देह-दान संकल्पित श्री सुशील भाटिया, चण्डीगढ़ और उनका परिवार”

ओ३म्

देहरादून में तपोवन के नाम से प्रसिद्ध वैदिक साधन आश्रम, नालापानी रोड में हमें इस आश्रम के मई, 2017 में आयोजित व सम्पन्न हुए उत्सव में एक ऐसे दानी परिवार के सदस्यों से मिलने का सौभाग्य मिला जो न केवल अर्थ दान ही करते हैं अपितु जिनके सभी सदस्यों, 8 भाई-बहिनों, ने अपनी अपनी मृत्यु होने पर अपने पूरे शरीर व इसके अंगों का भी दान किया है। ऐसा परिवार जिसके सभी 8 सदस्यों ने अपने देह वा शरीर के अंग परोपकारार्थ दान देना का संकल्प लिया हो, हमारी दृष्टि में दूसरा कोई परिवार देखने में नहीं आया है। भारत में अभी भी देह दान के प्रति लोगों में अनेक भ्रम हैं जिस कारण वह देह दान करने में संकोच करते हैं। हमारे देहरादून के एक मित्र श्री कृष्ण कान्त वैदिक जी, पूर्व ज्वाइंट कमिश्नर, बिक्री कर विभाग ने भी अपनी देह को मृत्यु होने पर दान करने का संकल्प-पत्र संबंधित अधिकारियों को प्रस्तुत कर दिया है। हमें ऐसे लोगों के मध्य समय बिताते हुए प्रसन्नता होती है कि यह सकारात्मक सोच के धनी हैं। ऐसे लोगों के दान से ही आज मेडिकल साइंस और शल्य चिकित्सा विज्ञान वर्तमान स्थिति तक पहुंचा है। इससे आज सारा संसार लाभान्वित हो रहा है। वह लोग भी लाभान्वित हो रहे हैं जो देह व अंग दान करना उचित नहीं समझते और साथ ही अनेकों भ्रम व अज्ञान से ग्रस्त हैं। हमारे चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों को न केवल अध्ययन के लिए मृत मनुष्य शरीर की ही आवश्यकता होती है अपितु इसके अनेक अंग आजकल भारत में ही दूसरे रोगियों वा अस्वस्थ लोगों में प्रत्यारोपित किये जाते हैं जिनसे उनका भावी जीवन सुखद अनुभवों सहित सुख व शान्ति से व्यतीत होता है। हम ऐसे सभी देशवासी बन्धुओं का अभिनन्दन करते हैं।

तपोवन आश्रम के ग्रीष्मोत्सव में मई, 2017 में सम्पन्न उत्सव में चण्डीगढ़ से श्री सुशील भाटिया जी व उनकी बड़ी बहिन प्रेम भाटिया भी पधारी थी। श्रीमती प्रेम भाटिया जी अपने पति की पारिवारिक पेंशन से अपने जीवन का निर्वाह करती हैं। आपका भरा पूरा परिवार है। पेंशन से आप जो धनराशि बचाती हैं, उसे यत्र तत्र आर्य संस्थाओं को यज्ञ, धर्मप्रचार तथा परोपकार आदि कार्यों में दान देती हैं। वर्ष 2017 तथा अक्टूबर, 2021 में आपने वैदिक साधन आश्रम तपोवन को चुना और यहां आकर आश्रम के मंत्री जी श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी को एक लाख रूपये का चैक प्रदान किया। अक्टूबर 2021 में भी एक बड़ी धनराशि की है। इससे पूर्व भी आपकी सगी बड़ी बहिन श्रीमती वेद भाटिया जी भी आश्रम को एक लाख रूपये का दान दे चुकी हैं। यह भी बता दें की श्री सुशील भाटिया जी माता श्रीमती प्रेम भाटिया जी के छोटे भाई हैं और आप सभी 8 बहिन व भाईयों ने छोटे भाई श्री सुशील भाटिया जी प्रेरणा एवं परामर्श से अपने देह व इसके अंगों के दान का संकल्प पत्र संबंधित अधिकारियों को प्रस्तुत किया है। जब हमने इस बात को सुना तो हमने श्रीमती प्रेम भाटिया के अभिनन्दन व सम्मान में कुछ शब्द लिखे जिन्हें हम प्रस्तुत कर रहे हैं।

