राम के अस्तित्व पर सवाल

ramशिक्षा और अपनी संस्कृति से कटा हुआ वर्तमान भारत का युवा वर्ग लार्ड मैकॉले की शिक्षा पद्घति की उपज है। लार्ड मैकॉले ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली की नींव जब रखी थी तो उसने यही कहा था कि मैं एक ऐसा बीज भारत में रोपित कर रहा हूँ जिसकी जड़ तो भारतीय होगी किन्तु उस पर फ ल अंग्रेजियत के लगेंगे। भारत के पुरातत्व व सर्वेक्षण विभाग एएसआई के वर्तमान में जो अधिकारी हैं वह ऐसी ही मानसिकता के हैं। रामसेतु समुद्रम परियोजना के सम्बन्ध् में उन्होंने जो शपथ पत्र सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया था उसमें उन्होंने ‘राम’ के अस्तित्व को ही नकार दिया था। जब राम नहीं, तो रामसेतु के मानवकृत होने की बात तो स्वयं ही समाप्त हो गई। इससे हिन्दूवादी संगठनों में स्वाभाविक उबाल आ गया। भाजपा जो स्वयं ‘राम-राम जपकर’ पहले सत्ता का स्वाद ले चुकी थी, इस नये मुद्दे को पाकर उसी प्रकार खुशी से झूम उठी थी, जिस प्रकार जंगल में किसी असहाय और वृद्घ शेर को शिकार मिल जाये तो वह झूम उठता है। केन्द्र के संस्कृति मंत्रालय द्वारा इस प्रकार राम के अस्तित्व को नकारने से सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। सिंहासन हिलता देख सिंहासन पर विराजमान ‘श्रीमानों’ की नींद खुली। यद्यपि नींद खुलने तक काफ ी क्षति हो चुकी थी। सरकार ने अपना दिया हुआ हलफ नामा वापस लेने की घोषणा की। अपनी गलती को स्वीकार कर उसने अपनी क्षति की भरपाई करने का प्रयास किया। लेकिन फि र भी कुछ अहम सवाल खड़े हुए हैं। यथा-राम का अस्तित्व नकारने से भारत विरोध्ी तत्वों और सम्प्रदायों को जो ‘मसाला’ मिला है, क्या वह राष्ट्र की क्षति नहीं है? राम का नाम आज भी भारत में ही नहीं अपितु जावा, सुमात्रा, बोर्निया, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, चीन, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ गानिस्तान, इटली,फ्रांस, जपान व जर्मनी जैसे बाहरी देशों में भी लोग बड़े सम्मान से लेते हैं। अब उनकी मान्यता का क्या होगा?

 

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