vijender-singh-aryaआध्यात्म रहित होने के कारण, झुलसा निज आमर्ष में।

थे सात प्रकार के यान यहां, जो बारूद तेल से चलते थे।

चुंबक शक्ति, हीरे, पारे, रवि किरणों से भी चलते थे।

हम अंतरिक्ष में उड़ते थे, पहुंचे थे लोक लोकांतर में।

था भूतल का नही कोना शेष, जहां पहुंचे न अल्पांतर में।

परमाणु बम की भांति ही, बनते थे यहां ब्रह्मस्त्र।

मारक शक्ति थी करोड़ों में, ये बता रहे हैं शास्त्र।

निज नादानी से किया, जब इनका उपयोग।

पशु, पक्षी, जीव, निर्दोष मरे, मरे करोड़ों लोग

बनते जाते हैं आज वही, फिर वैसे हालात।

इस मायावाद की चमक में, रही झलक प्रलय की रात।

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