मिसाइलमैन कैसे अहिंसा के प्रति आकर्षित हुए?

A P J abdul kalamललित गर्ग

मिसाइलमैन के नाम से प्रसिद्ध एवं बच्चों के चेहते डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अब हमारे बीच नहीं रहे। एक सच्चा देशभक्त हमसे जुदा हो गया। देह से विदेह होने के क्षणों को भी इस महापुरुष ने कर्ममय रहते हुए बिताया। वे जन-जन के प्रेरणास्रोत थे, विजनरी थे। उन्होंने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिये अस्त्र-शस्त्र की शक्ति को संगठित करने पर जोर दिया वही अमन एवं शांति के लिये अहिंसा को भी तेजस्वी बनाया। वे समय-समय पर अहिंसा को भी संगठित करने के लिये संतों एवं अध्यात्मपुरुषों से मिलते रहे। वे दुनिया को अणुबम से अणुव्रत ( अहिंसा ) की ओर ले जाने वाले विरल महामानव थे। अहिंसा की प्रेरणा उन्हें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने दी थी और उससे वे इतने अधिक प्रभावित थे कि अपना हर जन्म दिन आचार्य महाप्रज्ञ की सन्निधि में ही मनाते थे। जहां भी आचार्य महाप्रज्ञ होते वे वहां पहुंचा जाते थे।

भारत को परमाणु अस्त्रों से समृद्ध बनाने वाले महान वैज्ञानिक डॉ? कलाम अपने ही द्वारा विकसित किए गए परमाणु अस्त्रों को निस्तेज करने की चुनौती भरी जंग लड़ते रहे। वे अहिंसा और शांति की स्थापना के लिए प्रयासरत थे। इन परमाणु अस्त्रों और शस्त्रों की होड़ में उल्लेखनीय सफलताएं हासिल करने वाले इस महान वैज्ञानिक का हृदय एक संत पुरुष की प्रेरणा से एकाएक तब्दील हो गया। यह एक चुनौती भरा रास्ता था जिसपर चलते हुए डॉ? कलाम को अपने ही द्वारा विकसित किए और निर्मित किए गए हिंसा के अत्यधिक नवीनतम आविष्कारों को निस्तेज करने की सोचना पड़ा  और समूची दुनिया को शांति और अहिंसा से जीने के लिए अभिप्रेरित करने के प्रयासों में जुटना पड़ा। डॉ? कलाम इन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जुटे रहे और जीवन की अन्तिम सांस भी ऐसा ही कुछ करते हुए उन्होंने ली। वे सच्चे अर्थों में पैगम्बर मोहम्मद साहब के अनुनायी थे, ‘‘वली’’ थे। ‘‘वली’’ यानि खुदा का नेक बंदा जो अपने कर्मों से खुदा के करीब होता चला जाता है। एक पवित्र आत्मा जिसमें संपूर्ण मानवता के कल्याण की भावना निहित होती है। जो किसी भी भेदभाव, जाति, धर्म, वर्ग, लिंग के बंटवारों के मनुष्य को केवल मनुष्य के रूप में देखता है, ऐसी पवित्र आत्मा का एक ही धर्म होता है-मानवता। सच्चे मानवता के मसीहा के रूप में डॉ? कलाम समूची दुनिया को एक नई राह पर ले जाने के लिये सदैव याद किये जायेंगे।

शांति और अहिंसा हमारे जीवन का व्याख्या सूत्र है। शांति और अहिंसा ही वह माध्यम है जो असफलताओं में से सफलताओं को खोज लाती है। शांति और अहिंसा ही सफलता का दूसरा नाम है। जीवन को सफल बनाने के लिए हमें खुद को शांतिवादी और अहिंसक बनना होगा। यही मनुष्य की सार्थक यात्रा का सारांश है। असल में शांति और अहिंसा एक गहरा जीवन दर्शन है जिसके बल पर ही हर छोटा या बड़ा काम संभव होता है, हर छोटी या बड़ी सफलताएं मिलती है और हर छोटी या बड़ी बाधा से पार पाया जाता है। डॉ? कलाम का जीवन अहिंसा और शांति को समर्पित रहा है। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हिंसा, अस्त्र-शस्त्र, परमाणु शस्त्र के शीर्ष व्यक्तित्व माने जाते हैं। मिसाइल मैन के नाम से विश्व विख्यात इस व्यक्तित्व का जीवन एकाएक शांति और अहिंसा को समर्पित हो गया। सचमुच डॉ? कलाम के लिए यह एक चुनौती भरी डगर थी जिसपर वे धीरे धीरे आगे बढ़ते रहे और शांति और अहिंसा की स्थापना के अनूठे, सफलतम एवं विलक्षण प्रयास उन्होंने किये हैं।

