क्या सुब्रत मुखर्जी  मरे नहीं मारे गये ?—-डॉक्टर राकेश कुमार आर्य


   
——————————————— राजनीति पूरी तरह खूनी हो चुकी है। इसके अनेकों उदाहरण हमें समाचार पत्रों में सुनने को मिलते रहते हैं। पश्चिम बंगाल से हाल ही में वहाँ के सबसे वरिष्ठ नेता सुब्रत मुखर्जी के विषय में भी जो शंका आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं इससे स्पष्ट होता है कि वह भी मरे नहीं बल्कि मारे गए हैं ? श्री मुखर्जी पिछले ५ दशक से पश्चिम बंगाल में छाए रहे। पश्चिम बंगाल से नक्सलवाद को समूल नष्ट करने के लिए वह अपने छात्र जीवन की राजनीति से सक्रिय हो गए थे । वे
सत्तर के दशक में कालेज और विश्वविद्यालयों के माध्यम से राजनीति में आगे बढ़े और एक विशेष उद्देश्य को लेकर चलने की डगर पकड़ी जिससे उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी राजनीति की विशिष्ट अदा के कारण उन्हें  राष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्धि प्राप्त हुई। जिसके चलते अनेकों नेता उनके राजनीतिक विरोधी होते – होते जान के दुश्मन बन गए।
   कुछ समय पहले श्री मुखर्जी हृदयाघात के कारण स्वर्ग सिधार गए हैं। अपने स्वास्थ्य में सुधार के लिए उन्हें नर्सिंग होम में भर्ती कराया जा रहा था। बताया जाता है कि ममता बनर्जी ने उनसे कहा कि वे स्वयं स्वास्थ्य मंत्री हैं। इसलिए हॉस्पिटल पीजी हॉस्पिटल में भर्ती हो जाएं। जिसको उन्होंने स्वीकार कर लिया।
  उनको एक स्टंग  लगा। स्टंग लगने के बाद तीन दिन तक  डॉक्टर की देखभाल में रखना पड़ता है। हर चार घंटे पर डॉक्टर रोग़ी को देखने के लिए आते हैं ।
    ऐसे रोगी के लिए एक नर्स भी दे दी जाती है। जो कि उसकी चौबीसों घंटे देखभाल करती है और स्वास्थ्य में थोड़ा बहुत भी 19-20 होने पर तुरंत बड़े डॉक्टर को सूचित करती है ।
  सुब्रत मुखर्जी का दुर्भाग्य है उन्हें पीजी हॉस्पिटल के अति विशिष्ट व्यक्तियों के वार्ड में भर्ती कर दिया गया। जहां ना नर्स थी और ना ही कोई बढ़िया डॉक्टर था ।
     सायं 7.15पर उन्हें दूसरा भारी अटैक आया। पहले अटैक से ही जो मरीज अभी तक उबर नहीं पाया था उसके लिए दूसरा अटैक आना उसके लिए जानलेवा सिद्ध हुआ। उनकी चिकित्सा व्यवस्था में बरती गई लापरवाही के चलते यह कहा जा सकता है कि यदि उन्हें पहले अटैक के बाद ही समुचित चिकित्सा उपलब्ध करा दी जाती तो शायद दूसरा अटैक उन्हें नहीं आता और वह हमारे बीच बने रह सकते थे?