तपोवन आश्रम के सभी बन्धु भाई सुशील भाटिया जी से परिचित हैं। आप का अलग प्रकार व्यक्तित्व ही आपका परिचय है। आप प्रत्येक वर्ष तपोवन आश्रम के उत्सवों में आते हैं और यहां सभी विद्वानों, अतिथियों एवं अपनी आयु से छोटे बन्धुओं की भी यथासम्भव सेवा, सहायता एवं मार्गदर्शन करते हैं। आप भजन व प्रवचन में व्यवस्था देखते है और प्रयास करते हैं कि सभी लोग भली प्रकार से सभा मण्डप में बैठकर कार्यक्रम का आनन्द लें। भोजन आदि के वितरण कार्यं में भी आप सहयोग करते हैं। ऋषि जन्म भूमि टंकारा में भी आप हर वर्ष पहुंचते हैं और वहां भी सभी सत्संगों में उपस्थित होकर व्यवस्था का ध्यान रखते हुए उसे चुस्त व दुरस्त रखने में सहयोग करते हैं। श्री सुशील भाटिया जी आर्य माता-पिता की संतान है। पाकिस्तान बनने से पूर्व आपका परिवार वर्तमान पाकिस्तान के स्यालकोट में रहा करता था। पिता व्यवसाय से शिक्षक थे और माता जी आर्य संस्कारों की गृहिणी थी। बच्चों को भोजन से पूर्व सन्ध्या करने को कहा जाता था। सन्ध्या करने पर भोजन मिलता था। पाकिस्तान बनने पर आप स्यालकोट से अपने पूरे परिवार के साथ ‘गढ़-शंकर’ स्थान पर आकर रहे। 10 वर्ष यहां रहकर आप जालन्धर आकर रहने लगे। यहां आपके पिता व भाईयों ने केरोसीन तेल व कपड़े आदि के व्यवसाय किये। खूब आर्थिक उन्नति व समृद्धि इन कार्यों से प्राप्त की। सन् 1984 में पंजाब में आतंकवाद चरम सीमा पर पहुंच गया था। आप हिन्दू संगठन के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि संस्थाओं के साथ मिलकर पूर्ण निर्भयता से कार्य करते थे। आतंकवादी तत्वों का आपसे नाराज होना स्वाभाविक ही था। एक दिन आप अपनी दुकान पर थे तो आप पर तीन गोलियां चलाई गई जो आपके दायें बायें होकर निकल गईं। इस घटना में आप बाल बाल बचे। आपकी दुकान पर बैठे हुए कुछ लोग घायल हुए। ऐसी स्थिति में सुरक्षा की समुचित व्यवस्था न होने के कारण आपको जालन्धर छोड़कर दिल्ली आकर अपने एक भाई के फ्लैट में जीवनयापन करना पड़ा। यहां रहते हुए आपको व आपके परिवार को बहुत संघर्ष करना पड़ा। शरीर से स्वस्थ व बलवान होने के कारण आपने जो कठोर पुरुषार्थ किया उससे आप अपने परिवार की नाव को किनारे पर लगाने में सफल हुए और आज आप पुनः सुखद आर्थिक स्थिति में चण्डीगढ़ में फूलों का कारोबार करते हैं। चण्डीगढ़ में आपका अपना सुविधाजनक निवास है। दो पुत्र, बहुयें, पौत्र व पौत्रियों के साथ आप सुखद जीवन बिता रहे हैं। यज्ञ एवं सत्संग के आप विशेष प्रेमी है। आपका स्वभाव बच्चों की तरह सबके प्रति विनम्र एवं आदर लिये हुए होता है। आपकी श्रीमती जी लगभग 19 वर्ष पूर्व संसार से विदा ले चुकी हैं। एक वर्ष पूर्व आपके एक बड़े भ्राता जी का भी वियोग हुआ है। अपने जीवन की इस स्थिति में आप अपने परिवार व भाई बहिनों के सुख-दुख में शामिल होकर सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

