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मौसमी समझ से जुड़ी है नागपंचमी

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि का स्वामी नाग है। इस तिथि को नाग पूजन करने से ग्रह-नक्षत्र अनुकूल रहते हैं। श्रावण , शुक्लपक्ष की पंचमी का नागपूजन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्व है, इसीलिए इस तिथि का नाम ही नागपंचमी पड़ गया है। नागपंचमी हमारे पूर्वजों की मौसम की समझ से भी जुड़ी हुई है। श्रावण मास में अत्यधिक बारिश के कारण सांप बिलों से बाहर निकल आते हैं, इसके कारण सर्पदंश की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में सर्पपूजन के जरिए किसी भी अनिष्ट से बचे रहने की कामना की जाती है शास्त्रों के अनुसार नागपंचमी के दिन घर की दीवारों पर नाग का चित्र बनाकर उसका पूजन करना चाहिए। इस दिन अनंत आदि प्रमुख महानागों का पूजन किया जाता है। स्कंद पुराण के नगर खंड में कहा गया है कि श्रावण पंचमी को नागों को पूजने से मनोकामना पूरी होती है। संतान की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए नागपंचमी का विशेष महत्त्व होता है। ऐसी मान्यता है कि नाग देवता संतान की इच्छा को पूरा करते हैं। नाग मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा -अर्चना की जाती है नागपंचमी  एक अनूठा त्योहार है। इस दिन विषधर को पूजा जाता है। उस विषधर को, जिसे देखकर या तो लोग मारने अथवा भागने के लिए दौड़ते हैं। यह त्योहार भारतीयों के असीम प्रकृति प्रेम को दर्शाता है। प्रकृति के सभी अंगों के प्रति सम्मान रखने वाला समाज ही विषधर को पूज सकता है। नागपंचमी का त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। इसलिए इस पंचमी को नागपंचमी कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अत: पंचमी नागों की तिथि है। पंचमी को नागपूजा करने वाले व्यक्ति को उस दिन भूमि नहीं खोदनी चाहिए। इस व्रत में चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। इस दिन चांदी, सोने, लकड़ी या मिट्टी की कलम से हल्दी और चंदन की स्याही से पांच फल वाले पांच नाग बनाएं और पंचमी के दिन, खीर, कमल, पंचामृत, धूप, नैवेद्य आदि से नागों की विधिवत पूजा करें।  गरुड़ पुराण के अनुसार नागपंचमी के दिन घर के दोनों ओर नाग की मूर्ति खींचकर अनंत आदि प्रमुख महानागों का पूजन करना चाहिए। स्कंद पुराण के नगर खंड में कहा गया है कि श्रावण पंचमी को चमत्कारपुर में रहने वाले नागों को पूजने से मनोकामना पूरी होती है।  नारद पुराण में सर्प के डसने से बचने के लिए कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत करने का विधान बताया गया है। आगे चलकर सुझाव भी दिया गया है कि सर्पदंश से सुरक्षित रहने के लिए परिवार के सभी लोगों को भादों कृष्ण पंचमी को नागों को दूध पिलाना चाहिए।पूजन विधिप्राचीन काल में इस दिन घरों को गोबर में गेरू मिलाकर लीपा जाता था। फिर नाग देवता की पूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती थी। पूजा करने के लिए एक रस्सी में सात गांठें लगाकर रस्सी का सांप बनाकर इसे लकड़ी के फट्टे के ऊपर सांप का रूप मानकर बिठाया जाता है।

हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है। फिर कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर इसे लकड़ी के फट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करें। पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती करें।  इसके बाद कच्चे दूध में शहद, चीनी या थोड़ा सा गुड़ मिलाकर जहां कहीं भी सांप की बांबी या बिल दिखे उसमें डाल दें और उस बिल की मिट्टी और चक्की लेकर, चूल्हे, दरवाज़े के निकट दीवार पर तथा घर के कोनों में सांप बनाएं। इसके बाद भीगे हुए बाजरे, घी और गुड़ से इनकी पूजा करके, दक्षिणा चढ़ाएं तथा घी के दीपक से आरती उतारें। अंत में नागपंचमी की कथा सुनें। यह तो सभी जानते हैं कि सांपों के निकलने का समय वर्षा ऋतु है। वर्षा ऋतु में जब बिलों में पानी भर जाता है तो विवश होकर सांपों को बाहर निकलना पड़ता है। इसलिए नागपूजन का सही समय यही माना जाता है। सुगंधित पुष्प तथा दूध सर्पों को अतिप्रिय है। इस दिन ग्रामीण लड़कियां किसी जलाशय में गुडिय़ों का विसर्जन करती हैं। ग्रामीण लडक़े इन गुडिय़ों को डंडे से ख़ूब पीटते हैं। फिर बहन उन्हें रुपए भेंट करती है।नागपंचमी की कथाकिसी नगर में एक किसान अपने परिवार सहित रहता था। उसके तीन बच्चे थे, दो लडक़े और एक लडक़ी। एक दिन जब वह हल चला रहा था तो उसके हल के फल में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गए। बच्चों के मर जाने पर मां नागिन विलाप करने लगी और फिर उसने अपने बच्चों को मारने वाले से बदला लेने का प्रण किया। एक रात्रि को जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को डस लिया। दूसरे दिन जब नागिन किसान की पुत्री को डंसने आई तो उस कन्या ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाथ जोडक़र क्षमा मांगने लगी। उस दिन नागपंचमी थी।  नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लडक़ी बोली-‘मेरे माता-पिता और भाई जीवित हो जाएं और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करे उसे नाग कभी न डसे।’ नागिन तथास्तु कहकर चली गई और किसान का परिवार जीवित हो गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना और साग काटना निषिद्ध हो गया।

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