बात उस समय की है जब ईरान और यूनान के बीच लड़ाई हो रही थी। ईरानियों का आक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा था और यूनानी कमजोर पड़ रहे थे। आलम ऐसा था कि देश के सारे व्यापार बंद हो चुके थे और सभी युद्ध की तैयारी में जुट गए थे। यहां तक की देश के किसान भी अपने हाथों में हल की जगह तलवार और भाले लेकर उठ खड़े हुए थे। पूरा देश आत्मरक्षा के लिए एकजुट हो गया था, लेकिन फिर भी शत्रुओं के आक्रमण का जवाब देना मुश्किल हो रहा था।

एक वक्त था जब इसी ईरान को यूनान, कई बार धूल चटा चुका था, लेकिन आज समय उलटा चल रहा था। ईरान के आगे यूनानी शक्तियां कमजोर पड़ रही थी। एक तरफ देश के वीर पुरुष लगातार युद्ध के मैदान में अपनी बलि दे रहे थे तो दूसरी तरफ महिलाएं सुहाग उजड़ने की खबर सुनकर टूट रहीं थी। दरअसल, देश की महिलाएं भी मजबूर थीं। उन्हें अफसोस था कि वो अपने पतियों की रक्षा नहीं कर पा रहीं थी। ऐसा नहीं था कि उन्हें अपनी जान या फिर संपत्ति गंवाने का डर था। असल में उन्हें डर था अपनी मर्यादा का। ईरानी जीतने के बाद महिलाओं को घूरेंगे और कैद कर के अपने साथ ले जाएंगे। जो ये महिलाएं नहीं चाहती थी।

एक समय के बाद जब स्थिति बहुत खराब हो गई तो देश में बचे हुए पुरुष और महिलाओं ने मंदिर जाकर देवी से सवाल करने का फैसला किया। एक दिन सभी मिलकर वहां के प्रसिद्ध डेल्फी मंदिर पहुंचे। वहां उन्होंने देवी से सवाल भी किया। उन्होंने कहा – ‘हे देवी, हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। हमसे ऐसी कौन-सी गलती हुई है, जिसकी सजा हमारे लोगों को मिल रही है। क्या हमने कुर्बानियां नहीं दी या फिर उपवास नहीं रखा? आखिर हमने ऐसा क्या किया है जिससे देवता हमसे इतने नाराज हो गए कि वो हमारी रक्षा नहीं कर रहे हैं।’

इस पर मंदिर में मौजूद पुजारिन ने कहा – ‘हमारा देश किसी देश द्रोही के कारण ऐसी संकट झेल रहा है। जब तक उसे पकड़ नहीं लिया जाएगा तब तक ऐसी स्थिति बनी ही रहेगी। इसमें देवताओं की कृपा भी नहीं काम करेगी। इसके लिए हमें ही कदम उठाना होगा’

इसके बाद लोगों ने देवी से पूछा – ‘हे देवी, हमें बताइए कि वो देशद्रोही कौन है?’

जिसके बाद उन्हें जवाब मिला- ‘जिस घर से रात में गाने की आवाज सुनाई देती है , जिस घर से दिन में खुशबू आती है, जिस पुरुष की आंखें अंहकार से लाल हो, समझो वही इस देश का द्रोही है।’

यूनानियों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई। युद्ध के मैदान से और भी बुरी खबरें आने लगी। लोगों के मरने का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता चला गया।

इसी बीच एक दिन आधी रात के समय, एक बूढ़ा आदमी अपने घर से बाहर निकला। पूरे शहर में अंधेरा छाया हुआ था। ऐसा लग रहा था मानों वह कोई शहर नहीं, बल्कि शमशान घाट हो। दूर-दूर तक वहां कोई दिखाई नहीं दे रहा था। शहर के नाट्यशालाओं में जहां एक समय लोगों की भीड़ होती थी वहां अब सियार बोल रहे थे। बाजारों में लोगों की जगह उल्लू बोल रहे थे। मंदिरों में शांति और महलों में अंधेरा छाया हुआ था।

जैसे ही वह देवी के मंदिर पहुंचा तभी उसके कानों में एक आवाज सुनाई दी जिससे वह चौंक पड़ा। उसने देखा कि मंदिर के पीछे से किसी घर से मधुर आवाज में संगीत की धुन बज रही थी। बूढ़े आदमी को बहुत हैरानी हुई। उसने सोचा कि ऐसी संकट की घड़ी में वह कौन है जो खुशी मना रहा है। वह इस बारे में जानने के लिए मंदिर के पीछे वाले घर की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने देखा कि वह तो उसी मंदिर की पुजारिन का घर था। बूढ़ा आदमी इस बारे में और अधिक जानने के लिए उस घर की खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया और अंदर की ओर झांकने लगा।

