं है जो कभी नेहरू ,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय तक देश की संसद में सक्रिय रहा था।वह विपक्ष सरकार पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाता था। चुनाव सुधारों की मांग करता था। इसी प्रकार समाज सुधार के क्षेत्र में भी कार्य करने के लिए सरकार को प्रेरित करता देखा जाता था। अब अचानक आज का विपक्ष इन सब बातों पर नकारात्मक क्यों हो गया ? इसका उत्तर केवल यह है कि आज का विपक्ष स्वयं ही भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। जब सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई भी कदम उठाने का निश्चय करती है या निर्णय लेती है या नीति बनाती है तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी जैसे भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को ऐसा लगता है कि सरकार जो भी कुछ कर रही है उससे उनका उत्पीड़न होना स्वाभाविक है। नेहरू और इंदिरा गांधी के समय के राम मनोहर लोहिया, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्षी नेता अपना दामन पाक साफ रखते थे। उस समय सरकार के भीतर बैठे लोग भ्रष्टाचार में डूबे होते थे । जिनके विरुद्ध उस समय का पाक पवित्र दामन वाला विपक्ष कार्यवाही की मांग करता था। तब सरकार चोरों का समर्थन करती हुई दिखाई दिया करती थी और विपक्ष की इस प्रकार की मांग को नजरअंदाज करती थी । कब कई बार ऐसे भी अवसर आए जब सरकार और विपक्ष दोनों मिलकर चोरों को बचाने का काम करती हुए दिखाई दिये। ऐसे आचरण को देखकर उस समय समाचार पत्रों में अनेकों ऐसे लेख लिखे गए कि सरकार और विपक्ष दोनों एक जैसे ही हैं और एक दूसरे को बचाए रखने के कॉमन मिनिमम एजेंडा पर मिलकर कार्य कर रहे हैं । वस्तुतः वह दौर भी भारतीय राजनीति के लिए अच्छा नहीं था,अपितु बहुत ही निराशाजनक था । अच्छी बात तो यह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को देशहित में ईमानदार होना ही चाहिए। यदि दोनों ईमानदार ना हों तो कोई से एक को तो ईमानदार होना ही चाहिए ।
    यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज का विपक्ष ना तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनने देना चाहता है और ना ही चुनाव सुधारों को होने देता है । ऐसे विपक्ष के आचरण को देखकर बड़ा दुख होता है।
   हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग देश की राजनीति में शुचिता के विरोधी हैं ऐसी सोच के नेता जनता की नजरों में हैं। यही कारण है कि धीरे धीरे पिछले 7 वर्षों में देश के मतदाताओं ने अनेकों भृष्ट और निकृष्ट लोगों को संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब 2024 का लोकसभा चुनाव अधिक दूर नहीं है । उसके लिए भी लोग मन बना रहे हैं ।ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगले चुनावों के पश्चात अस्तित्व में आने वाली लोकसभा में विपक्ष और भी अधिक कमजोर हो जाए। देश की संसद के भीतर विपक्षी एकता के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह देशहित में हो रही है बल्कि इस एकता को विपक्षी भ्रष्ट राजनीतिज्ञ अपनी चमड़ी बचाने के लिए कर रहे हैं। उनकी यह एकता उनकी मजबूती का प्रतीक नहीं है बल्कि कमजोरी का प्रतीक है। क्योंकि लोग समझ रहे हैं कि चमड़ी बचाने की इस एकता से देश का भला नहीं होने वाला।
         जया बच्चन सरकार को श्राप दे रही हैं तो केवल इसलिए कि उनकी चमड़ी कानून के शिकंजे में आ चुकी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उनके नेतृत्व में अन्य विपक्षी दलों के नेताओं का भी यही हाल है। उनकी आवाज में बौखलाहट है। मर्यादा व संतुलन की गंभीरता और ओज- तेज सब समाप्त हो चुका है। सरकार को ललकारने और आंकड़ों के आधार पर उसे अपनी बात मनवाने की क्षमता को विपक्ष खो चुका है। हमें याद करना चाहिए कि जिस  राजीव गांधी को देश की लोकसभा में प्रचंड बहुमत देकर देश की जनता ने जब उनके हाथों में सत्ता सौंपी थी तो उस समय ऐसा लगता था कि इतना प्रचंड बहुमत देकर देश के लोगों ने उन्हें तानाशाह बना दिया है। परंतु तब विपक्ष के ओज और तेज ने संसद की गरिमा को भंग नहीं होने दिया और सरकार को घेरने और अपनी बातों को मनवाने में उस समय का विपक्ष सफल सिद्ध हुआ। इससे सिद्ध होता है कि देश की संसद में या विधानमंडलों में विपक्ष का संख्या बल सरकार को नहीं घेरता बल्कि मनोबल और आत्मबल ही सरकार को घेरने का काम करते हैं। निश्चय ही उस समय के विपक्ष के भीतर मनोबल और आत्मबल था, जिसे आज का विपक्ष खो चुका है। आज के विपक्ष के पास तो उस समय के विपक्ष की अपेक्षा अधिक सीटें हैं , तब वह सरकार को घेरने और दबाव में लेने में असफल क्यों हो रहा है ? कारण केवल एक है कि उसका भीतर से मनोबल टूटा हुआ है। पैर की मोच और छोटी सोच आदमी को आगे नहीं बढ़ने देती , यह बात आज के विपक्ष पर लागू हो रही है।