आपकी बड़ी बहिन श्रीमती प्रेमवती भाटिया जी के धन दान के अवगर पर हमने अभिनन्दन में लिखा था कि आप ऋषिभक्त माता श्रीमती सुहागवती भाटिया एवं पिता श्री फकीर चन्द्र भाटिया जी की सुयोग्य सन्तान हैं। श्रीमती प्रेम भाटिया (पत्नी स्व. श्री राजेन्द्र कुमार भाटिया जी), चण्डीगढ़ मई 2017 के उत्सव में स्वयं वैदिक साधन आश्रम तपोवन में उपस्थित हुई थीं। आप यद्यपि कुछ अस्वस्थ थी परन्तु आपका धर्म प्रेम आपको इस आश्रम में ले आता है। आपकी उपस्थिति से सब आश्रमवासी प्रसन्न व गौरवान्वित होते हैं। आपने व आपके सभी भाई व बहिनों ने अपने देह व अंग परोपकार के लिए दान देकर समाज में एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। देश के समाचार पत्रों, दूरदर्शन, सभा संस्थाओं में आपकी चर्चा हुई है व अब भी होती रहती है। सभी लोगों द्वारा आपके संकल्प की सराहना की जाती है।

लेख में यह भी बता दें कि श्री सुशील भाटिया जी को देह दान की प्रेरणा अपने 60 वर्ष पूर्ण होने पर तपोवन आश्रम में किये जा रहे यज्ञ के अवसर पर हुई थी। आपने अपने विचारों पर गहराई से पुनर्विचार किया था और आप आगे बढ़ते गये। चण्डीगढ़ में पीजीआई के अनेक वरिष्ठ डाक्टरों से आपका इस विषय पर समय समय पर सम्पर्क व संवाद होता रहा। आप उनसे मिलते रहे और वहां जाकर मृत देहों का किस प्रकार से उपयोग करते हैं, इसे भी आपने पूर्णतः जाना, अपनी आंखों से देखा और समझा। आपको लगा कि यदि हमारे शरीर के अंग अंगहीनों को मिलने से उनका संसार व जीवन संवर सकता है तो वह यह कार्य अवश्य करेंगे। सभी पक्षों पर विचार कर उन्होंने अपनी देह व अंगों के दान का निर्णय कर लिया। इसके बाद चुनौती थी कि वह अपने अन्य तीन भाई व चार बहिनों को भी इस महत् कार्य के लिए सहमत करें। उन्होंने प्रयास किये और सफलता प्राप्त की। यह कार्य सरल नहीं था। हम शायद अनुमान भी नहीं लगा सकते कि कैसे उन्होंने स्वयं को सहमत किया होगा और उसके बाद अपने अन्य सात पारिवारिक सदस्यों को। उनके इस निर्णय और उस पर अडिग रहने तथा उसका दूसरों में प्रचार करने के लिए श्री सुशील भाटिया जी साधुवाद व शुभकामनाओं के पात्र हैं। हम उनका अभिनन्दन एवं वन्दन करते हैं।