    उनकी मृत्यु का समय  9.25 पीएम दिखाया गया । क्योंकि उनके मर जाने के बाद ही डॉक्टर ने उनको आकर देखा। इससे पता चलता है कि प्रदेश के एक बड़े नेता के साथ यदि चिकित्सकों द्वारा ऐसी लापरवाही का परिचय दिया गया है तो निश्चय ही इसमें बड़े नेताओं का या सत्ताधारी दल की बड़ी नेता का हाथ था। यदि ममता बनर्जी चाहती तो चिकित्सकीय लापरवाही तनिक भी नहीं बरती जाती ।
आज लोगों के द्वारा जो इस प्रकार की शंका आशंकाएं की जा रही हैं उसमें यदि रत्ती भर भी सत्य है तो ममता बनर्जी के राजनीतिक कैरियर को सुब्रत  मुखर्जी की हत्या का काला दाग लग चुका है, जो मिटाये नहीं मिट सकेगा।
इस समय ममता बनर्जी अपने आप को बहुत तेजी और चतुराई के साथ देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में तैयार कर रही हैं। इसके लिए वह अखिलेश यादव और दूसरे ऐसे लोगों का साथ और हाथ पकड़ने को तैयार हैं जो उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में किसी न किसी रूप में मददगार हो सकते हैं । वह पश्चिम बंगाल की लोकसभा की 42 में से 30 सीटों को जीतने का हर संभव प्रयास करेंगी। इसके लिए  उन्हें जो भी राजनीतिक हत्याएं करनी होंगी वह करेंगी। भाजपा या किसी भी राजनीतिक विरोधी दल के किसी भी नेता या कार्यकर्ता को यदि उन्हें रास्ते से हटाना पड़ेगा तो अपने अभी तक के राजनीतिक जीवन के उनके आचरण के अनुसार वह ऐसा भी करने में कोई संकोच नहीं करेंगी।  इसलिए पश्चिम बंगाल के लोगों को अगले लोकसभा चुनावों तक और भी कई चेहरों के उसी प्रकार  विलुप्त हो जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए जैसे सुब्रत मुखर्जी या कुछ अन्य चेहरे पश्चिम बंगाल से विलुप्त कर दिए गए हैं। इसी प्रकार वह उत्तर प्रदेश में अखिलेश के बारे में सोच रही हैं कि वहां से वह भी कुछ सीटें लाएंगे। जबकि कुछ सीटें उन्हें इधर-उधर से मिल सकती हैं। उनका आंकड़ा इस प्रकार 70 – 75 सीटों को ले लेने का है।
  इतनी सीटें आने के बाद वह कांग्रेस के राहुल गांधी को सत्ता से दूर रखने के लिए मजबूर कर देंगी। यदि इतनी सीटें किसी प्रकार उनके पास आ गईं तो वह राहुल गांधी पर स्वयं को प्रधानमंत्री मानने का सफल प्रयास कर सकती हैं।
     जब ममता बनर्जी अपने आपको अगले प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित करने का इस प्रकार का प्रयास कर रही हों तब सुब्रत मुखर्जी का इस जाना बहुत बड़ा संदेह पैदा करता  हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और सुब्रत मुखर्जी की मृत्यु या हत्या के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए सक्षम कार्यवाही करनी चाहिए । राजनीति को अपराध मुक्त करने और अपराधियों के राजनीतिकरण की प्रक्रिया में ममता बनर्जी जैसे जितने भी नेता इस समय लगे हुए हैं उनका समुचित इलाज करने की दिशा में भी केंद्र की मोदी सरकार को कानून लाना चाहिए । लोकतंत्र में विरोध के लिए स्थान है परंतु विरोधियों का अंत करने का कोई स्थान नहीं है।  इसके उपरांत भी यदि लोकतंत्र के नाम पर कुछ नेता अपने विरोधियों को हटाने का काम करते पाए जाते हैं तो उन्हें राजनीति में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है ।  जिसके लिए वर्तमान कानूनों को और मजबूत बनाने की जरूरत है। कांग्रेस की नेता रहीं पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में ऐसी बदमाशी और हिंसक भरी राजनीति को हमने बड़ी नजदीकी से देखा था। ममता बनर्जी उसी बदमाशी भरी हिंसक राजनीति को यदि फिर से स्थापित करती पाई जा रही हैं तो यह देश के लिए बहुत ही अपशकुन का संकेत है। जिससे राजनीतिज्ञों की खतरनाक प्रवृत्ति का पता चलता है। राजनीति को बदमाशी और हिंसा से दूर रखने के लिए देश में  चुनाव प्रक्रिया को प्रभावी और निष्पक्ष बनाने  के साथ-साथ राजनीतिक आचार संहिता को भी स्थापित करने की आवश्यकता है।

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