   बौखलाहट में विपक्ष के बारह सांसद अपनी मर्यादा भूल जाते हैं। जिन्हें राज्यसभा की शेष कार्यवाही के लिए निलंबित कर दिया जाता है। यह अच्छा रहा कि सत्तापक्ष विपक्ष के अनुचित दबाव में नहीं आया और इन सांसदों की निलंबन की अवधि को समाप्त नहीं किया गया। अब समय आ गया है जब देश के जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध भी उनके असंसदीय, अमर्यादित और असंतुलित आचरण के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। देश की जनता के खून पसीने की कमाई जिस संसद पर खर्च होती हो , उसमें बैठने वाले सांसदों को समय नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही देश की सरकार को कैंसर की भांति देश की रग – रग में समा गए भ्रष्टाचार को समाप्त करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। उसमें चाहे जो व्यक्ति फंसता हो और चाहे जिसको जितनी क्षति उठानी पड़ती हो , सरकार कठोरता से आगे बढ़े। देश का जनमानस उसके इस प्रकार के आचरण के साथ अपना समर्थन देकर खड़ा है। देश विरोधी और देश की कानून व्यवस्था को अपने हाथों में लेकर काम करने वाले लोगों को सरकार से डरना ही चाहिए। देश की सरकार को यह संदेश देना ही चाहिए कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है । देश के लोग यह भली प्रकार देख रहे हैं कि सरकार और विशेष रूप से देश के प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार से किसी प्रकार का समझौता करने की स्थिति में नहीं हैं । राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री को ‘चौकीदार चोर है -‘ का नारा देकर चोर सिद्ध करवाने में असफल हो गए हैं।  पर देश देख रहा है कि वह स्वयं चोर की भूमिका में आते जा रहे हैं। यदि वह चोर नहीं हैं तो चोरों के विरुद्ध सरकार जो भी कुछ करना चाहती है , उसमें उन्हें सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो जाना चाहिए।
   वास्तव में देश की राजनीति इस समय संक्रमण काल से गुजर रही है। देश की राजनीति की मांग है कि मजबूत इच्छाशक्ति वाला और निजी तथा सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का पक्षधर विपक्ष देश की संसद और विधानमंडलों में बैठा हो। इसी प्रकार सत्तापक्ष में भी लोग वही चुनकर आगे जाने चाहिए जो निजी और सार्वजनिक जीवन में पूर्णतया ईमानदारी के पक्षधर हों। भ्रष्टाचार में डूबी भारतीय राजनीति के लिए इस समय राजनीति की गंगा का सफाई अभियान और भी अधिक तेजी से चलना चाहिए। क्योंकि इस समय देश के विपक्ष में ही नहीं सत्तापक्ष में भी कई ऐसे दागदार चेहरे बैठे हैं जो देश के सर्वोच्च लोकतांत्रिक मंदिर में नहीं होने चाहिए। आवश्यकता इस समय देश के चुनाव को भी निष्पक्ष पारदर्शी और ईमानदार बनाने की है। उसमें राजनीति को ताने -उलाहने की भाषा से बचकर सुलझाने की भाषा पर अमल करना चाहिए।
   कांग्रेस के राहुल गांधी मैदानी लड़ाई लड़ने के योग्य नहीं हैं। उन्हें देश का प्रधानमंत्री पद चाहिए, पर वे केवल इस प्रतीक्षा में हैं कि देश की जनता सत्तापक्ष से जब दु:खी हो जाएगी तो अपने आप ही उन्हें प्रधानमंत्री बना देगी। जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें मोदी से भी अधिक सक्षम, समर्थ और शक्तिशाली बनाकर अपने आपको देश के मतदाताओं के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। वह उलजुलूल बोलते हैं और उनका इस प्रकार बोलना ही भाजपा को शक्तिशाली बना जाता है। वह देश की जनता के सामने अपनी कोई ऐसी ठोस योजना पेश नहीं कर पाए हैं, जिससे लगे कि वे मोदी से बेहतर ढंग से देश और विश्व का नेतृत्व देने की क्षमताओं से भरपूर हैं। उनकी बचकानी हरकतों के चलते ही देश का विपक्ष निरंतर कमजोर होता जा रहा है। मनोबल और आत्मबल से हीन विपक्ष इस समय अपने आपको चोर सिद्ध करता जा रहा है और हमें याद रखना चाहिए कि चोर की दाढ़ी में हमेशा तिनका रहता है। यही कारण है कि सरकार जब भी कोई सुधारात्मक कार्य करने की दिशा में आगे बढ़ती है तो ‘चोर’ अपनी दाढ़ी खुजलाने लगता है। इसे देखकर देश की जनता को हंसी आती है। क्या राहुल गांधी के पास देश की जनता की इस हंसी को रोकने का कोई उपाय है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक ; उगता भारत

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