तभी उसने देखा कि उस कमरे में खूबसूरत मोमबत्तियां जल रहीं थी, घर एकदम साफ-सुथरा और सजा हुआ था। उस कमरे में एक लड़का टेबल पर बैठा हुआ था। उसके सामने पेय पदार्थों की बोतल और दो ग्लास रखी हुई थी। साथ ही दो नौकर उसी टेबल के सामने अपने हाथों में खाने की प्लेट लेकर खड़े थे, जिसमें से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। यह देखते ही बूढ़ा आदमी जोर-जोर से चिल्लाने लगा – यही है देशद्रोही, यही है देशद्रोही। जिसके बाद मंदिर के दिवारों में द्रोही है, द्रोही है, की आवाज गूंज उठी।

तभी वहां स्थित बगीचे की तरफ से भी आवाज सुनाई दी – यही है देशद्रोही! यह सुनते ही मंदिर की पुजारिन अपने कमरे से बाहर निकली और पूछा – “कहां है देशद्रोही? कौन है देशद्रोही?”

वह देशद्रोही कोई और नहीं, बल्कि उसी मंदिर की पुजारिन का बेटा था। जिसका नाम था-पासोनियस। वह उसी देश में रहकर उसी के खिलाफ काम करता था। देश की रक्षा के लिए जो भी योजना बनाई जाती थी वह उसे शत्रुओं यानी ईरीनियों को बता देता था। जिससे ईरानी अधिक सतर्क हो जाते थे और यूनानियों की हर योजना को मात दे देते थे। यही वजह थी कि यूनानियों के द्वारा जीत की लाख योजना बनाने के बाद भी वह हार जाते थे और उनकी जीत नहीं हो पा रही थी।

इस काम के बदले पुजारिन के बेटे को बहुत सारे पैसे मिलते थे। जिससे वह आराम और मौज की जिंदगी जी रहा था। उसे अपने देश की थोड़ी सी भी परवाह नहीं थी। वह केवल अपने बारे में सोचता था। बाकी लोग मरे या जिंदा रहे, इस बात से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था।

लोगों ने अंधेरा दूर करने के लिए मशालें जलायी और हथियार निकालने शुरू कर दिए। वहां इकट्ठा हुई भीड़ से तरह-तरह की आवाजें आने लगी। कोई कहता इस देशद्रोही की जान को देवी के चरणों में चढ़ा देते हैं, तो कोई उसे उसी के घर की छत से फेंकने की सलाह दे रहा था।

यह सब देखकर पासोनियस को समझ आ गया था कि वह अब फंस चुका है। वह तुरंत वहां से भाग कर उसी देवी की मंदिर में छिप गया। यह देख सभी लोग मंदिर पहुंचे, लेकिन यहां वे सभी असमंजस में पड़ गए थे। पुजारिन के बेटे को सजा कैसे दी जाए।
दरअसल, सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मंदिर में किसी को मारना पाप कहलाता था। लेकिन कोई उस देशद्रोही को छोड़ना भी नहीं चाहता था। इस बीच, भीड़ से फिर तरह-तरह की आवाजें आने लगी।

कोई कहता -‘उसका हाथ खींचकर बाहर लाते हैं।’

कोई कहता – ‘एक देशद्रोही को मारने के लिए देवी हम लोगों को माफ कर देगी।’

कोई कहता – ‘देवी ही मंदिर में उसे सजा दे देंगी।’

कोई कहता – ‘उसे पत्थर से मारते हैं, वह खुद मंदिर से बाहर निकल जाएगा।’

उस रात यही शोर मचता रहा और पायोनियस मंदिर के अंदर ही छिपा रहा। आखिरकार लोगों ने यह तय किया कि मंदिर की छत को तोड़ दिया जाए, जिससे मंदिर के अंदर छिपा पायोनियस कड़कड़ाती धूप और ठंड से अकड़ जाए। लोगों ने तुरंत इस काम को शुरू कर दिया और मंदिर की छत को तोड़ने लगे।
पुजारिन का देशद्रोही बेटा दिनभर तेज धूप में खड़ा रहा। इस दौरान उसे तेज भूख और प्यास भी लगी, लेकिन पासोनियस को न एक बूंद पानी नसीब हुआ और नाही खाना। दिन भर वह कई तरह के कष्ट झेलता रहा। उसने कई बार लोगों से मदद भी मांगी, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। वह बार-बार लोगों से विनती करने लगा कि वह दोबारा से ऐसी गलती कभी नहीं करेगा।

