विश्व विनाश के कगार पर, भाग-2

शांति, अहिंसा, प्रेम, त्याग से, करें सहयोग में वृद्घि।
समझें परिवार इस वसुधा को, मित्रभाव से करें समृद्घि।

रूलाकर किसी भी प्राणी को, प्रभु हंसना अपना स्वभाव न हो।
मानव मानव के मानस में, किंचित भी कोई दुर्भाव न हो।

विज्ञान हमें ऐसा देना, जिसमें हृदय का अभाव न हो।
नही चाहिए ऐसा स्वर्ग, जहां आपस में सदभाव न हो।

लगे भलाई में मन अपना, करें प्रेम से भक्ति।
शारीरिक मानसिक और आत्मिक, दे दे ऐसी शक्ति।

हे जगत्पते! कर त्राण जगत का, हृदय हुआ विकल।
जीवन बीत रहा पल-पल।

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