डॉ. कलाम का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणाओं से भरा है। राष्ट्रपति बनने के साथ नई सहस्त्राब्दी में  भारत को एक शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने के एक अभिनव स्वप्न को संजोये हुए वे निरन्तर सक्रिय रहे । वे भारत को परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए चर्चित हुए लेकिन अपनी पहली मुलाकात में महान दार्शनिक संत एवं अहिंसा के संदेशवाहक आचार्य महाप्रज्ञ ने उन्हें अध्यात्म साधना केन्द्र, महरौली में भारत को शक्ति के साथ अध्यात्म संपन्न राष्ट्र बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। उन विलक्षण क्षणों के साथ ही एक ऐसा ऐतिहासिक और अभिनव उपक्रम शुरू हुआ, जिसने डॉ. कलाम की जीवन की दिशा ही बदल दी। विज्ञान के शिखर पुरुष डॉ. कलाम और अध्यात्म के शिखर पुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ- दोनों ही महामानव भारत को एक आध्यात्मिक – वैज्ञानिक राष्ट्र बनाने के लिए जुट पड़े और उसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दिये और भविष्य में इनके प्रयत्नों से स्पष्ट शुभताएं दुनिया को देखने को मिलेगी। दोनों ही महापुरुषों के संयुक्त लेखन में एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें भारत को 2020 तक एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित करने की रूपरेखा प्रस्तुत है। समृद्ध एवं शक्ति संपन्न राष्ट्र के स्वप्न को लेकर डॉ. कलाम वर्ष में 2-3 बार आचार्य महाप्रज्ञ से आध्यात्मिक प्रेरणा एवं मार्गदर्शन लेने पहुंचते थे। इसी शृंखला में वे गुजरात के सूरत और अहमदाबाद एवं महाराष्ट्र के मुंबई महानगरी में इन्हीं विशिष्ट कार्यक्रमों एवं उद्देश्यों को लेकर यात्राएं कीं। 15 अक्टूबर, 2003 को राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने अपना जन्मदिन सूरत में मनाया और इस दिन आचार्य महाप्रज्ञ के सान्निध्य में आध्यात्मिक नेताओं और विद्वानों ने राष्ट्रपति कलाम के 2020 के समृद्ध भारत के सपने और उससे जुड़े पांच सूत्रीय कार्यक्रमों पर गंभीर एवं गहन चर्चाएं की थी। इसकी निष्पत्ति देश के लिए एक सुखद एवं शुभ शुरूआत रही कि इससे यूनिटी ऑफ माइंड (दिमागों की एकता) यानि सांप्रदायिक सौहार्द, आपसी भाईचारा, प्रेम एवं सद्भावना का एक अनूठा वातावरण बना और इस तरह का वातावरण बनाने के लिए ‘‘फाउंडेशन फॉर यूनिटी ऑफ रिलिजियन एंड इनलाइटेंड सिटीजनशिप’’ के रूप में एक संगठित कार्यक्रम की शुरूआत भी हुई थी। गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के बाद उत्पन्न आपसी कटुता, घृणा, नफरत, द्वेष और हिंसा को खत्म करने के लिए आचार्य महाप्रज्ञ के सान्निध्य में डॉ. कलाम द्वारा किये गये प्रयासों के सार्थक परिणाम आये। आखिर डॉ. कलाम आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति इतने आकर्षित क्यों हुए? क्यों उनमें इतना अहिंसा के प्रति आकर्षण पैदा हुआ? क्यों वे धार्मिक सहिष्णुता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाने के लिये अपनी सेवाएं देना चाहते थे। ये  ऐसे प्रश्न है जिससे रूबरू होना उनकी पावन स्मृति के लिये जरूरी है। अपनी पहली मुलाकात में आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व से डॉ. कलाम इसलिए प्रभावित हुए कि वह मुलाकात पोखरण में परमाणु विस्फोट के एक दिन बाद दिल्ली में आयोजित हुई। उस समय जब समूची दुनिया और देश के विशिष्ट जन डॉ. कलाम को इस सफल परीक्षण के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं दे रहे थे तब आचार्य महाप्रज्ञ ने उनसे कहा कि आपने शक्ति का परीक्षण किया है।

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