कई बार तो उसने अपनी जान तक लेने की भी सोची, लेकिन उसे इस बात का विश्वास था कि लोग उसे माफ कर देंगे। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। कई दिन बीत गए, पासोनियस के हाथ-पांव बुरी तरह से अकड़ गए थे। दिन में वह खुद को कड़कड़ाती धूप से बचाता तो रात में जान लेने वाली ठंड से। एक दिन वह खुद को गर्मी से बचाने के लिए मंदिर में ही इधर से उधर दौड़ रहा था कि तभी वह गिर पड़ा।

अगले दिन सुबह के समय लोगों ने जब मंदिर का दरवाजा खोला तो देखा कि पुजारिन का बेटा जमीन पर गिरा हुआ था। लोगों ने जब उसे जगाने की कोशिश की तो वह हिल भी नहीं सका। उसकी स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी, लेकिन लोगों ने उस पर तनिक भी दया नहीं दिखाई। इस दौरान वहां मौजूद लोगों में से एक ने कहा – ‘अभी मरा नहीं है?’

तो वहीं दूसरे ने कहा- ‘देशद्रोहियों को मौत नहीं आती।’

जबकि तीसरे ने कहा- ‘ऐसे ही पड़ा रहने दो, मर जाएगा।’

चौथे व्यक्ति ने कहा- ‘ये नाटक कर रहा है।’

पांचवे व्यक्ति ने कहा- ‘इसने जो पाप किया था, उसकी सजा इसे मिल गई है, अब इसे छोड़ देना चाहिए।’

इतना सुनते ही पासोनियस उठ बैठा और बोला – ‘आप सब मुझे मत छोड़ना। अगर मुझे छोड़ दिया तो बाद में आप सभी को पछताना पड़ेगा। मैं बहुत स्वार्थी हूं। इसलिए मुझ पर विश्वास मत कीजिए। मैंने जो पाप किया है उसकी सजा मुझे मिलनी ही चाहिए।’

पासोनियस ने आगे कहा – ‘मैं अपने जीवन के अंत में इस देश की कुछ सेवा करना चाहता हूं। मेरे पास ईरानियों के कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिन्हें जानने के बाद ईरानियों को हराना आसान हो जाएगा। रात भर मैंने देवी की पूजा की है। उन्होंने प्रसन्न होकर मुझे ऐसा वरदान दिया है, जिससे विजयी प्राप्त कर सकते हैं।
इसी दौरान एक बूढ़ी औरत दौड़ती हुई आई और वहां की सबसे ऊंची दीवार पर खड़ी होकर कहने लगी – ‘तुम लोग ये क्या कर रहे हो?’ क्या तुम लोगों को सच और झूठ में अंतर नहीं पता चल पा रहा? क्या तुम लोगों को इस देशद्रोही पर अभी भी भरोसा है? तुम सब ये कैसे भूल गए कि इसी पासोनियस ने न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया है।’

उस बूढ़ी महिला ने आगे कहा- ‘आज तुम सब इसकी बातों में आकर इसे छोड़ने जा रहे हो। याद रखो, अगर यह यहां से निकल गया तो हम सब की जिंदगी खराब कर देगा। इसके कारण हमारे इस देश पर ईरानियों का राज होगा।’
आगे महिला ने कहा – ‘यह देवी का आदेश है कि इस पासोनियस को बाहर न निकलने दें। अगर हम सबको अपने देश और लोगों को बचाना है तो इस मंदिर के दरवाजे को बंद करना ही होगा, लो इसकी पहली नींव मैं ही रखती हूं।’

वहां मौजूद लोग महिला को देखते ही सब दंग रह गए। वह महिला कोई और नहीं, बल्कि उसी देशद्रोही की मां थी। इसके बाद क्या था लोगों ने मंदिर के द्वार को बंद करने के लिए पत्थर लगाने शुरू कर दिए और पासोनियस मंदिर के अंदर ही कैद हो गया।

मुंशी प्रेमचंद लिखित यह कहानी आज भी सार्थक है।

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