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परमाणु बम तू बोल बता?

धरती की प्यास बुझा नहरें, धरती पर लातीं हरियाली।
विकास की बनती वृहत्त योजना, हर घर में आये खुशहाली।

विश्व बैंक समृद्घ राष्ट्र, देते हैं मदद ये बड़ी-बड़ी।
पिछड़ापन दूर भगाने को, निर्माण हो रहा घड़ी-घड़ी।

जीवनोपयोगी वस्तुओं के, बड़े उद्योग लगाये जाते हैं।
शंका होती हमको मन में, क्या कोई हमें बताएगा?
विधवा और अनाथ के आंसू, क्या एटम बम पौंछ पाएगा?

बिलखते हुए यतीम बच्चों को, क्या ये सहारा दे सकता है?
सर्दी में ठिठुरते वस्त्रहीन को, क्या ये वस्त्र दे सकता है?
मरते हों भूख, कुपोषण से, क्या ये उनकी रक्षा कर सकता है?

फुटपाथ पर सोने वालों को, क्या ये आश्रय दे सकता है?
सुख शांति प्रेम प्रसन्नता को, क्या ये प्रदान कर सकता है?

नही इन सब का उत्तर है, इसपर व्यय का फिर क्या होगा?
यदि एटम की टेढ़ी नजर हुई, क्या कोई जीवित जन होगा?

निर्माण, कला कौशल उन्नति का, कोई बता दे क्या होगा?
समृद्घ देश निर्धन देशों को, जो मदद की चुटकी डालते हैं।

सच पूछो तो मदद नही, ये बलि के बकरे पालते हैं।

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