जब हम इस विषय पर विचार करते हैं तो हमें लगता है कि जो लोग अपना देह दान नहीं करते उनके भीतर कुछ भय, आशंकायें एव भ्रम होते हैं। कुछ व अनेकों में एक भ्रम यह भी हो सकता है कि मरने के बाद उनका पुनर्जन्म होगा। कहीं ऐसा न हो कि देह-दान करने के कारण उनकों परजन्म में यह इन्द्रियां व अन्य शरीर में कुछ अंग स्वस्थ अवस्था में प्राप्त न हों? हमने विचार किया तो हमारा ध्यान पशु, पक्षियों आदि पर गया। अनेक मांसाहारी पशु-पक्षी हैं जो दूसरे छोटे व निर्बल पशु-पक्षियों को मारकर उनका पूरा शरीर ही खा जाते हैं। संसार में इतने पशु-पक्षी हैं और यह मरते भी हैं परन्तु इनके शव जंगल व खेतों में पड़े दिखाई नहीं देते हैं। सभी व अधिकांश के शव अन्य मांसाहारी पशु खा जाते हैं, यही अनुमान होता है। आज तो मनुष्य भी विदेशियों के सम्पर्क में आकर ऐसे मांसाहारी बने है कि भेड़, बकरियों, मुर्गे व मच्छलियों तक ही सीमित नहीं रहे अपितु परम उपयोगी व माता के समान पालन करने वाली गो माता का भी संहार करते हैं और उसके मांस व शरीर को स्वाद लेकर खा जाते हंै। क्या ये मांसाहारी बन्धु वस्तुतः मनुष्य हैं? हमें तो मनुष्यों की यह प्रवृत्ति शाकाहारी पशुओं से भी अधिक अज्ञानतापूर्ण व अविवेकपूर्ण प्रतीत होती है। वेद में परमात्मा इस समस्या के हल के लिए ही कहते हैं कि ऐसे लोगों को प्रताड़ित करना चाहिये। जो भी हो, यदि इन असंख्य पशुओं के मरने व उनके शरीर के अंगों को दूसरे पशुओं व मनुष्यों द्वारा खा लेने पर उन प्राणियों की जीवात्माओं को परजन्म में सभी प्रकार स्वस्थ शरीर व इन्द्रियां मिल सकते हैं, तो उन लोगों को जो दूसरों के सुख के लिए देह-दान का विचार करते हैं, किंचित शंका नहीं करनी चाहिये। भय दूर करने का एक उपाय यह है कि हम इस विषय का साहित्य पढ़े, हमारे विद्वान समय समय पर इस पर चर्चा करते रहें, इस विषय से जुड़े हमारे चिकित्सा विज्ञान के वैज्ञानिक भी अपने लेख आदि समाचार पत्रों में प्रकाशित करते रहे तो हमें लगता है कि इस विषय में भ्रम व सभी शंकायें दूर हो सकती हैं जिससे अंग-दान एक आन्दोलन बन सकता है और यह लाखों अपंग व रोगी लोगों को खुशियां दे सकता है।

श्री सुशील भाटिया जी व उनके परिवार को आश्रम से विशेष प्रेम है। आपके माता-पिता ने इस आश्रम के निर्माण में सशरीर उपस्थित होकर एक मजदूर की भांति सेवा व श्रमदान किया था। आप अपने माता-पिता और यहां आश्रम के लोगों की सेवा भावना से परिचित व अभिभूत हैं। इन कारणों से ही आप अपने पवित्र धन का एक बड़ा भाग यहां चल रहे कार्यों को पूरा करने में सहयोग प्रदान करने के लिए देते हैं। हमस ब आश्रम प्रेमियों को भी श्री सुशील भाटिया जी व उनके परिवार से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये और आश्रम का आर्थिक दृष्टि से सहयोग करना चाहिये।

वैदिक साधन आश्रम, तपोवन का शरदोत्सव आश्रम में दिनांक 20 अक्टूबर से 24 अक्टूबर 2021 तक आयोजित कया गया था। इस उत्सव में श्री सुशील भाटिया जी अपनी बहिन व उनकी तीन पीढ़ी के सदस्यों के साथ पधारे थे। परिवार के सभी सदस्य आश्रम में आयोजित यज्ञ एवं सत्संग में सम्मिलित हुए। आश्रम की ओर से सभी का सम्मान किया गयां। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी श्री सुशील भाटिया जी का परिवार आश्रम में आता रहेगा और अपनी उपस्थिति एवं सेवा कार्यों से अन्यों को प्रेरणा देता रहेगा। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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