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राजनीति

समय राजनीति का नहीं, खुली बधाई का है

डा. राजीव बिंदल

मोदी ने वन रैंक, वन पेंशन दी है, यह ऐतिहासिक सत्य है। नरेंद्र मोदी को इसके लिए सब ओर से खुली बधाई मिलनी चाहिए। कांग्रेस के तमाम नेताओं को इसका बढ़-चढक़र स्वागत करना चाहिए और इस पर राजनीति बंद होनी चाहिए। आखिरकार यह हमारी सेनाओं के मनोबल का भी सवाल हैज्1947 में देश की आजादी के बाद देश की सुरक्षा, देश भक्ति के मायने बदल गए। देश की बाहरी व आंतरिक सुरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया। यूं तो विश्व युद्ध में भी भारतीय सैनिकों ने शिरकत की थी। आजाद हिंद फौज में जाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर इन्होंने अपना जौहर दिखाया था, परंतु 1947 के तुरंत बाद कश्मीर में पाकिस्तानी कबायली घुसपैठ ने सरकार को चौकस कर दिया था। इस छद्म युद्ध ने देश के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी, परंतु हम इस चुनौती के बाद भी तैयार नहीं हुए और 1962 में चीन से हुए युद्ध ने हमारी कमर तोड़ कर रख दी। हमारे सैनिक पुरानी बंदूकों से लड़ते रहे, मरते रहे। मौसम एवं पहाड़ी विपरीत स्थितियों के अनुसार फौजियों के लिए साजो सामान, जूते, वस्त्र, भोजन, औषधियां, असला आदि न पहुंच पाने से हमारे फौजियों को भारी नुकसान हुआ। फिर भी हमने सैनिकों के प्रति उस प्रकार की चिंता नहीं की, जिस प्रकार की करनी चाहिए थी।पाकिस्तान के साथ हुए 1965 के युद्ध में हमारे जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया।  लाल बहादुर शास्त्री जी ने सैनिकों का मान बढ़ाया, ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। देश ने अब समझ लिया था कि केवल भाईचारा शब्द कह कर काम नहीं चलेगा, हमें ताकतवर बनना पड़ेगा । 1971 में देश पर पाकिस्तान ने फिर आक्रमण कर दिया। भारत की शानदार जीत हुई। बांग्लादेश में 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाकर इतिहास रचा। इंदिरा गांधी को पूरे देश का साथ मिला। पाकिस्तान के टुकड़े हुए, बांग्लादेश बना। हमारे फौजियों ने एक बार फिर अदम्य शौर्य एवं साहस का परिचय दिया और भारतीय सेना दुनिया की बेहतरीन सेनाओं में आंकी जाने लगी। सवाल उठता है कि विश्व युद्ध से लेकर 1971 की जंग तक फौजी लड़ते रहे, बलिदान देते रहे, परंतु उनको जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह क्यों नहीं मिला। 1999 में कारगिल का युद्ध हुआ।

भारत के जांबाज सैनिकों ने हर प्रकार की मुसिबतों का सामना करते हुए कारगिल के युद्ध को भी जीता। कारगिल युद्ध के दौरान कुछ नई परंपराओं ने जन्म लिया। फौजियों का मान-सम्मान देश का विषय बना, तो अटल बिहारी वाजपेयी के कारण बना। इससे पहले फौजी शहीद होता था, उसके कपड़े व ट्रंक छह महीने बाद घर भेज दिए जाते थे, उसके पार्थिव शरीर के दर्शन उसके परिवार वालों को भी नहीं होते थे। वाजपेयी सरकार के समय से एक-एक फौजी का शव मान-सम्मान के साथ उसके गांव आने लगा। उसे पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टी की जाने लगी। बंदूकों की सलामी, तिरंगे से सम्मान दिया जाने लगा। फौजी के नाम पर सडक़, स्कूल, स्मारक बनने लगे। राज्य सरकारों व केंद्र सरकार द्वारा विशेष सहायता राशि उस शहीद के परिजनों को दी जाने लगी।अटल जी ने एक नई रिवायत और शुरू की। युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में स्वयं जाना और सैनिकों का मनोबल बढ़ाना। इस प्रकार एक नए युग का सूत्रपात हुआ। वन रैंक, वन पेंशन का मामला लगभग उतना ही पुराना है, जितना आजाद भारत के युद्धों का इतिहास। सरकारें आईं और चली भी गईं। इस दौरान छह वर्ष का अटल जी का कालखंड छोड़ दें, तो सर्वाधिक समय देश पर कांग्रेस ने राज किया, परंतु यह मसला कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। इस मुद्दे में नया मोड़ रेवाड़ी में पूर्व सैनिकों की महारैली से आया। नरेंद्र भाई मोदी ने उस रैली को संबोंधित करते हुए घोषणा की कि हम वन रैंक, वन पेंशन देंगे। नया उत्साह, नया विश्वास पैदा हुआ। मोदी सरकार बन गई, उम्मीदों का पहाड़ तो खड़ा होना ही था और उम्मीदों को राजनीतिक हवा भी दी गई। 43 साल पुरानी मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार ने गंभीरता दिखाई। इसके हर पहलू पर गहन चिंतन किया गया। 10 से लेकर 15 हजार करोड़ रुपए का एरियर एवं इतना ही वार्षिक व्यय किया जाना है। यह घोषणा अब भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुकी है।देशहित के इस मुद्दे पर राजनीति ठीक नहीं है। यदि लाल बहादुर शास्त्री जी ने जय जवान, जय किसान का नारा बुलंद किया था, तो वह देश के हृदय पर राज करते हैं। पूरे देश के राजनेताओं ने उनका समर्थन किया । 1971 के भारत पाक युद्ध में इंदिरा गांधी के पीछे समूचा देश खड़ा हो गया और अटल जी ने उन्हें रणचंडी की संज्ञा देकर मान-सम्मान दिया। अटल जी ने पोखरण विस्फोट करके भारत को आण्विक शक्ति बनाया और जय किसान, जय जवान, जय विज्ञान का नारा दिया, तो दुनिया में उनका मान बढ़ा। आज मोदी ने वन रैंक, वन पेंशन दी है, यह ऐतिहासिक सत्य है।

यह भी कटु सत्य है कि कांग्रेस ने इसे नहीं दिया, नरेंद्र मोदी को इसके लिए सब ओर से खुली बधाई मिलनी चाहिए। कांग्रेस के तमाम नेताओं को इसका बढ़-चढक़र स्वागत करना चाहिए और इस पर राजनीति बंद होनी चाहिए। आखिरकार यह हमारी सेनाओं के मनोबल का भी सवाल है।

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